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    H-1B वीज़ा शुल्क पर विवाद: ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ यू.एस. चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने दायर किया मुकदमा

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    अमेरिका की सबसे बड़ी व्यापारिक संस्था यू.एस. चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। यह मुकदमा H‑1B वीज़ा के लिए प्रस्तावित $100,000 (लगभग 83 लाख रुपये) के नए वार्षिक शुल्क को गैरकानूनी और व्यवसाय विरोधी बताते हुए दायर किया गया है।

    यह मामला अमेरिकी आव्रजन नीति, व्यापारिक हितों, और वैश्विक प्रतिभा की आवाजाही के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

    सितंबर 2025 में ट्रम्प प्रशासन ने यह घोषणा की थी कि H‑1B वीज़ा आवेदनों पर अब $100,000 का वार्षिक शुल्क लागू होगा।

    यह शुल्क उन नियोक्ताओं पर लागू होगा जो विदेशी कुशल श्रमिकों को H‑1B वीज़ा के अंतर्गत अमेरिका लाना चाहते हैं।

    प्रशासन ने इसका कारण बताते हुए कहा कि इस नीति का उद्देश्य है “अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देना” और “विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता कम करना।”

    यू.एस. चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने इस कदम को न केवल कानून के विरुद्ध बताया है, बल्कि यह भी कहा कि इससे अमेरिका की आर्थिक प्रतिस्पर्धा को भी गहरा नुकसान हो सकता है।

    प्रमुख दलीलें:

    1. संवैधानिक उल्लंघन:
      यह शुल्क Immigration and Nationality Act का उल्लंघन करता है, जो वीज़ा प्रोग्राम को रेगुलेट करता है। राष्ट्रपति इस स्तर का शुल्क लागू करने के लिए अधिकृत नहीं हैं।

    2. प्रशासनिक प्रक्रिया का उल्लंघन:
      बिना सार्वजनिक टिप्पणी और संसदीय समीक्षा के, इस प्रकार की नीति को लागू करना Administrative Procedure Act के खिलाफ है।

    3. व्यवसायों पर असर:
      यह शुल्क विशेष रूप से छोटे व्यवसायों, स्टार्टअप्स और तकनीकी कंपनियों के लिए बाधा बन सकता है, जो अपने विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा पर निर्भर हैं।

    4. प्रतिस्पर्धा को नुकसान:
      यह निर्णय वैश्विक कंपनियों को अमेरिका से बाहर प्रतिभा खोजने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे देश की तकनीकी प्रतिस्पर्धा कमजोर हो सकती है।

    • विदेशी पेशेवर:
      भारत, चीन और अन्य देशों के हज़ारों इंजीनियर, डॉक्टर और IT विशेषज्ञ हर साल H‑1B वीज़ा के तहत अमेरिका जाते हैं। इस शुल्क से उनके लिए अमेरिका जाना और भी कठिन हो जाएगा।

    • अमेरिकी कंपनियाँ:
      गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न जैसी टेक कंपनियाँ पहले ही इस नीति पर चिंता जता चुकी हैं।

    • छोटे व्यवसाय:
      जो कंपनियाँ सीमित संसाधनों के साथ अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा की ओर देखती हैं, उन्हें यह शुल्क रोक सकता है।

    चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने इस नीति को चुनौती देते हुए District Court of Columbia में मुकदमा दायर किया है। उन्होंने मांग की है कि:

    • यह शुल्क तुरंत रद्द किया जाए

    • इसे संविधान और इमिग्रेशन कानूनों के खिलाफ घोषित किया जाए

    • अदालत यह स्पष्ट करे कि कार्यकारी आदेश (Executive Order) के जरिए इस तरह के भारी शुल्क लागू नहीं किए जा सकते

    ट्रम्प प्रशासन के प्रवक्ताओं का कहना है कि:

    “यह नीति अमेरिका की श्रमिक अर्थव्यवस्था को बचाने और स्थायी बनाने की दिशा में उठाया गया आवश्यक कदम है।”

    हालाँकि, सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि $100,000 शुल्क की गणना कैसे की गई और इसे लागू करने की प्रक्रिया किस तरह तय की गई थी।

    • भारत:
      भारत सरकार ने अमेरिका के समक्ष इस नीति को लेकर राजनयिक चिंता व्यक्त की है, क्योंकि सबसे अधिक H‑1B वीज़ा धारक भारत से ही होते हैं।

    • संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक कंपनियाँ:
      कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इसे “प्रतिभा विरोधी नीति” बताते हुए आलोचना की है।

    इस मुकदमे की सुनवाई आगामी हफ्तों में शुरू होने की संभावना है। यदि अदालत ने चेम्बर के पक्ष में निर्णय दिया:

    • तो यह शुल्क रद्द हो सकता है

    • अमेरिका में विदेशी पेशेवरों के लिए फिर से अवसर खुल सकते हैं

    • प्रशासन की शक्ति को सीमित करने की दिशा में यह फैसला मिसाल बन सकता है

    यदि अदालत ने प्रशासन के पक्ष में फैसला सुनाया:

    • तो कंपनियों के लिए अमेरिका में प्रतिभा लाना और महंगा हो जाएगा

    • अमेरिकी टेक सेक्टर को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में नुकसान उठाना पड़ सकता है

    H‑1B वीज़ा पर $100,000 शुल्क और उसके खिलाफ मुकदमा सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि यह अमेरिका की प्रतिभा नीति, व्यवसायिक स्वतंत्रता, और आप्रवासन दर्शन पर सीधा प्रभाव डालने वाला मामला है।

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