




रणजीत कुमार | जहानाबाद, बिहार | समाचार वाणी न्यूज़
जहानाबाद की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। क्षेत्र के चर्चित पूर्व सांसद अरुण कुमार ने अपने पुत्र ऋतुराज कुमार के साथ जेडीयू का दामन थाम लिया है। उनकी यह वापसी न केवल पार्टी के लिए बल्कि बिहार की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों के लिहाज से भी अहम मानी जा रही है।
बताया जा रहा है कि अरुण कुमार को जहानाबाद, अरवल या घोसी में से किसी एक विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार के रूप में उतारा जा सकता है। पार्टी में उनके शामिल होने का औपचारिक कार्यक्रम जेडीयू के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित किया गया, जिसमें केंद्रीय मंत्री ललन सिंह, राज्यसभा सांसद संजय झा, विजय कुमार चौधरी, और अशोक चौधरी समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद रहे।
जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने कहा —
“अरुण कुमार, चंद्रेश्वर चंद्रवानी और उनके साथ आने वाले सभी साथियों का हम स्वागत करते हैं। यह उनकी घर वापसी है। वे जंगलराज की वापसी रोकने के लिए हमारे साथ आए हैं। मैं स्वयं सिद्धांतवादी राजनीति में विश्वास रखता हूं और इस बार भी चुनाव नहीं लड़ूंगा।”
अरुण कुमार की यह एंट्री विपक्ष के हालिया कदम का सीधा राजनीतिक जवाब मानी जा रही है। दरअसल, कुछ सप्ताह पहले पूर्व विधायक राहुल शर्मा ने जेडीयू छोड़कर तेजस्वी यादव की मौजूदगी में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का दामन थाम लिया था।
राहुल शर्मा की एंट्री को आरजेडी ने जहानाबाद क्षेत्र में अपनी जातीय और संगठनात्मक पकड़ मजबूत करने के रूप में देखा था।
इसके जवाब में जेडीयू ने भी संतुलन साधने की रणनीति अपनाई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि अरुण कुमार की वापसी से जहानाबाद और आसपास के क्षेत्रों में जेडीयू की पकड़ फिर से मजबूत होगी।
गौरतलब है कि अरुण कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के टिकट पर चुनाव लड़ा था। हालांकि, राजनीतिक परिस्थितियाँ बदलने के बाद उन्होंने अब जेडीयू के साथ वापसी का रास्ता चुना है।
जहानाबाद की राजनीति हमेशा से वर्चस्व की लड़ाई का केंद्र रही है। यहाँ स्थानीय प्रभावशाली नेताओं के बीच मुकाबला वर्षों से जारी है।
तेजस्वी यादव की कोशिश है कि इस क्षेत्र में आरजेडी का प्रभाव और गहराई तक पहुँचे, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री विजय चौधरी की रणनीति इस संतुलन को साधने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अरुण कुमार जैसे पुराने नेता का दोबारा जेडीयू में शामिल होना न केवल पार्टी की संगठनात्मक मजबूती बढ़ाएगा, बल्कि यह संदेश भी देगा कि “जेडीयू अब भी जहानाबाद की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है।”
सूत्रों के अनुसार, पहले भी अरुण कुमार की सदस्यता को लेकर तारीख तय की गई थी, परंतु कुछ दिग्गज नेताओं की आपत्तियों के चलते कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था। इस बार पार्टी नेतृत्व ने किसी भी विरोध की संभावना को दरकिनार करते हुए उन्हें शामिल कर लिया।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह कदम केवल एक ‘शामिल कराने’ की औपचारिकता नहीं, बल्कि इसके पीछे एक गहरी रणनीतिक सोच है —
👉 आरजेडी के जातीय समीकरण को तोड़ना
👉 जहानाबाद में जेडीयू की पुनः जड़ें मजबूत करना
👉 आने वाले विधानसभा चुनाव में विपक्ष को मजबूत चुनौती देना
अरुण कुमार की एंट्री से जहानाबाद की सियासत में नया जोश और प्रतिस्पर्धा दोनों लौट आए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह समीकरण आगे किस दिशा में जाता है।