




भारत में चांदी के बाजार में इन दिनों अजीब स्थिति देखने को मिल रही है। एक ओर तो चांदी की कीमत 1.82 लाख रुपये प्रति किलो के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है, वहीं दूसरी ओर बाजार में इसकी उपलब्धता बेहद कम हो गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार, इस साल देश में विदेशों से भारी मात्रा में चांदी का आयात हुआ है। इसके बावजूद यह चांदी बाजार से लगभग “गायब” है। इससे संकेत मिल रहे हैं कि कहीं न कहीं जमाखोरी का खेल चल रहा है, जिस पर अब सरकार की नजर है।
वित्त मंत्रालय और वाणिज्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में भारत ने रिकॉर्ड स्तर पर चांदी का आयात किया है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बुलियन निवेशकों और आभूषण उद्योग की बढ़ती मांग के चलते भारत में चांदी की खपत में वृद्धि देखी जा रही है। बावजूद इसके, खुदरा बाजारों और थोक मंडियों में चांदी की आपूर्ति घट गई है।
दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर और सूरत जैसे बड़े बुलियन केंद्रों में व्यापारी इस समय चांदी की आपूर्ति की कमी की शिकायत कर रहे हैं। कई सर्राफा व्यापारियों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों से बड़े खरीदारों ने चांदी को स्टॉक कर लिया है और अब बाजार में इसकी आवक सीमित कर दी गई है। इससे कीमतों में कृत्रिम तेजी बनी हुई है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, वित्त मंत्रालय और प्रवर्तन निदेशालय (ED) अब इस पर बारीकी से नजर रख रहे हैं कि आखिर इतनी बड़ी मात्रा में आयात की गई चांदी बाजार में क्यों नहीं पहुंच रही। सरकार को संदेह है कि कुछ बड़े कारोबारी और निवेश समूह चांदी को अपने गोदामों में जमा कर रहे हैं ताकि आने वाले महीनों में ऊंचे दाम पर बेचकर बड़ा मुनाफा कमा सकें।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मंत्रालय ने आयात और बिक्री के आंकड़ों में अंतर को लेकर जांच शुरू कर दी है। शुरुआती रिपोर्टों में यह सामने आया है कि पिछले छह महीनों में भारत ने लगभग 7,000 टन से अधिक चांदी आयात की है, जबकि बाजार में उसका केवल 60 प्रतिशत हिस्सा ही कारोबार में दिखाई दे रहा है। यह संकेत देता है कि चांदी का एक बड़ा हिस्सा कहीं न कहीं रोका जा रहा है।
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चांदी की कीमतों में तेजी बनी हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता, डॉलर की कमजोरी और निवेशकों के बुलियन की ओर झुकाव के कारण सोने और चांदी दोनों की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। भारत में त्योहारी सीजन और शादी के मौसम की शुरुआत के कारण भी चांदी की मांग लगातार बढ़ रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि निवेशकों ने चांदी को “सेफ हेवन एसेट” के रूप में अपनाना शुरू कर दिया है। भारत में भी निवेशक अब सोने की तुलना में चांदी में अधिक रुझान दिखा रहे हैं, क्योंकि यह कम लागत में अधिक रिटर्न देने वाला विकल्प बन रहा है।
हालांकि, कीमतों में यह तेज उछाल और बाजार में आपूर्ति की कमी सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है। उपभोक्ताओं के लिए यह स्थिति परेशानी भरी है क्योंकि चांदी के आभूषण, बर्तन और औद्योगिक उपयोग में आने वाले उत्पादों की कीमतें भी बढ़ती जा रही हैं।
सरकार ने बुलियन एसोसिएशन, व्यापार संघों और प्रमुख चांदी आयातकों से इस मामले पर स्पष्टीकरण मांगा है। वित्त मंत्रालय ने साफ किया है कि यदि जमाखोरी की पुष्टि होती है, तो संबंधित कारोबारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसमें GST खाता जांच, आयकर छापे, और आयात परमिट रद्द करने जैसी सख्त कार्यवाहियां शामिल हो सकती हैं।
व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में यदि सरकार बाजार में निगरानी बढ़ाती है, तो चांदी की कृत्रिम कमी समाप्त हो सकती है और कीमतों में कुछ नरमी देखी जा सकती है। फिलहाल निवेशकों और उपभोक्ताओं को सतर्क रहने की सलाह दी जा रही है क्योंकि बुलियन मार्केट में सट्टेबाजी का दौर तेज है।
दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले महीनों में औद्योगिक मांग (खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और सोलर पैनल उद्योग में) बढ़ने के कारण चांदी की वैश्विक कीमतों में और उछाल संभव है। ऐसे में भारत में भी कीमतें स्थिर होने के बजाय और बढ़ सकती हैं।
सरकार की प्राथमिकता अब यह सुनिश्चित करना है कि जमाखोरी रोकने के लिए प्रभावी तंत्र लागू किया जाए, जिससे आम उपभोक्ता को राहत मिले और बाजार में पारदर्शिता बनी रहे।