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    कर्नाटक CM सिद्धारमैया ने नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति को ली नसीहत — कहा, सामाजिक‑शैक्षिक सर्वेक्षण सिर्फ पिछड़ी जातियों तक सीमित नहीं

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    कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी, राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति को सामाजिक‑शैक्षिक सर्वेक्षण में भाग न लेने को लेकर आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि यह सर्वेक्षण केवल पिछड़ी जातियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य के सभी वर्गों और समुदायों को शामिल करता है।

    मुख्यमंत्री ने कहा,

    “शायद उन्होंने यह मान लिया कि सर्वे केवल पिछड़ी जातियों के लिए है। लेकिन हम पहले ही कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि यह एक समावेशी जनगणना है, जिसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करना है।”

    नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति ने स्वयं को सर्वेक्षण से अलग रखने का निर्णय लिया था। सुधा मूर्ति ने एक स्वयं-घोषणा में कहा कि उनका पारिवारिक या सामाजिक स्थिति इस सर्वेक्षण के उद्देश्यों में कुछ विशेष योगदान नहीं दे सकती, और इसलिए उन्होंने भाग नहीं लिया।

    उनका यह रुख सामाजिक और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। कई लोगों ने इसे निजी निर्णय मानकर सम्मानित किया, वहीं कुछ लोगों ने इसे सामाजिक जिम्मेदारी से दूर रहने के रूप में देखा।

    कर्नाटक सरकार द्वारा करवाया जा रहा यह सर्वेक्षण राज्य में निवास करने वाले सभी नागरिकों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति की व्यापक जांच है। इसका उद्देश्य नीति निर्धारण में वास्तविक आंकड़ों का उपयोग करना है जिससे वंचित वर्गों को सही योजनाओं का लाभ मिल सके।

    सर्वेक्षण में जाति, शिक्षा स्तर, आय, सामाजिक स्थिति, संपत्ति की जानकारी जैसी सूचनाएँ शामिल की जा रही हैं। सरकार ने कहा है कि इन सूचनाओं को पूर्णतः गोपनीय रखा जाएगा।

    मुख्यमंत्री ने खुद इस सर्वेक्षण की प्रगति की निगरानी की और लोगों से इसमें स्वैच्छिक भागीदारी की अपील की। उन्होंने कहा,

    “यह किसी जाति विशेष का सर्वे नहीं है। यह राज्य के भविष्य के लिए आवश्यक नीति निर्माण का एक वैज्ञानिक कदम है।”

    कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी निर्देश दिया है कि नागरिकों की भागीदारी स्वैच्छिक होनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

    इसके साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी नागरिक का व्यक्तिगत डेटा गलत तरीके से प्रयोग न हो।

    सिद्धारमैया के बयान — “क्या इंफोसिस वाले भगवान हैं?” — को लेकर विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री को जिम्मेदारी से बयान देना चाहिए और प्रतिष्ठित नागरिकों के खिलाफ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

    बीजेपी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार इस सर्वेक्षण के माध्यम से जातिगत ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है और आम जनता को बांटने की राजनीति की जा रही है।

    सर्वेक्षण को लेकर आम जनता के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं। कुछ इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे सरकार की राजनीतिक चाल कहते हैं।

    विशेष रूप से तकनीकी और शिक्षित वर्ग में यह बहस चल रही है कि क्या इस प्रकार का सर्वेक्षण निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है, या यह सही नीति निर्माण का आधार हो सकता है।

    सामाजिक‑शैक्षिक सर्वेक्षण को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का बयान एक बड़ी बहस की शुरुआत कर चुका है। नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति जैसे सम्मानित नागरिकों के निर्णय पर सरकार की प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है कि सरकार सभी नागरिकों की भागीदारी चाहती है।

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