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    स्थानीय निकाय चुनावों में 42% OBC आरक्षण “जनता की इच्छा” है: सुप्रीम कोर्ट में तेलंगाना सरकार की दलील

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    तेलंगाना सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका दाखिल की है, जिसमें राज्य में प्रस्तावित स्थानीय निकाय चुनावों में 42% पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण को न्यायसंगत और “जनता की इच्छा” बताया गया है।

    यह याचिका तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उस अंतरिम आदेश के विरुद्ध दायर की गई है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा जारी GO-9 और GO-41, GO-42 पर रोक लगाई गई थी। इन आदेशों के माध्यम से राज्य सरकार ने OBC वर्ग के लिए आरक्षण को 24% से बढ़ाकर 42% कर दिया था।

    तेलंगाना में स्थानीय निकाय (पंचायत और नगरपालिका) चुनाव 23 और 27 अक्टूबर को प्रस्तावित हैं। हाईकोर्ट के आदेश के चलते इन चुनावों में नए आरक्षण मानकों को लागू नहीं किया जा सकता। इसके विरोध में राज्य सरकार ने तुरंत सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

    राज्य सरकार का तर्क है कि OBC को दिया गया 42% आरक्षण सामाजिक वास्तविकताओं पर आधारित है और यह न्याय, समानता और प्रतिनिधित्व की भावना के तहत जरूरी है।

    GO-9 (Government Order-9), जो सितंबर 2025 में जारी किया गया था, स्थानीय निकायों में पिछड़ा वर्ग को 42% आरक्षण प्रदान करता है। इससे पहले यह आरक्षण करीब 24% था। यह बढ़ोतरी राज्य सरकार द्वारा कराए गए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण और BC आयोग की सिफारिशों पर आधारित है।

    इस आदेश को GO-41 और GO-42 द्वारा समर्थन दिया गया, जिसमें आरक्षण प्रक्रिया और नियमों का विस्तृत विवरण था।

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने याचिकाओं के आधार पर GO-9 और संबंधित आदेशों पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा था कि:

    • कुल आरक्षण 50% की संवैधानिक सीमा से अधिक नहीं हो सकता।

    • राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के “ट्रिपल टेस्ट” (Triple Test) नियमों का पूरी तरह पालन नहीं किया।

    • चुनाव आयोग को निर्देश दिया गया कि वह चुनाव पुराने आरक्षण के आधार पर ही कराए।

    राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा:

    “हमने OBC की पहचान, प्रतिनिधित्व की स्थिति का मूल्यांकन और आरक्षण की आवश्यकता का डेटा तैयार किया है। यह आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 243D और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है।”

    तेलंगाना सरकार ने अपनी याचिका में यह स्पष्ट किया कि यह प्रस्ताव केवल आंकड़ों या राजनीतिक लाभ के लिए नहीं है, बल्कि यह राज्य की जनता, विशेष रूप से पिछड़ा वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करता है।

    सरकार ने कहा कि:

    “हमारा प्रयास है कि पंचायत और शहरी निकायों में OBC समुदाय को उनकी वास्तविक संख्या और योगदान के अनुसार प्रतिनिधित्व मिले। यह ‘लोकतांत्रिक भागीदारी’ का अधिकार है, जो उन्हें संविधान देता है।”

    इस पूरे विवाद पर राजनीतिक घमासान भी तेज हो गया है:

    • BRS (भारत राष्ट्र समिति) नेता के.टी. रामाराव ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने BC समुदाय से किया गया वादा तोड़ दिया है।

    • कांग्रेस सरकार का जवाब है कि वे OBC समाज को उसका हक दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी कर रहे हैं।

    • सामाजिक कार्यकर्ताओं और BC संगठनों ने सरकार के इस कदम का समर्थन करते हुए राज्यव्यापी प्रदर्शन और रैलियों की चेतावनी दी है।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए Triple Test के अनुसार, किसी भी राज्य को स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण लागू करने से पहले 3 शर्तें पूरी करनी होती हैं:

    1. OBC समुदाय की पहचान और जनसंख्या का निर्धारण।

    2. राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उनकी भागीदारी का मूल्यांकन।

    3. आरक्षण की आवश्यकता पर आधारित ठोस आधार।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि तेलंगाना सरकार ने इन तीनों प्रक्रियाओं का पूर्ण और पारदर्शी अनुपालन नहीं किया है। वहीं राज्य सरकार का दावा है कि यह प्रक्रिया पूरी कर ली गई है और वे दस्तावेजों के साथ सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत हैं।

    यह विवाद अब केवल एक सरकारी आदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक प्रतिनिधित्व के बीच संतुलन की बहस बन चुका है।

    एक ओर संविधान की 50% आरक्षण सीमा की पाबंदी है, तो दूसरी ओर सामाजिक न्याय की वास्तविक आवश्यकता है, जो विभिन्न जातियों, समुदायों को राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भागीदारी देती है।

    • सुप्रीम कोर्ट आने वाले दिनों में इस मामले पर सुनवाई करेगा।

    • यदि कोर्ट राज्य सरकार की दलीलें मानता है, तो स्थानीय निकाय चुनाव 42% OBC आरक्षण के आधार पर होंगे।

    • अगर स्टे जारी रहता है, तो चुनाव पुराने 24% आरक्षण पर होंगे, जिससे OBC समाज का प्रतिनिधित्व कम होगा।

    • इससे तेलंगाना में राजनीतिक समीकरण, दलों की रणनीति और आगामी विधानसभा चुनावों पर भी असर पड़ सकता है।

    तेलंगाना सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में रखी गई यह दलील कि “42% OBC आरक्षण जनता की इच्छा है” — सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं बल्कि भारत के सामाजिक न्याय मॉडल की अग्नि परीक्षा बन गया है।

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