




जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार (17 अक्टूबर, 2025) को राज्य का दर्जा बहाल करने की पुरजोर मांग दोहराई। उन्होंने कहा कि राज्य का दर्जा मिलने से एक चुनी हुई सरकार को और अधिक अधिकार मिलेंगे, जिससे वह जनता से किए गए चुनावी वादों को प्रभावी रूप से पूरा कर सकेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा,
“हमने पिछले विधानसभा चुनावों में जो वादे जनता से किए थे, उन्हें पूरा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त अधिकार नहीं हैं। यदि जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिया जाए, तो सरकार उन समस्याओं का समाधान बेहतर तरीके से कर सकती है।”
इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उनकी पार्टी के एक विधायक ने भूमि अनुदान (Land Grant) से संबंधित एक विधेयक भी तैयार किया है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट नहीं किया कि वह विधेयक विधानसभा में पेश किया जाएगा या नहीं।
5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया था। तब से ही राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग निरंतर उठ रही है।
ओमर अब्दुल्ला सहित कई क्षेत्रीय नेताओं और दलों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिया जाना चाहिए, जिससे यहां की निर्वाचित सरकार को अपने लोगों की समस्याओं के समाधान का पूर्ण अधिकार मिल सके।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान न केवल राज्य के अंदर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बहस को फिर से जन्म दे सकता है। एनसी, पीडीपी, कांग्रेस सहित कई दल राज्य का दर्जा वापस देने की मांग पहले भी कर चुके हैं।
भाजपा की ओर से अब तक इस पर कोई नई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पहले सरकार यह कहती रही है कि राज्य का दर्जा “उचित समय पर” बहाल किया जाएगा।
स्थानीय नागरिकों का मानना है कि राज्य का दर्जा वापस मिलने से प्रशासनिक जवाबदेही बढ़ेगी और विकास कार्यों में तेजी आएगी। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद निर्णयों में स्थानीय भागीदारी कम हुई है, जिससे लोगों में असंतोष बढ़ा है।
मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला की राज्य का दर्जा बहाल करने की यह ताजा मांग आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक अहम मुद्दा बन सकती है। अब सभी की निगाहें केंद्र सरकार की अगली रणनीति पर टिकी होंगी।