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    AI की कहानी: दूसरे विश्व युद्ध में बनी तकनीक जिसने आज के AI की नींव रखी

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    आज की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI हर जगह नजर आता है। स्मार्टफोन पर चैटबॉट से बात करना हो, तस्वीरें बनवाना हो, या डेटा एनालिसिस करना—AI हर जगह मौजूद है। कई लोग सोचते हैं कि यह तकनीक नई है, लेकिन सच यह है कि AI का जन्म कई दशक पहले हुआ था, और इसकी नींव दूसरे विश्व युद्ध तक जाती है।

    AI की कहानी उस समय शुरू होती है जब जटिल कोड और मशीनों की दुनिया बदलने वाले विचार सामने आए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने एनिग्मा नामक एक मशीन का इस्तेमाल किया था। इस मशीन के जरिए जर्मनी हर संदेश को कोडित कर भेजता था, जिसे पढ़ना लगभग नामुमकिन था। उस समय इस कोड को तोड़ने की चुनौती पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई थी।

    इसी दौरान ब्रिटिश गणितज्ञ और लॉजिकल थिंकर्स एलन ट्यूरिंग ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। ट्यूरिंग ने उस समय एक ऐसी मशीन विकसित की जिसे “ट्यूरिंग मशीन” कहा गया। इस मशीन ने एनिग्मा कोड को तोड़ने में मदद की और युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई। ट्यूरिंग ने जो लॉजिक और एलगोरिदम इस्तेमाल किए, वही आज AI की नींव बन गए हैं।

    एलन ट्यूरिंग ने सिर्फ एनिग्मा कोड को नहीं तोड़ा, बल्कि उस समय की सोच से आगे बढ़कर ऐसी मशीन बनाई जो मानव मस्तिष्क की तरह सोच सकती थी। उनका दृष्टिकोण यह था कि मशीनें केवल निर्देशों का पालन नहीं कर सकतीं, बल्कि जटिल समस्याओं का हल सोचकर निकाल सकती हैं। यह विचार आज AI की मूल अवधारणा बन गया है।

    आज जब हम AI का इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि चैटबॉट से सवाल-जवाब करना या आर्टिफिशियल इमेज बनवाना, तो यह सीधे तौर पर ट्यूरिंग के विचारों का परिणाम है। ट्यूरिंग ने यह सिद्ध किया कि मशीनें सिर्फ गणितीय कार्यों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सोचने, सीखने और निर्णय लेने की क्षमता भी रख सकती हैं।

    AI के शुरुआती दिन आसान नहीं थे। कंप्यूटर की दुनिया तब बहुत प्रारंभिक अवस्था में थी। ट्यूरिंग और उनके साथियों ने बड़ी मेहनत से मशीनों को इस स्तर तक पहुँचाया कि वे जटिल कोड को हल कर सकें। उनका काम न केवल युद्ध के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि भविष्य के लिए भी क्रांतिकारी साबित हुआ।

    आज के AI सिस्टम जैसे चैटजीपीटी, डीएल मॉडल और इमेज जनरेटिंग टूल्स ट्यूरिंग की सोच का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। वह सोच जिसने 1940 के दशक में एनिग्मा कोड को तोड़ा, आज के डिजिटल युग में AI को वास्तविकता में बदल रही है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि AI केवल तकनीक नहीं, बल्कि मानव सोच और मशीन की क्षमता का संगम है। एलन ट्यूरिंग ने यह सिद्ध कर दिया कि मानव मस्तिष्क और मशीन का संयोजन नई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है। उनके विचारों के बिना आज का AI संभव नहीं होता।

    इस प्रकार, AI का इतिहास केवल तकनीकी विकास की कहानी नहीं है, बल्कि यह साहस, नवाचार और समस्या समाधान की प्रेरक कहानी है। दूसरे विश्व युद्ध का समय, जटिल कोड और एलन ट्यूरिंग का योगदान—इन सबने मिलकर आज के AI की नींव रखी।

    जैसे-जैसे समय बढ़ा, AI की क्षमता भी विकसित हुई। अब हम इसे न केवल व्यक्तिगत उपयोग में देख सकते हैं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और व्यापार के क्षेत्र में भी इसका व्यापक उपयोग हो रहा है। यह सब उस छोटे कदम से शुरू हुआ, जब ट्यूरिंग ने एनिग्मा कोड को तोड़ने की चुनौती को स्वीकार किया और मशीनों को सोचने की क्षमता दी।

    आज AI हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गया है। ट्यूरिंग की सोच और उनके द्वारा की गई pioneering work ने न केवल युद्ध की दिशा बदली, बल्कि भविष्य के तकनीकी विकास की राह भी आसान की। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि तकनीक की जड़ें सिर्फ आज की दुनिया में नहीं, बल्कि कई दशक पहले से मौजूद हैं।

    AI की यात्रा अभी जारी है और यह आने वाले वर्षों में और भी विकसित होगी। लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि एलन ट्यूरिंग और दूसरे विश्व युद्ध के समय की घटनाओं ने इस क्रांति की नींव रखी और आज हम उसी की विरासत का लाभ उठा रहे हैं।

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