




दुनिया के मशहूर कमोडिटी निवेशक और ‘कमोडिटी गुरु’ कहे जाने वाले जिम रोजर्स (Jim Rogers) ने एक बार फिर अपनी बेबाक राय से बाजार में हलचल मचा दी है। जब ज्यादातर अर्थशास्त्री और बाजार विश्लेषक सोने-चांदी की कीमतों में भारी उछाल के बाद मुनाफा बुक करने की सलाह दे रहे हैं, तब रोजर्स ने उल्टा रास्ता अपनाने की बात कही है। उनका कहना है कि वह इस समय सोना या चांदी बेचेंगे नहीं, बल्कि गिरावट आने पर और खरीदेंगे।
रोजर्स ने एक इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने निवेश का सबसे बड़ा सबक भारतीय महिलाओं से सीखा है, जो सदियों से कीमती धातुओं को संजोकर रखती हैं। उन्होंने कहा, “भारतीय महिलाएं समझदार निवेशक हैं। वे बाजार की चाल देखकर नहीं, बल्कि दूरदृष्टि से सोना खरीदती हैं। यही असली निवेश की समझ है।”
उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी हैं। सोमवार को भारत में सोना ₹1,24,155 प्रति 10 ग्राम और चांदी ₹1,75,325 प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गई। निवेशकों के बीच यह बहस तेज है कि इतनी ऊंची कीमतों पर अब मुनाफा निकाल लेना चाहिए या और इंतजार करना चाहिए। लेकिन रोजर्स की राय बिल्कुल अलग है।
उन्होंने कहा, “जब हर कोई खरीदने में व्यस्त हो, तब मैं बेचने के बारे में सोचता हूं, और जब लोग डरकर बेच रहे हों, तब मैं खरीदने की योजना बनाता हूं। लेकिन सोना और चांदी ऐसे एसेट हैं जिन्हें मैं कभी पूरी तरह नहीं बेचता। इन्हें मैं धीरे-धीरे इकट्ठा करता हूं, ठीक वैसे जैसे भारत की महिलाएं सदियों से करती आ रही हैं।”
जिम रोजर्स ने आगे कहा कि भारतीय परिवारों में पीढ़ियों से सोने को सिर्फ गहनों के रूप में नहीं, बल्कि एक आर्थिक सुरक्षा कवच के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा, “भारत की महिलाएं सोने को सजावट नहीं, बल्कि भविष्य की मजबूती का प्रतीक मानती हैं। जब बाकी दुनिया कागज़ी संपत्तियों पर भरोसा कर रही थी, तब भारतीय महिलाएं असली संपत्ति — सोना — जमा कर रही थीं।”
यह बात उस आर्थिक सोच को दर्शाती है जो भारत में पीढ़ियों से चली आ रही है। यहां सोना सिर्फ एक कीमती धातु नहीं, बल्कि संस्कृति, सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। जिम रोजर्स का यह बयान न केवल भारतीय निवेश परंपरा की सराहना है, बल्कि आधुनिक निवेशकों को भी यह याद दिलाता है कि असली संपत्ति वही है जो वक्त के साथ अपनी कीमत बनाए रखे।
रोजर्स ने कहा कि मौजूदा बाजार परिस्थितियों में सोना और चांदी के दामों में उतार-चढ़ाव जरूर देखने को मिलेगा, लेकिन दीर्घकालिक निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “दुनिया भर में बढ़ते कर्ज, मुद्रास्फीति और भू-राजनीतिक तनावों के बीच ये धातुएं सुरक्षित निवेश विकल्प हैं। अगले कुछ वर्षों में इनकी मांग और बढ़ेगी।”
उन्होंने मौजूदा आर्थिक नीतियों पर भी निशाना साधते हुए कहा कि कई अर्थशास्त्री और सेंट्रल बैंक यह समझने में असफल रहे हैं कि कागज़ी मुद्रा की सीमाएं क्या हैं। “आज दुनिया के कई देश डॉलर पर निर्भर हैं, लेकिन मुद्रास्फीति और कर्ज के दबाव से अर्थव्यवस्था अस्थिर हो रही है। ऐसे समय में सोना और चांदी निवेश के सबसे भरोसेमंद साधन हैं।”
रोजर्स की राय के मुताबिक, सोने की कीमतें आने वाले महीनों में थोड़ी गिर सकती हैं, लेकिन यह गिरावट खरीदारी का मौका होगी। उन्होंने साफ कहा, “मैं जब भी सोने या चांदी की कीमतों में गिरावट देखता हूं, तो यह मेरे लिए उत्सव जैसा होता है। क्योंकि यही समय होता है और खरीदने का।”
यह पहला मौका नहीं है जब जिम रोजर्स ने भारतीय निवेश परंपरा की तारीफ की हो। इससे पहले भी वह कई बार कह चुके हैं कि भारत में लोगों की आर्थिक सोच बाकी दुनिया से अलग और ज्यादा संतुलित है। उन्होंने कहा था कि भारत में लोग अपने बच्चों को सोने में निवेश का महत्व सिखाते हैं, जबकि पश्चिमी देशों में लोग केवल शेयर या बॉन्ड्स में पैसा लगाते हैं, जो कभी-कभी पूरी तरह खत्म भी हो सकता है।
जिम रोजर्स की इस टिप्पणी ने एक बार फिर इस बहस को हवा दी है कि क्या पारंपरिक निवेश जैसे सोना और चांदी आज के डिजिटल युग में भी प्रासंगिक हैं? लेकिन उनका तर्क साफ है — “समय बदलता है, लेकिन असली मूल्य कभी नहीं बदलता।”
उनकी यह सलाह भारतीय निवेशकों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में सोना न केवल एक निवेश है बल्कि त्योहारों, शादी-ब्याह और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। दिवाली और धनतेरस जैसे मौकों पर जब हर घर में सोने-चांदी की खरीद होती है, तो रोजर्स का यह संदेश निवेशकों के विश्वास को और मजबूत करता है।