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    केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया: तीन महीने में OTT एक्सेसिबिलिटी दिशा‑निर्देश जारी होंगे

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    केंद्र सरकार ने गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025 को दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि वह तीन महीनों के भीतर ओटीटी (OTT) प्लेटफ़ॉर्म पर दृष्टिहीन और श्रवण बाधित उपयोगकर्ताओं के लिए एक्सेसिबिलिटी (Accessibility) संबंधी दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देगी।

    यह आश्वासन एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर दिखाए जा रहे कंटेंट में दिव्यांगजनों के लिए जरूरी सुविधाएं, जैसे ऑडियो विवरण (audio descriptions), बंद उपशीर्षक (closed captions) और संकेत भाषा (sign language) का घोर अभाव है।

    न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार के इस रुख को दर्ज करते हुए कहा कि अब जब दिशा-निर्देशों की प्रक्रिया सक्रिय रूप से चल रही है, तो फिलहाल कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अंतिम दिशा-निर्देश असंगत या अधूरे पाए जाते हैं, तो याचिकाकर्ता दोबारा न्यायालय का रुख कर सकते हैं।

    सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information & Broadcasting) ने अदालत को बताया कि वह एक्सेसिबल कंटेंट को लेकर एक ड्राफ्ट गाइडलाइन तैयार कर चुका है, जिसे मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया गया है और 22 अक्टूबर 2025 तक आम जनता व हितधारकों से सुझाव मांगे गए हैं।

    इस ड्राफ्ट में यह प्रस्ताव रखा गया है कि:

    • ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म ऑडियो डिस्क्रिप्शन, क्लोज़्ड कैप्शनिंग और संकेत भाषा को अपनी सामग्री में शामिल करें।

    • नई सामग्री में कम से कम एक एक्सेसिबिलिटी फीचर होना अनिवार्य हो।

    • पुराने कंटेंट को भी चरणबद्ध तरीके से एक्सेसिबल बनाने का प्रयास किया जाए।

    • लाइव स्ट्रीम, विज्ञापन और केवल ऑडियो आधारित सामग्री (जैसे पॉडकास्ट) पर यह नियम लागू नहीं होगा।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने अदालत को बताया कि कई बड़े ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, हॉटस्टार आदि में हजारों शो और फिल्में हैं जिनमें दृष्टिहीन या श्रवण बाधित दर्शकों के लिए कोई सुविधा नहीं दी गई है। यह भारत के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) का उल्लंघन है।

    उन्होंने कोर्ट से अपील की कि सरकार को जल्द से जल्द बाध्यकारी दिशा-निर्देश बनाने के लिए निर्देशित किया जाए ताकि डिजिटल कंटेंट का समावेशीकरण हो सके।

    भारत में डिजिटल क्रांति तेजी से फैल रही है, और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म अब मुख्यधारा की मनोरंजन व्यवस्था बन चुके हैं। लेकिन यदि ये प्लेटफ़ॉर्म समाज के एक बड़े वर्ग — विशेषकर दिव्यांगजनों — को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो यह डिजिटल समानता की मूल भावना का उल्लंघन है।

    दृष्टिबाधित और श्रवण बाधित दर्शक भी समाज के उतने ही हिस्से हैं जितने कोई और, और उन्हें समान रूप से मनोरंजन, सूचना और ज्ञान तक पहुंच होनी चाहिए।

    यदि ये दिशानिर्देश समय पर लागू होते हैं:

    • ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म ज्यादा समावेशी (inclusive) बनेंगे।

    • दिव्यांग दर्शकों को बेहतर उपयोगकर्ता अनुभव मिलेगा।

    • भारत डिजिटल समानता की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ाएगा।

    • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सामाजिक नीतियों की सराहना होगी।

    • पुराने कंटेंट को एक्सेसिबल बनाना खर्चीला और तकनीकी दृष्टि से जटिल हो सकता है।

    • सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म तकनीकी रूप से इतने सक्षम नहीं हैं।

    • प्ले-बैक सिस्टम्स और यूजर इंटरफेस को बदलने में समय और संसाधन लगेंगे।

    • निगरानी तंत्र की कमी होने से पालन सुनिश्चित कराना कठिन हो सकता है।

    केंद्र सरकार द्वारा तीन महीने में OTT एक्सेसिबिलिटी दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने का वादा एक स्वागतयोग्य कदम है। इससे दृष्टिबाधित और श्रवण बाधित समुदायों को मनोरंजन की दुनिया में उनकी उचित भागीदारी मिल सकेगी।

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