




भारत में गोल्ड लोन मार्केट ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। जहां पहले लोग अपने सोने को बेचकर नकदी जुटाने के बारे में सोचते थे, वहीं अब देशभर में एक नया रुझान देखा जा रहा है — सोना बेचो नहीं, बस गिरवी रखो। इस सोच ने भारत के वित्तीय क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2025 तक गोल्ड लोन मार्केट 122 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ₹2.94 लाख करोड़ के स्तर पर पहुंच गया है। यह न केवल एक रिकॉर्ड है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे भारतीय परिवार और छोटे व्यवसाय अब अपनी कीमती संपत्ति — सोने — को बेचने की बजाय, गिरवी रखकर अपने वित्तीय उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं।
बढ़ती सोने की कीमतों ने बढ़ाई मांग
सोने की कीमतों में पिछले एक साल में जबरदस्त उछाल देखा गया है। वैश्विक अस्थिरता, डॉलर में कमजोरी और निवेशकों के भरोसे के चलते सोना लगातार महंगा हुआ है। नतीजा यह हुआ कि लोगों को अपनी सोने की ज्वेलरी पर अधिक मूल्य का लोन मिलने लगा।
सोना अब सिर्फ गहनों की शोभा नहीं, बल्कि नकदी जुटाने का भरोसेमंद जरिया बन गया है। पहले जहां सोना भावनाओं से जुड़ा निवेश माना जाता था, अब लोग उसे एक ‘काम आने वाली संपत्ति’ के रूप में देखने लगे हैं।
इन्वेस्टयादन्या के संस्थापक परिमल अडे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर इस ट्रेंड को लेकर कई इनसाइट्स साझा कीं। उन्होंने बताया कि भारतीय लोग अब ऊंची सोने की कीमतों और आसान शॉर्ट-टर्म क्रेडिट का फायदा उठा रहे हैं। यह अब देश का सबसे तेजी से बढ़ता रिटेल लोन सेगमेंट बन गया है।
क्यों बढ़ा गोल्ड लोन का चलन?
गोल्ड लोन को लेकर लोगों में रुचि बढ़ने की कई वजहें हैं।
पहली वजह है — आसान और तेज़ मंजूरी प्रक्रिया। गोल्ड लोन के लिए अधिक दस्तावेजों की आवश्यकता नहीं होती। बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां (NBFCs) केवल गिरवी रखे सोने के आधार पर ऋण देती हैं, जिससे प्रक्रिया सरल और तेज़ होती है।
दूसरी बड़ी वजह है — ब्याज दरों में लचीलापन। अन्य व्यक्तिगत ऋणों की तुलना में गोल्ड लोन पर ब्याज दरें अपेक्षाकृत कम होती हैं। इससे मध्यम वर्ग और छोटे व्यापारी इसे अधिक सुरक्षित विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
तीसरी वजह है — आपातकालीन परिस्थितियों में नकदी की उपलब्धता। अचानक चिकित्सा व्यय, व्यवसाय में निवेश या किसी निजी जरूरत के लिए यह सबसे आसान विकल्प बन गया है।
चौथी वजह — सोना बेचने से बचना। भारतीय संस्कृति में सोना भावनात्मक और पारिवारिक महत्व रखता है। लोग उसे बेचना नहीं चाहते, क्योंकि यह पीढ़ियों से जुड़ी विरासत होती है। ऐसे में, गिरवी रखकर जरूरत पूरी करना एक व्यावहारिक विकल्प साबित हो रहा है।
शहरी और ग्रामीण भारत दोनों में बढ़ा भरोसा
दिलचस्प बात यह है कि गोल्ड लोन का यह ट्रेंड सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है। ग्रामीण भारत में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ी है।
ग्रामीण इलाकों में जहां किसान और छोटे व्यापारी अक्सर नकदी संकट से जूझते हैं, वहां गोल्ड लोन एक भरोसेमंद साधन बन गया है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में मध्यम वर्ग और युवा उद्यमी इस विकल्प को अपनाकर अपने स्टार्टअप्स और व्यक्तिगत खर्चों को पूरा कर रहे हैं।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, बीते दो वर्षों में NBFCs और बैंक शाखाओं में गोल्ड लोन के आवेदनों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। यह दर्शाता है कि यह सेक्टर अब हर वर्ग के लोगों के लिए सुलभ हो चुका है।
निवेश और वित्तीय संस्थानों के लिए अवसर
गोल्ड लोन मार्केट की इस तेजी ने बैंक और NBFC कंपनियों के लिए भी नए अवसर पैदा किए हैं।
वे इस सेक्टर में अपने पोर्टफोलियो का विस्तार कर रहे हैं, क्योंकि यह ‘सिक्योर्ड लोन’ श्रेणी में आता है और इसमें डिफॉल्ट का जोखिम अपेक्षाकृत कम होता है।
इसके अलावा, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के आगमन से अब ग्राहक अपने घर बैठे लोन की पात्रता जांच सकते हैं, आवेदन कर सकते हैं और रकम तुरंत अपने खाते में पा सकते हैं। यह डिजिटल सुविधा भी इस ट्रेंड के तेजी से बढ़ने का एक बड़ा कारण है।
परिमल अडे का विश्लेषण
परिमल अडे का कहना है कि यह बदलाव भारत के वित्तीय व्यवहार में संरचनात्मक परिवर्तन का संकेत है। उनके अनुसार,
“भारतीय अब सोने को भावनात्मक नहीं, बल्कि उपयोगी संपत्ति के रूप में देखने लगे हैं।
वे इसे बेचने की बजाय गिरवी रखकर नकदी प्रवाह बनाए रखना पसंद कर रहे हैं।
यह छोटे व्यवसायों और परिवारों के लिए बड़ी वित्तीय लचीलापन पैदा कर रहा है।”
उन्होंने यह भी बताया कि बढ़ती महंगाई और रोजगार अस्थिरता के बीच, गोल्ड लोन एक ‘सुरक्षित और त्वरित क्रेडिट’ का प्रतीक बन चुका है।
बढ़ते ट्रेंड के साथ सावधानी भी जरूरी
हालांकि गोल्ड लोन आकर्षक लग सकता है, लेकिन इसमें सावधानी की भी जरूरत है।
यदि समय पर ऋण का भुगतान नहीं किया गया, तो बैंक या NBFC गिरवी रखे गहनों की नीलामी कर सकती है। इसलिए लोन लेने से पहले उसकी ब्याज दर, अवधि और शर्तों को अच्छी तरह समझना जरूरी है।
इसके अलावा, सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव भी इस पर असर डाल सकता है। यदि कीमतों में गिरावट आई तो बैंक गिरवी सोने के मूल्य के अनुसार अतिरिक्त मार्जिन की मांग कर सकते हैं।
भारत का गोल्ड लोन मार्केट अब न सिर्फ आर्थिक बदलाव का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय मानसिकता में हो रहे परिवर्तन का भी उदाहरण है।
₹2.94 लाख करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने वाला यह बाजार दिखाता है कि भारतीय अब सोने को केवल गहनों तक सीमित नहीं, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण का साधन मानने लगे हैं।
“सोना बेचो नहीं, बस गिरवी रखो” — यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक नई वित्तीय सोच है जो आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल सकती है।