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    आर्यन खान ड्रग्स केस: समीर वानखेड़े ने चार साल बाद खोला राज, बोले- ‘बलि का बकरा नहीं बनाया गया’

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    शाहरुख़ ख़ान के बेटे आर्यन ख़ान को अक्टूबर 2021 में एक क्रूज़ शिप पर कथित रेव पार्टी के दौरान गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी के बाद उन्हें लगभग एक महीने तक हिरासत में रखा गया था, जिससे यह मामला मीडिया की सुर्खियों में आ गया। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के अधिकारी समीर वानखेड़े के नेतृत्व में हुई इस कार्रवाई ने उस समय काफी विवाद उत्पन्न किया था।

    हालांकि, 2022 में आर्यन को सभी ड्रग्स आरोपों से मुक्त कर दिया गया। इस मामले में अब चार साल बाद समीर वानखेड़े ने खुलकर अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा कि आर्यन खान को बलि का बकरा नहीं बनाया गया। उनका कहना था कि गिरफ्तारी से पहले पर्याप्त सबूत जुटाए गए थे और यह कार्रवाई नियमों के तहत की गई थी।

    समीर वानखेड़े ने एक इंटरव्यू में कहा, “हमारा काम सिर्फ एक केस की शुरुआत करना होता है। कोई भी एक आरोपी होता है, उसे कोर्ट के सामने पेश करना होता है। कई केस में कोर्ट खुद बेल रिजेक्ट कर देते हैं जिससे कई लोगों को कई दिनों तक जेल में रहना पड़ता है।” उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी के पास ड्रग्स नहीं भी मिले, तो भी उसे गिरफ्तार किया जा सकता है यदि अन्य सबूत मौजूद हों।

    इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि समीर वानखेड़े ने अपनी कार्रवाई को पूरी तरह से कानूनी और उचित ठहराया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में कई लोग शामिल थे और सबूतों के आधार पर ही कार्रवाई की गई थी। उनका यह भी कहना था कि मीडिया में आर्यन खान को बलि का बकरा बनाने की जो बातें उठाई गईं, वे पूरी तरह से निराधार हैं।

    आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद बॉलीवुड और उनके परिवार के सदस्य भी इस मामले में सामने आए थे। शाहरुख़ ख़ान और गौरी ख़ान ने अपने बेटे के समर्थन में कई बयान दिए थे। इसके अलावा, बॉलीवुड के कई अन्य सितारों ने भी इस मामले में अपनी राय दी थी।

    समीर वानखेड़े के इस बयान से यह मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। हालांकि, आर्यन खान को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है, लेकिन इस मामले ने बॉलीवुड और कानून व्यवस्था के बीच के रिश्तों पर सवाल उठाए हैं। अब देखना यह है कि इस मामले में और क्या नए खुलासे होते हैं और यह बॉलीवुड की छवि को कैसे प्रभावित करता है।

    इस मामले में समीर वानखेड़े के बयान ने एक नई दिशा दी है और यह सवाल उठाया है कि क्या मीडिया और सार्वजनिक धारणा किसी आरोपी की छवि को प्रभावित कर सकती है, भले ही वह कानूनी रूप से निर्दोष साबित हो। यह मामला कानूनी प्रक्रिया, मीडिया की भूमिका और सार्वजनिक धारणा के बीच के जटिल रिश्तों को उजागर करता है।

    अंततः, यह कहना उचित होगा कि आर्यन खान का मामला केवल एक ड्रग्स केस नहीं था, बल्कि यह समाज, मीडिया और कानून व्यवस्था के बीच के रिश्तों का भी प्रतीक बन गया है। समीर वानखेड़े के इस बयान ने इस मामले को एक नई रोशनी में प्रस्तुत किया है और यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में इस पर और क्या प्रतिक्रियाएँ आती हैं।

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