




भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को विपक्षी नेता राहुल गांधी द्वारा चुनावी मतदाता सूची में अनियमितताओं की जांच के लिए दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। राहुल गांधी ने बेंगलुरु केंद्रीय और अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता सूची में कथित हेराफेरी के आरोप लगाए थे।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास भारत के चुनाव आयोग से संपर्क करने का अधिकार है और उचित राहत के लिए वह चुनाव आयोग का रुख कर सकता है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा, जब तक कि याचिका में ठोस और पर्याप्त प्रमाण न प्रस्तुत किए जाएं।
राहुल गांधी ने पिछले कुछ महीनों में चुनावी मतदाता सूची में फर्जी नामों, दोहराव और अन्य अनियमितताओं के आरोप लगाए थे। उनका दावा था कि इससे चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता प्रभावित हो रही है और यह लोकतंत्र के लिए खतरा है।
उनके इन आरोपों के बाद एक अधिवक्ता ने जनहित याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) गठित किया जाए, जिसकी अध्यक्षता एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार नहीं किया और कहा कि यह मामला चुनाव आयोग के दायरे में आता है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि एक उच्चतम न्यायालय के रूप में उसका काम जांच करना नहीं बल्कि कानूनी विवादों का निपटारा करना है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि “रोविंग इनक्वायरी” यानी बिना ठोस सबूत के हर दावे की स्वतः जांच करने का कोई आधार नहीं है।
इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों के बीच प्रतिक्रिया मिली-जुली रही। कांग्रेस ने इस फैसले को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति एक बाधा बताया, वहीं भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दलों ने इसे “बिना आधार के आरोपों की अस्वीकृति” करार दिया।
विश्लेषकों का मानना है कि इस निर्णय से यह साफ संदेश गया है कि चुनावी प्रक्रिया से संबंधित शिकायतें पहले चुनाव आयोग के समक्ष रखनी होंगी और अदालतों को तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब ठोस प्रमाण हों।
चुनाव आयोग को भी अब इस मामले में अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। मतदाता सूची की सत्यता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आयोग को सतर्कता और सक्रियता के साथ काम करना होगा।
इस मामले में आयोग ने अब तक कोई बड़ा बयान नहीं दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि आगामी समय में आयोग द्वारा मतदाता सूची की जांच को और मजबूत किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल न्यायपालिका की सीमाओं को स्पष्ट करता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की रक्षा के लिए उचित तंत्र की आवश्यकता पर भी जोर देता है। चुनाव आयोग को लोकतंत्र की बुनियादी इकाई वोटर लिस्ट की निष्पक्षता सुनिश्चित करने का दायित्व पूरी गंभीरता से निभाना होगा।