




नागालैंड सरकार ने राज्य की सरकारी नौकरियों में आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए गठित समिति का पुनर्गठन कर दिया है। यह निर्णय पाँच प्रमुख नागा जनजातियों द्वारा उठाई गई आपत्तियों और व्यापक जन-असंतोष के बाद सामने आया है।
1977 में लागू की गई इस नीति में राज्य की पिछड़ी जनजातियों (Backward Tribes) को आरक्षण का लाभ दिया गया था। लेकिन समय के साथ, इस व्यवस्था को बिना किसी व्यापक समीक्षा के जारी रखा गया, जिससे कुछ जनजातियाँ इस नीति को “वर्तमान सामाजिक‑आर्थिक वास्तविकताओं के खिलाफ” बताने लगीं।
नागालैंड की वर्तमान आरक्षण नीति के तहत, राज्य की सरकारी सेवाओं में कुल 45% आरक्षण है, जिसमें से 37% हिस्सा पिछड़ी जनजातियों को दिया जाता है:
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पूर्वी नागालैंड की जनजातियों को 25%
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अन्य पिछड़ी जनजातियों को 12%
यह नीति अस्थायी रूप से लागू की गई थी लेकिन वर्षों से बिना संशोधन के चली आ रही है। अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यह नीति अब भी राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना और विकास के साथ मेल खाती है?
राज्य की पाँच प्रमुख और अपेक्षाकृत उन्नत जनजातियाँ — आओ (Ao), अंगामी (Angami), सूमी (Sumi), लोटा (Lotha), और रेन्गमा (Rengma) — इस नीति के खिलाफ एकजुट हुईं।
इन्होंने मिलकर Committee on Review of Reservation Policy (CoRRP) का गठन किया और सरकार से मौजूदा नीति की समीक्षा की मांग की।
CoRRP का कहना है कि कुछ जनजातियाँ दशकों से इस नीति का अनुचित लाभ उठा रही हैं, जबकि अन्य योग्य उम्मीदवार इससे वंचित रह जाते हैं।
राज्य सरकार द्वारा 22 सितंबर 2025 को एक अधिसूचना जारी कर समिति का पुनर्गठन किया गया।
नए पैनल की प्रमुख बातें:
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समिति अब पूरी तरह नौकरशाही नेतृत्व वाली होगी।
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इसमें शामिल होंगे: गृह विभाग, कार्मिक विभाग, उच्च शिक्षा विभाग और न्याय विभाग के सचिव।
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समिति को 6 महीने में रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है।
पूर्व में समिति में सिविल सोसाइटी प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया था, जिन्हें अब हटा दिया गया है। यह परिवर्तन खुद CoRRP की मांग पर किया गया, जो चाहता था कि समिति पूरी तरह से निष्पक्ष और पेशेवर अधिकारियों से बनी हो।
नवगठित समिति निम्नलिखित बिंदुओं पर काम करेगी:
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वर्तमान आरक्षण नीति की कानूनी और सामाजिक समीक्षा
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जनसंख्या आंकड़ों, शिक्षा स्तर और रोजगार डेटा के आधार पर नवीन आरक्षण मॉडल की सिफारिश
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जनजातीय समूहों के साथ संवाद और परामर्श
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संवैधानिक प्रावधानों और राज्य नीति के अनुरूप सिफारिशें प्रस्तुत करना
राजनीतिक विश्लेषकों और सामाजिक संगठनों ने समिति के पुनर्गठन को सकारात्मक कदम बताया है। लेकिन कुछ सिविल सोसाइटी संगठनों ने इसमें जनभागीदारी की कमी पर सवाल उठाया है।
एनपीएफ विधायक अजो निएनू ने बयान में कहा, “राज्य की आरक्षण नीति को अब डेटा-आधारित, पारदर्शी और तटस्थ बनाना ज़रूरी है। यह केवल जातीय आधार पर नहीं, बल्कि जरूरत और सामाजिक पिछड़ेपन पर आधारित होनी चाहिए।”
हालांकि समिति का गठन हो गया है, पर इसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठना तय है:
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क्या नौकरशाही ही सभी सामाजिक हितधारकों का प्रतिनिधित्व कर पाएगी?
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क्या यह समिति राजनीतिक दबाव से मुक्त रह पाएगी?
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और सबसे महत्वपूर्ण — क्या इसकी रिपोर्ट को वास्तव में लागू किया जाएगा?
CoRRP ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि समिति की रिपोर्ट में निष्पक्षता नहीं होगी या सरकार ने इसे लागू नहीं किया, तो वह राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेगा।
नागालैंड में नौकरी आरक्षण नीति की समीक्षा लंबे समय से लंबित एक ज़रूरी कदम था। समिति का पुनर्गठन उस दिशा में एक अहम शुरुआत है।