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    भारत करेगा मंगोलिया की बॉर्डर सुरक्षा में मदद, पीएम मोदी बोले – ‘ग्लोबल साउथ’ की ताकत बन रहा भारत

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    भारत और मंगोलिया के बीच रणनीतिक रिश्ते अब एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को नई दिल्ली में मंगोलियाई राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना के साथ उच्चस्तरीय बैठक के बाद ऐलान किया कि भारत अब मंगोलिया की सीमा सुरक्षा (Border Security) को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाएगा। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच गहराते रणनीतिक संबंधों को दर्शाता है, बल्कि भारत की ग्लोबल साउथ में बढ़ती भूमिका का भी प्रतीक है।

    प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत और मंगोलिया सिर्फ मित्र देश नहीं, बल्कि “आध्यात्मिक साझेदार” हैं। उन्होंने कहा, “भारत और मंगोलिया के बीच का रिश्ता हजारों साल पुराना है। यह रिश्ता सिर्फ राजनयिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भी है। हमने आज रक्षा, सुरक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को और मजबूत करने का फैसला किया है।”

    दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत में भारत ने मंगोलिया की सीमाओं को सुरक्षित और तकनीकी रूप से मजबूत बनाने के लिए रक्षा सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। भारत अब मंगोलिया की बॉर्डर सिक्योरिटी एजेंसियों को प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और आधुनिक उपकरण मुहैया कराएगा।

    प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत न केवल एक विकास साझेदार है, बल्कि एक ऐसा मित्र देश है जो अपनी क्षमताओं को साझा कर दूसरों की सुरक्षा में योगदान देना चाहता है। उन्होंने कहा, “भारत की नीति ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ पर आधारित है। हम मानते हैं कि सभी देश एक परिवार हैं। मंगोलिया के साथ हमारा सहयोग इसी भावना का विस्तार है।”

    मंगोलियाई राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना ने प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत मंगोलिया का “टाइम-टेस्टेड फ्रेंड” है। उन्होंने कहा कि मंगोलिया के लोग भारत को केवल एक दोस्त नहीं बल्कि “आध्यात्मिक मार्गदर्शक” के रूप में देखते हैं। उखना ने बताया कि दोनों देशों के बीच सुरक्षा और रक्षा प्रशिक्षण के अलावा, साइबर सुरक्षा, सीमा निगरानी और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में भी सहयोग बढ़ेगा।

    प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कहा कि भारत और मंगोलिया दोनों ही ‘ग्लोबल साउथ’ (Global South) के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, और यह साझेदारी इस बात का प्रमाण है कि विकासशील देश एकजुट होकर वैश्विक संतुलन की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा, “भारत की विदेश नीति का केंद्र बिंदु मानवता और सहयोग है। हम किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहते, बल्कि आत्मनिर्भरता के साथ दूसरों को भी सशक्त करना चाहते हैं।”

    बैठक के दौरान दोनों देशों ने कई अहम समझौते भी किए। इनमें रक्षा उपकरणों के आदान-प्रदान, संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण, और सीमाई इलाकों में निगरानी व्यवस्था को डिजिटल रूप से मजबूत करने के प्रस्ताव शामिल हैं। भारत मंगोलिया को सुरक्षा उपकरणों और बॉर्डर सर्विलांस सिस्टम में तकनीकी सहायता देगा।

    भारत पहले से ही मंगोलिया में ‘ओयू टोलगॉय’ परियोजना के तहत ऊर्जा और खनिज क्षेत्र में निवेश कर रहा है। अब सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ने से दोनों देशों के संबंध और व्यापक हो जाएंगे।

    प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और मंगोलिया के बीच सिर्फ रक्षा ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संबंध भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच बौद्ध धर्म एक मजबूत पुल का काम करता है। पीएम मोदी ने बताया कि भारत की ओर से जल्द ही मंगोलिया में ‘भारत-मंगोलिया बौद्ध सांस्कृतिक केंद्र’ स्थापित किया जाएगा, जो दोनों देशों के बीच आध्यात्मिक जुड़ाव को और गहराई देगा।

    प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत मंगोलिया के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल गवर्नेंस के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाने जा रहा है। उन्होंने कहा, “भारत की तकनीकी प्रगति अब सिर्फ अपने देश तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि मंगोलिया जैसे मित्र देशों के विकास में भी उसका योगदान रहेगा।”

    मंगोलिया के राष्ट्रपति ने पीएम मोदी की नेतृत्व क्षमता की सराहना करते हुए कहा कि भारत आज न केवल एशिया बल्कि दुनिया के लिए एक भरोसेमंद साथी बन चुका है। उन्होंने कहा कि भारत की “ग्लोबल साउथ डिप्लोमेसी” ने विकासशील देशों के लिए नई राह खोली है और मंगोलिया इस दिशा में भारत के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।

    दोनों नेताओं ने यह भी सहमति जताई कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए भारत और मंगोलिया मिलकर कार्य करेंगे। भारत की ओर से यह भी घोषणा की गई कि मंगोलिया की सेना और सीमा बलों के अधिकारियों को भारत में डिफेंस ट्रेनिंग प्रोग्राम्स में शामिल किया जाएगा।

    बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति उखना ने संयुक्त रूप से कहा कि भारत-मंगोलिया संबंध “नए युग में प्रवेश” कर चुके हैं। यह रिश्ता सिर्फ रक्षा या अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह “साझा मूल्यों और पारस्परिक सम्मान” पर आधारित होगा।

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