




शिवसेना (UBT) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने रविवार को एक निजी कार्यक्रम में फिर बैठक की, और इस मुलाकात ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी। यह मुलाकात इस वर्ष दो महीनों में पांचवी है, और ऐसे समय में हो रही है जब राज्य के नगर निकाय चुनावों का समय करीब आ रहा है। इस बीच यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या इन दोनों दलों के बीच आगामी निकाय चुनावों में राजनीतिक साझेदारी बन सकती है।
राज ठाकरे की इस मुलाकात की जगह थी ‘मातोश्री’ — उद्धव ठाकरे का आवासीय स्थल, जहाँ वे अक्सर अपने राजनीतिक और पारिवारिक कार्यक्रमों के लिए आमंत्रित करते हैं। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच करीब तीस से चालीस मिनट की बातचीत हुई। इस बातचीत को लेकर पार्टी वर्कर्स और राजनीतिक विश्लेषक दोनों ही इसके राजनीतिक संकेतों का गहराई से अध्ययन कर रहे हैं।
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच का संबन्ध वर्षों से जटिल रहा है। राज ने 2005 में शिवसेना से अलग होकर मनसे की स्थापना की थी, और तब से दोनों राजनीतिक मोर्चे अलग खड़े रहे। लेकिन पिछले कुछ महीनों से दोनों में बढ़ती मुलाकातों ने राजनीतिक विश्लेषकों की रुचि जगा दी है। इन बैठकों को संकेत माना जा रहा है कि मनसे और शिवसेना (UBT) संभवतः निकाय स्तर पर एक साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं।
इन दोनों दलों में जुड़ी बातचीत को लेकर सार्वजनिक तौर पर भी सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। शिवसेना (UBT) के वरिष्ठ नेता संजय राऊत ने कहा है कि इस मुलाकात का उद्देश्य राजनीतिक ही था, और भविष्य में दोनों दल “दिल और दिमाग” से गठबंधन करेंगे। राऊत ने यह भी कहा कि मुंबई की महापौर पद की दावेदारी एक “मराठी, सच्चे ऊतक से जुड़ा उम्मीदवार” को मिलेगी और यह गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति में नया समीकरण उत्पन्न कर सकता है।
दोष पर, मनसे के कुछ नेतृत्व ने इन अटकलों को खारिज किया है और कहा है कि राज ठाकरे की मुलाकात केवल व्यक्तिगत या पारिवारिक कारणों से हुई है। लेकिन यह साफ है कि इस चर्चा को राजनीतिक दिशा देने के लिए स्थानीय स्तर पर तैयारियाँ हो रही हैं।
राजकीय समीकरणों की बात करें तो, मुख्य आकर्षण बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव है। BMC महाराष्ट्र के सबसे बड़े और सबसे बजटीय नगर निकायों में से एक है और उत्तरदायित्वों व संसाधनों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस चुनाव में शिवसेना (UBT) और मनसे मिलकर अगर मैदान में उतरते हैं तो भाजपा और अन्य दलों को चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
राजठाकेरे और उद्धव के बीच हुई पिछली मुलाकातों की श्रृंखला भी इस दिशा में इशारा करती है। उदाहरण के लिए, इस वर्ष जुलाई में राज ने उद्धव के 65वें जन्मदिन पर ‘मातोश्री’ का दौरा किया था। बाद में उद्धव ने राज के निवास पर गणेश दर्शन के लिए भी जाना था, जो कि पारिवारिक संबोधन के साथ-साथ राजनीतिक संकेत भी माना गया।
इन मुलाकातों की बुनियाद इसे संकेत देती है कि दोनों दल स्थिर और दीर्घकालीन गठबंधन पर विचार कर रहे हैं, न कि सिर्फ चुनावी गठजोड़। राऊत के बयान व राजनीतिक परिदृश्य से यह भी संभावना है कि मनसे शिवसेना (UBT) की ओर नहीं बल्कि MVA (महाविकास आघाडी) ढाँचे में सिर्फ लोकनिकाय स्तर पर ही साझेदारी करे।
हालांकि अभी किसी भी तरफ से गठबंधन की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। दोनों दल लगातार परिस्थिति का आकलन कर रहे हैं और सीटों का बंटवारा, क्षेत्रीय प्रभुत्व और स्थानीय स्तर के समीकरणों पर विचार कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह गठबंधन बनता है तो वह महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोर्चा खोल सकता है — विशेषकर मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई एवं अन्य महानगरपालिका क्षेत्रों में।
कुछ आलोचक इस पूरे प्रकरण को सिर्फ दिखावे की पहल का नाम देते हैं — उनका तर्क है कि वक्त व परिस्थिति देखते हुए नेताओं को राजनीतिक कद बढ़ाने की कोशिश दिख रही है। लेकिन समर्थक कहेंगे कि यह वक्त की मांग है — मराठी राजनीति को एकजुट करना, संसाधित शक्ति को सही दिशा देना और ताकतवर मुकाबला करना आवश्यक है।
अभी निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता कि उद्धव-राज गठबंधन होगा या नहीं। मगर इतना तय है कि यह मुलाकात महाराष्ट्र के राजनीतिक नक्शे पर नए तीर छोड़ गई है। निकाय चुनाव अभी दूर नहीं हैं, और इस संवाद ने सबको यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आने वाले महीनों में क्या नया मोर्चा खुलेगा।