




भारत और अमेरिका के बीच हाल के दिनों में बढ़े व्यापारिक तनाव के बीच अब अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पत्र लिखकर एक बड़ा संदेश दिया है। इन सांसदों ने ट्रंप से कहा है कि यदि अमेरिका को चीन की आर्थिक और रणनीतिक चुनौती का प्रभावी रूप से सामना करना है, तो उसे भारत के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत बनाना होगा। पत्र में कहा गया है कि भारत के साथ व्यापारिक विवादों को खत्म कर दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाना आज की आवश्यकता है।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों का कहना है कि अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए उच्च टैरिफ (आयात शुल्क) न केवल व्यापारिक रिश्तों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि दोनों देशों के रणनीतिक हितों पर भी असर डाल रहे हैं। सांसदों ने चेताया कि अगर यह स्थिति बनी रही तो चीन को फायदा मिलेगा और अमेरिका को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति कमजोर करनी पड़ेगी।
अमेरिकी कांग्रेस की विदेश मामलों की समिति (Foreign Affairs Committee) के सदस्यों ने अपने पत्र में स्पष्ट कहा है कि “भारत एक लोकतांत्रिक, स्थिर और विश्वसनीय साझेदार है, जिसे नजरअंदाज करना अमेरिका की रणनीतिक भूल होगी।” उन्होंने आगे लिखा, “अगर अमेरिका भारत के साथ व्यापार और निवेश के रिश्तों को मज़बूत करता है, तो इससे दोनों देशों को दीर्घकालिक आर्थिक लाभ होगा और चीन के प्रभाव को कम किया जा सकेगा।”
पत्र में सांसदों ने ट्रंप प्रशासन से यह भी अपील की कि वह भारत के लिए लागू टैरिफ और व्यापारिक प्रतिबंधों पर पुनर्विचार करे। उनका कहना है कि इन टैरिफों के कारण अमेरिकी कंपनियों को नुकसान हो रहा है और भारत-अमेरिका व्यापार में अनावश्यक रुकावटें पैदा हो रही हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम अमेरिका के अपने ही उद्योगों को कमजोर कर रहा है, जो भारतीय बाजार पर निर्भर हैं।
अमेरिकी सांसदों के इस पत्र के पीछे की पृष्ठभूमि यह है कि बीते महीनों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में ठंडापन आ गया था। ट्रंप प्रशासन ने भारत से आने वाले कुछ उत्पादों पर अतिरिक्त आयात शुल्क (Tariffs) लगाए थे, जिसके जवाब में भारत ने भी अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया था। इस व्यापारिक तनाव ने दोनों देशों के निवेशकों में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी थी।
सांसदों का कहना है कि मौजूदा दौर में जब चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा चरम पर है, तब भारत जैसा बड़ा लोकतांत्रिक देश अमेरिका के लिए एक रणनीतिक संपत्ति साबित हो सकता है। अगर अमेरिका भारत को अपने साझेदार के रूप में नहीं देखता, तो चीन इस स्थिति का पूरा लाभ उठा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि एशिया में शक्ति संतुलन के लिए भारत की भूमिका बेहद अहम है, इसलिए दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को फिर से मजबूत करना चाहिए।
भारत-अमेरिका के बीच लंबे समय से रक्षा, तकनीक, ऊर्जा और शिक्षा के क्षेत्र में गहरा सहयोग रहा है। लेकिन हाल के व्यापारिक तनाव ने इन रिश्तों पर कुछ हद तक असर डाला है। ट्रंप प्रशासन ने भारत को ‘जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेस (GSP)’ की सूची से बाहर कर दिया था, जिससे भारत के कई उत्पादों पर अतिरिक्त टैक्स लगने लगा। इसके चलते भारतीय निर्यातकों को नुकसान हुआ, जबकि अमेरिकी आयातक भी महंगी दरों पर सामान खरीदने को मजबूर हुए।
पत्र में सांसदों ने कहा कि भारत के साथ टकराव की स्थिति न तो अमेरिका के हित में है और न ही वैश्विक स्थिरता के लिए सही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर अमेरिका सच में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को रोकना चाहता है, तो उसे भारत को एक प्रमुख आर्थिक और रणनीतिक भागीदार के रूप में स्वीकार करना होगा।
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और तकनीकी क्षमता उसे वैश्विक मंच पर एक अहम खिलाड़ी बनाती है। भारत अब सिर्फ एक उभरती अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसके साथ साझेदारी करना किसी भी देश के लिए लाभकारी हो सकता है।
कई विश्लेषकों का कहना है कि यह पत्र अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में भारत की भूमिका को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर ट्रंप प्रशासन इस अपील को गंभीरता से लेता है और व्यापारिक टैरिफ को हटाने के लिए ठोस कदम उठाता है, तो आने वाले महीनों में भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में नई ऊर्जा देखने को मिल सकती है।
अमेरिका की कई टेक कंपनियां पहले ही भारत में निवेश बढ़ाने की योजना बना रही हैं। अगर व्यापारिक माहौल सुधरता है, तो यह प्रवृत्ति और तेज हो सकती है। वहीं, भारत के लिए भी यह एक अवसर होगा कि वह अमेरिकी निवेश को आकर्षित कर अपनी अर्थव्यवस्था को और गति दे सके।