




महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। स्थानीय निकाय चुनावों की घोषणा भले अभी बाकी हो, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। मुंबई से लेकर ठाणे तक, सत्ताधारी महायुति के भीतर ही अब मतभेदों और असहजता की फुसफुसाहट तेज़ हो गई है। इसी बीच एक बीजेपी नेता के बयान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। उन्होंने कहा, “हम गठबंधन नहीं तोड़ रहे, बस चिंता यही है कि कुछ जगहों पर कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर न पड़े।”
इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इसे लेकर यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या वास्तव में बीजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा? ठाणे, मुंबई और पुणे जैसे इलाकों में दोनों दलों के कार्यकर्ता टिकट बंटवारे और स्थानीय स्तर पर तालमेल को लेकर नाराज बताए जा रहे हैं।
दरअसल, ठाणे में आयोजित बीजेपी के मार्गदर्शन शिविर में प्रदेश और जिला स्तर के कई वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद थे। बैठक में कार्यकर्ताओं को आगामी निकाय चुनावों में “अबकी बार 70 पार” का लक्ष्य दिया गया। इस दौरान कुछ नेताओं ने कहा कि पार्टी को अपने बूते पर चुनावी ताकत साबित करनी चाहिए, जिससे संगठन मजबूत बने। इसी संदर्भ में एक नेता ने कहा कि “गठबंधन को तोड़ने का सवाल नहीं है, लेकिन स्थानीय स्तर पर हमें आत्मनिर्भर बनना होगा, क्योंकि कुछ सीटों पर सहयोगी दलों के साथ समन्वय की समस्या आ रही है।”
इस बयान को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी नेतृत्व अपने कार्यकर्ताओं को तैयार कर रहा है, ताकि किसी भी परिस्थिति में चुनावी रणनीति पर असर न पड़े। दूसरी ओर, शिवसेना (शिंदे गुट) में इस बयान को लेकर बेचैनी बढ़ गई है। सूत्रों के मुताबिक, कई नेता यह मानते हैं कि बीजेपी धीरे-धीरे गठबंधन के भीतर दबाव बनाकर अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी है।
ठाणे, जो एकनाथ शिंदे का राजनीतिक गढ़ माना जाता है, वहां बीजेपी की सक्रियता बढ़ना कई सवाल खड़े कर रहा है। पिछले चुनावों में भी दोनों दलों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर विवाद सामने आया था। इस बार बीजेपी ने न केवल ठाणे बल्कि मुंबई महानगर क्षेत्र में भी अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए संगठनात्मक बैठकें शुरू कर दी हैं।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी का मकसद गठबंधन को कमजोर करना नहीं, बल्कि उसे और मजबूत बनाना है। लेकिन इस मजबूती की दिशा में पार्टी अपने बूते पर चुनावी जीत का भरोसा बढ़ाना चाहती है। उन्होंने कहा कि “महाराष्ट्र में महायुति अटूट है। सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस एकजुट हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर कुछ मुद्दों को सुलझाने की जरूरत है।”
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान बीजेपी की दोहरी रणनीति का हिस्सा है। एक ओर पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि वह गठबंधन के प्रति प्रतिबद्ध है, वहीं दूसरी ओर, वह अपने संगठन को मजबूत करके स्वतंत्र राजनीतिक पहचान भी बनाए रखना चाहती है।
इस बीच, शिवसेना के नेताओं ने भी पलटवार करना शुरू कर दिया है। शिंदे गुट के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि “बीजेपी को चिंता करने की जरूरत नहीं है। गठबंधन पहले से ज्यादा मजबूत है और हम साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे।” हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्र यह स्वीकार करते हैं कि टिकट वितरण को लेकर कई जिलों में तनाव की स्थिति है।
मुंबई और ठाणे में आगामी चुनावों को लेकर महायुति के भीतर तालमेल बैठाने की चुनौती सबसे बड़ी मानी जा रही है। ठाणे में बीजेपी लगातार जनसभाएं और पदाधिकारी बैठकें आयोजित कर रही है, जबकि शिवसेना अपने गढ़ में पकड़ बनाए रखने के लिए रैलियां और जनसंपर्क अभियान चला रही है।
राजनीतिक जानकार यह भी कह रहे हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र में 2027 की बड़ी तैयारी में जुटी है। पार्टी स्थानीय निकाय चुनावों को “लिटमस टेस्ट” मान रही है। अगर वह अपने बूते मजबूत प्रदर्शन कर पाती है, तो भविष्य में विधानसभा चुनावों में भी उसके लिए रास्ता आसान होगा।
वहीं, विपक्ष इस स्थिति का मज़ाक उड़ाने से नहीं चूका। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी – शरद पवार गुट) ने कहा कि बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन “विचारधारा का नहीं, बल्कि मजबूरी का गठबंधन” है, जो चुनावी मौसम में कभी भी टूट सकता है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से गठबंधन की मजबूरी और समीकरणों की चालों से भरी रही है। भले ही बीजेपी नेता ने यह साफ किया कि “हम गठबंधन नहीं तोड़ रहे”, लेकिन जिस “चिंता” की बात उन्होंने की, वह यही दिखाती है कि सबकुछ सामान्य नहीं है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि महायुति आने वाले दिनों में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए टिकट वितरण और प्रचार रणनीति में कितना समन्वय बना पाती है। फिलहाल, ठाणे और मुंबई की जमीन पर सियासी तापमान लगातार बढ़ रहा है — और इस बयान ने उसमें और आग भर दी है।