




भारतीय राजनीति में एक बार फिर संपत्ति और पारदर्शिता को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने झारखंड के गोड्डा से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे और उनकी पत्नी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि पिछले 15 वर्षों में निशिकांत दुबे और उनकी पत्नी की संपत्ति में असामान्य रूप से वृद्धि हुई है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब आय में इतनी तेजी से बढ़ोतरी नहीं हुई, तो फिर संपत्ति 50 लाख रुपये से बढ़कर 32 करोड़ रुपये कैसे पहुंच गई?
सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि निशिकांत दुबे चार बार के सांसद हैं और लंबे समय से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं। कांग्रेस का आरोप है कि उनके आर्थिक हलफनामों में यह साफ दिखाई देता है कि 2009 में उनकी पत्नी के नाम पर दर्ज संपत्ति लगभग 50 लाख रुपये थी, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 32 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। श्रीनेत ने सवाल उठाते हुए कहा, “जब सांसद की घोषित आय में कोई बड़ी छलांग नहीं लगी, तो यह संपत्ति का बढ़ना आखिर किस माध्यम से हुआ? क्या यह जनता के पैसे से अर्जित संपत्ति नहीं है?”
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह मामला केवल व्यक्तिगत लाभ का नहीं बल्कि सत्ता के दुरुपयोग का उदाहरण है। पार्टी ने कहा कि यह वही बीजेपी है जो पारदर्शिता और नैतिक राजनीति की बात करती है, लेकिन उसके अपने सांसद की संपत्ति में हुई इस अप्राकृतिक बढ़ोतरी पर कोई सफाई नहीं दी जा रही है। सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि कांग्रेस इस मामले की जांच की मांग करेगी और संबंधित एजेंसियों को औपचारिक शिकायत भी सौंपेगी।
उन्होंने यह भी कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात करते हैं, लेकिन उनके ही सांसदों की संपत्ति में इतनी तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है। अगर सरकार ईमानदार है, तो निशिकांत दुबे और उनकी पत्नी की संपत्ति की जांच कराने में क्या हर्ज है?” कांग्रेस नेता ने भाजपा पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया और कहा कि सत्ता में रहते हुए भाजपा नेता खुद को कानून से ऊपर मानने लगे हैं।
कांग्रेस की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। विपक्ष ने इसे सरकार की नैतिकता पर सीधा हमला बताया है। दूसरी ओर, बीजेपी की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, निशिकांत दुबे अपने तीखे और बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं और संभावना है कि वे इन आरोपों पर जल्द प्रतिक्रिया देंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला केवल एक सांसद की संपत्ति तक सीमित नहीं रहेगा। इससे व्यापक राजनीतिक बहस छिड़ सकती है कि आखिर जनप्रतिनिधियों की आय और संपत्ति में पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की जाए। देश में यह मुद्दा पहले भी कई बार उठा है कि नेताओं की घोषित संपत्ति चुनाव दर चुनाव कई गुना बढ़ जाती है, जबकि उनकी आधिकारिक आय का स्रोत स्पष्ट नहीं होता।
निशिकांत दुबे, जो संसद में अर्थव्यवस्था, मीडिया नीति और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए जाने जाते हैं, अब खुद सवालों के घेरे में आ गए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि उन्होंने अपने प्रभाव और राजनीतिक संबंधों का उपयोग कर निजी संपत्ति में अप्राकृतिक वृद्धि की। वहीं, बीजेपी समर्थक यह तर्क दे रहे हैं कि इस तरह के आरोप केवल राजनीतिक लाभ के लिए लगाए जा रहे हैं और कांग्रेस आगामी चुनावों से पहले विवाद खड़ा करने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने यह भी कहा कि पार्टी इस मामले को संसद में उठाने पर विचार कर रही है और अगर आवश्यक हुआ तो कोर्ट का भी रुख किया जाएगा। उन्होंने कहा, “यह मामला जनता के विश्वास का है। जब सांसद जनता के प्रतिनिधि हैं, तो उन्हें अपने आर्थिक व्यवहार में पारदर्शिता रखनी चाहिए।”
इस बीच, सोशल मीडिया पर भी यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस नेताओं ने निशिकांत दुबे के हलफनामों और पुराने बयानों के क्लिप साझा करते हुए सवाल उठाया है कि जो व्यक्ति खुद भ्रष्टाचार पर दूसरों को उपदेश देता है, वह अपनी संपत्ति में हुई इस छलांग का स्पष्टीकरण क्यों नहीं दे रहा।
वहीं, बीजेपी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस जानबूझकर चुनावी माहौल में गलत धारणा फैलाने की कोशिश कर रही है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि निशिकांत दुबे एक सफल प्रोफेशनल पृष्ठभूमि से आते हैं और उन्होंने अपनी कमाई का विस्तृत ब्यौरा पहले ही चुनाव आयोग में जमा किया है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह मामला राजनीतिक रूप से कितना तूल पकड़ता है और क्या वास्तव में इस पर कोई जांच शुरू होती है। फिलहाल, कांग्रेस ने बीजेपी पर सीधा हमला बोलकर सियासी माहौल को गर्म कर दिया है, जबकि भाजपा फिलहाल इस मामले पर रणनीतिक चुप्पी साधे हुए है।
देश की जनता के बीच यह बहस अब और तेज होती दिख रही है — क्या जनप्रतिनिधियों की संपत्ति में हुई अप्राकृतिक बढ़ोतरी पर स्वतः जांच होनी चाहिए? क्या सत्ता में बैठे नेताओं को भी उतनी ही जवाबदेही दिखानी चाहिए, जितनी वे विपक्ष से अपेक्षा करते हैं? इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।