




ऑस्ट्रेलियाई कंटेंट क्रिएटर और व्लॉगर पीट ज़ेड ने हाल ही में मुंबई की धारावी में अपने तीन दिन के प्रवास का वीडियो बनाया, जिसे उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड किया। इस वीडियो में पीट ने धारावी को भारत की सबसे खतरनाक झुग्गी बस्ती बताया। वीडियो का शीर्षक था, “मैंने भारत की सबसे खतरनाक झुग्गी बस्ती में जिंदा रहने की कोशिश की।”
वीडियो अपलोड होते ही सोशल मीडिया पर जमकर बहस और आलोचना शुरू हो गई। भारत में रहने वाले लोगों ने इस वीडियो को गलत और अपमानजनक बताया। आलोचकों का कहना है कि धारावी जैसे क्षेत्र में लोग मेहनत, संघर्ष और सहयोग से जीवन जीते हैं, जबकि व्लॉगर ने इसे केवल खतरनाक और डरावना दिखाने की कोशिश की।
पीट ज़ेड ने अपने वीडियो में धारावी की सड़कों, तंग गलियों और झुग्गियों के बीच रहकर विभिन्न गतिविधियों को दिखाया। उन्होंने स्थानीय बाजार, खान-पान, और झुग्गियों में रहने वाले लोगों की जीवन शैली को कैमरे में कैद किया। हालांकि उनका दावा था कि यह अनुभव दर्शकों को ‘रीयलिटी शो’ की तरह दिखाना है, लेकिन भारत में कई लोगों ने इसे संवेदनशील और अपमानजनक मानते हुए विरोध किया।
सोशल मीडिया पर आलोचना इतनी बढ़ गई कि कुछ लोगों ने व्लॉगर के वीडियो को संस्कृति और लोगों का अपमान करार दिया। कई यूजर्स ने कहा कि धारावी सिर्फ झुग्गियों का समूह नहीं है बल्कि यह कला, उद्योग और मेहनत का केंद्र है। कई स्टार्टअप और छोटे उद्योग धारावी से जुड़े हैं, जिनके बारे में व्लॉगर ने वीडियो में कोई जानकारी नहीं दी।
इस वीडियो के कारण पीट ज़ेड को ट्विटर और इंस्टाग्राम पर ट्रोलिंग का भी सामना करना पड़ा। कई लोगों ने उनके वीडियो को “सेंसिटिव कंटेंट की समझ न रखने वाला” बताया। आलोचकों का कहना है कि ऐसे वीडियो विदेशी दर्शकों को गलत संदेश दे सकते हैं और धारावी की वास्तविकता का भ्रम फैलाते हैं।
वहीं, कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि व्लॉगर ने वीडियो बनाते समय स्थानीय लोगों की सहमति और संवेदनशीलता का ध्यान नहीं रखा। उनका उद्देश्य केवल ‘सस्पेंस और डर’ पैदा करना था, जिससे वीडियो को ज्यादा व्यूज मिलें। इससे धारावी के निवासियों की सच्ची जीवन शैली को झुठला दिया गया।
धारावी को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स और डॉक्यूमेंट्रीज में हमेशा से इसे मेहनत, कला और सामाजिक संघर्ष की झलक बताया गया है। यहां अनेक लोग छोटे उद्योग चलाते हैं, और बस्ती के कुछ हिस्से में उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इस वास्तविकता को नजरअंदाज कर केवल खतरनाक बस्ती बताना पीट ज़ेड की आलोचना का मुख्य कारण बना।
धारावी के निवासी और स्थानीय सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने भी वीडियो का जवाब देना शुरू किया। उन्होंने पीट के वीडियो के मुकाबले धारावी की सच्ची तस्वीरें और वीडियो साझा किए, जिसमें दिखाया गया कि यह बस्ती सिर्फ झुग्गियों का समूह नहीं बल्कि उद्यम, सांस्कृतिक विरासत और समुदाय की ताकत का प्रतीक है।
हालांकि पीट ज़ेड का दावा है कि उनका मकसद सिर्फ “एक अनुभव साझा करना” था और किसी की भावना ठेस पहुंचाना नहीं था। उन्होंने कहा कि वीडियो में जो दृश्य दिखाए गए, वह उनके व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित हैं। लेकिन आलोचक और सोशल मीडिया यूजर्स इसे भारत और धारावी की छवि को गलत तरीके से पेश करने वाला कंटेंट मान रहे हैं।
इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि सोशल मीडिया पर कंटेंट बनाते समय संवेदनशीलता और स्थानीय समुदाय की भावनाओं का ध्यान रखना कितना जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशियों को भारत की झुग्गियों और गरीब क्षेत्रों के बारे में वीडियो बनाते समय केवल ‘शॉक फेक्टर’ का उपयोग करने की बजाय स्थानीय सच्चाई और पॉजिटिव पहलुओं को दिखाना चाहिए।
इस पूरे विवाद से यह भी स्पष्ट हुआ कि सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होना आसान है, लेकिन आलोचना और ट्रोलिंग से बचना मुश्किल। पीट ज़ेड के अनुभव ने यह साबित किया कि कंटेंट क्रिएटरों को जिम्मेदारी के साथ वीडियो बनाना चाहिए, खासकर जब विषय किसी देश की सामाजिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं से जुड़ा हो।
धारावी की यह घटना सोशल मीडिया और कंटेंट क्रिएशन की दुनिया में संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का उदाहरण बन गई है। विशेषज्ञों की सलाह है कि भविष्य में विदेशी और घरेलू व्लॉगर अपने वीडियो में स्थानीय समुदायों की सहमति और सांस्कृतिक पहलुओं का ध्यान जरूर रखें।
इस विवाद के बाद पीट ज़ेड ने वीडियो पर कुछ clarifications दी हैं और कहा कि उनका उद्देश्य केवल ‘अनुभव साझा करना’ था। हालांकि आलोचना अभी भी जारी है और सोशल मीडिया पर धारावी के लोगों ने अपनी सच्ची जीवन शैली को दिखाते हुए यह साबित किया कि धारावी सिर्फ खतरनाक नहीं, बल्कि मेहनत और जज्बे की बस्ती है।