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    बदरीनाथ धाम के पास कुबेर पर्वत से टूटा ग्लेशियर, कंचनगंगा नाले में गिरे मलबे से मचा हड़कंप, प्रशासन अलर्ट पर

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    उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम के पास एक बार फिर प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिला है। शुक्रवार को कुबेर पर्वत से एक बड़ा ग्लेशियर टूटने की घटना सामने आई, जिसने पूरे क्षेत्र में हड़कंप मचा दिया। ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटकर नीचे स्थित कंचनगंगा नाले में गिर गया, जिससे नाले में भारी मलबा और बर्फ जमा हो गया। इस घटना की जानकारी मिलते ही स्थानीय प्रशासन, पुलिस और एसडीआरएफ (SDRF) की टीमें तुरंत मौके पर पहुंच गईं और इलाके की स्थिति का जायजा लेने में जुट गईं।

    स्थानीय लोगों और यात्रियों ने बताया कि दोपहर के समय अचानक पहाड़ की ऊपरी सतह से तेज आवाज आई, जिसके कुछ ही सेकंड बाद मलबे का बड़ा हिस्सा नाले की ओर गिरता दिखाई दिया। मलबे के साथ उठी धूल और बर्फ ने कुछ समय के लिए पूरे क्षेत्र को ढक लिया। हालांकि राहत की बात यह रही कि घटना स्थल पर उस समय कोई यात्री या श्रद्धालु मौजूद नहीं था, जिससे किसी तरह की जनहानि नहीं हुई।

    बदरीनाथ धाम हर साल लाखों श्रद्धालुओं का आस्था केंद्र रहता है। इस साल भी चारधाम यात्रा के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। ऐसे में ग्लेशियर टूटने की खबर से तीर्थयात्रियों और स्थानीय लोगों में डर का माहौल बन गया है। प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए यात्रियों को फिलहाल सुरक्षित इलाकों में रुकने की सलाह दी है और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जाने से मना किया है।

    चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने बताया कि कुबेर पर्वत से ग्लेशियर टूटने की जानकारी मिलते ही संबंधित विभागों को सतर्क कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अभी तक किसी तरह की जनहानि की सूचना नहीं है, लेकिन सुरक्षा के दृष्टिकोण से आसपास के इलाकों में निगरानी बढ़ा दी गई है। साथ ही भू-वैज्ञानिकों की एक टीम को भी मौके पर भेजा गया है जो इस घटना के कारणों का अध्ययन करेगी।

    स्थानीय प्रशासन ने बताया कि कंचनगंगा नाला, जो बदरीनाथ के पास बहता है, उसमें फिलहाल जल स्तर सामान्य है, लेकिन मलबे की मात्रा बढ़ने से रुकावट की संभावना बनी हुई है। यदि नाले का बहाव अवरुद्ध होता है, तो भूस्खलन और अचानक बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसलिए सभी सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है।

    विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और इसका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है। ग्लेशियरों के पिघलने की गति पिछले एक दशक में काफी तेज हुई है। पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. एस. के. जोशी ने बताया कि लगातार बढ़ते तापमान के कारण हिमालय के कई क्षेत्रों में ग्लेशियर अस्थिर हो गए हैं। ऐसे में एक छोटी सी दरार या भूकंपीय हलचल से भी बड़े हिस्से टूट सकते हैं।

    यह पहली बार नहीं है जब बदरीनाथ धाम के पास ऐसी घटना हुई हो। इससे पहले भी 2021 और 2023 में चमोली जिले के तपोवन और रैणी गांव के पास ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें भारी तबाही मची थी। हालांकि इस बार प्रशासन की तत्परता से नुकसान को टाला जा सका है।

    स्थानीय निवासियों ने बताया कि कुबेर पर्वत के आसपास के इलाकों में पिछले कुछ दिनों से बर्फ की परतों में असामान्य दरारें देखी जा रही थीं। कई लोगों ने इसकी जानकारी प्रशासन को भी दी थी, लेकिन मौसम सामान्य होने के कारण कोई बड़ा खतरा नहीं माना गया। हालांकि शुक्रवार को अचानक तापमान में हल्की बढ़ोतरी और धूप निकलने के बाद ग्लेशियर का ऊपरी हिस्सा कमजोर होकर टूट गया।

    उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) ने घटना के बाद तत्काल रेस्क्यू और राहत दलों को तैनात किया है। अधिकारी ड्रोन के जरिए इलाके की हवाई निगरानी कर रहे हैं ताकि संभावित खतरों का आकलन किया जा सके। वहीं, प्रशासन ने यात्रियों को बदरीनाथ धाम जाने से पहले मौसम और स्थानीय अलर्ट की जानकारी लेने की सलाह दी है।

    केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया है। मंत्रालय ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है और NDRF की एक टीम को भी स्टैंडबाय पर रखा गया है ताकि जरूरत पड़ने पर तत्काल सहायता पहुंचाई जा सके।

    मौसम विभाग के अनुसार, अगले कुछ दिनों तक बदरीनाथ क्षेत्र में तापमान में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। यदि तापमान और बढ़ता है, तो इससे अन्य छोटे ग्लेशियरों में भी हलचल की संभावना है। इसलिए पर्यटकों और श्रद्धालुओं को फिलहाल सतर्क रहने की अपील की गई है।

    स्थानीय पुजारी और बदरीनाथ धाम समिति ने भी यात्रियों को सलाह दी है कि वे प्रशासन के निर्देशों का पालन करें और बिना अनुमति ऊपरी क्षेत्रों में न जाएं। उन्होंने कहा कि भगवान बदरीनाथ की कृपा से किसी की जान को नुकसान नहीं हुआ, लेकिन यह घटना प्रकृति की शक्ति और संवेदनशीलता की याद दिलाती है।

    पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड में बढ़ते हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, सड़कों का चौड़ीकरण और अनियंत्रित पर्यटन भी ग्लेशियरों पर दबाव बढ़ा रहे हैं। यदि इन गतिविधियों को संतुलित तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया, तो भविष्य में ऐसे हादसे और बढ़ सकते हैं।

    बदरीनाथ धाम के पास कुबेर पर्वत से ग्लेशियर टूटने की यह घटना न केवल प्रशासन के लिए चेतावनी है, बल्कि यह पूरे देश के लिए यह संदेश भी देती है कि हिमालयी पारिस्थितिकी को बचाना अब सिर्फ पर्यावरण की बात नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व का सवाल बन गया है।

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