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    किसान पिता की बेटी प्रियल बनी डिप्टी कलेक्टर: 11वीं में फेल होने के बाद तीन बार PCS परीक्षा में पाई कामयाबी

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    भोपाल। मध्य प्रदेश की प्रियल की कहानी संघर्ष और मेहनत की मिसाल बन चुकी है। एक सामान्य किसान परिवार से आने वाली प्रियल ने 11वीं कक्षा में असफलता का सामना किया, लेकिन यह असफलता उनके लिए कभी हताशा का कारण नहीं बनी। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने दृढ़ संकल्प और मेहनत के बल पर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया और अंततः मध्य प्रदेश सिविल सेवा परीक्षा (MPPSC PCS) तीन बार क्रैक कर डिप्टी कलेक्टर बनने का गौरव हासिल किया।

    प्रियल का परिवार भोपाल जिले के एक छोटे गाँव में रहता है। उनके पिता किसान हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति साधारण थी। प्रारंभिक शिक्षा में कई कठिनाइयों का सामना करने वाली प्रियल को 11वीं कक्षा में असफलता का सामना करना पड़ा। अधिकांश लोग मानते कि इस उम्र में छात्र का करियर प्रभावित हो सकता है, लेकिन प्रियल ने अपने आत्मविश्वास और लगन से इसे एक चुनौती के रूप में लिया। उन्होंने जॉब करना शुरू किया और अपने पढ़ाई के समय को संतुलित करके तैयारी जारी रखी।

    तीन बार MPPSC परीक्षा में प्रयास करने के दौरान प्रियल ने असंख्य कठिनाइयों का सामना किया। जॉब और पढ़ाई के बीच संतुलन बनाना, आर्थिक चुनौतियों का सामना करना और परीक्षा की कठिन तैयारी—इन सभी के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी यह दृढ़ता और संघर्ष ने उन्हें अंततः सफलता दिलाई।

    प्रियल की सफलता सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि उनके परिवार और गाँव के लिए भी गर्व का विषय बन गई। उनके पिता ने कहा कि बेटी की मेहनत और धैर्य ने पूरे परिवार का नाम रोशन किया। प्रियल ने यह साबित कर दिया कि सही दिशा में मेहनत और समर्पण से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।

    सिविल सेवा अधिकारी बनने के बाद प्रियल अब अपने क्षेत्र में प्रशासनिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगी। उनकी यह कहानी अन्य युवाओं और विशेषकर लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रही है। कई युवा अब प्रियल की कहानी से यह सीख रहे हैं कि असफलता जीवन का अंत नहीं बल्कि सफलता की ओर पहला कदम हो सकती है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि प्रियल की सफलता इस बात का प्रमाण है कि धैर्य, निरंतर प्रयास और आत्मविश्वास किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में ऐसे उदाहरण युवाओं को प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें अपने सपनों को साकार करने का हौसला देते हैं।

    प्रियल ने अपने जीवन का यह संघर्ष अनुभव साझा करते हुए कहा कि अगर उन्होंने 11वीं में असफल होने पर हिम्मत नहीं हारी होती, तो वह अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाती। उन्होंने यह भी बताया कि जॉब करते हुए परीक्षा की तैयारी करना कठिन था, लेकिन यह उनके आत्मविश्वास और अनुशासन को मजबूत करने वाला अनुभव रहा।

    उनकी इस उपलब्धि ने यह संदेश दिया है कि आर्थिक कठिनाइयाँ या प्रारंभिक असफलताएँ जीवन की राह में बाधा नहीं बन सकती, यदि व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित और दृढ़ निश्चयी हो। प्रियल की कहानी न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे देश के युवाओं और विद्यार्थियों के लिए प्रेरक उदाहरण बन चुकी है।

    डिप्टी कलेक्टर बनने के बाद प्रियल अब प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ कृषि, शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में सुधार और योजनाओं के क्रियान्वयन में योगदान देंगी। उनके अनुभव और संघर्ष का महत्व युवाओं के लिए एक सशक्त संदेश है कि किसी भी परिस्थिति में उम्मीद नहीं खोनी चाहिए।

    इस प्रकार, प्रियल की कहानी यह स्पष्ट करती है कि संघर्ष, धैर्य और लगन ही जीवन में सफलता की कुंजी हैं। एक साधारण किसान परिवार से आने वाली प्रियल ने यह साबित कर दिया है कि कठिनाइयों के बावजूद यदि दृढ़ संकल्प और मेहनत का साथ हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।

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