




सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में धार्मिक परिवर्तन अधिनियम के तहत दर्ज कई FIRs को शुक्रवार को रद्द कर दिया। यह FIRs हिंदुओं के कथित रूप से ईसाई धर्म में “सामूहिक धर्मांतरण” के आरोप में दर्ज की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि आपराधिक कानून का उपयोग निर्दोष नागरिकों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति प्रदीप पारदिवाला ने इस मामले में कहा कि FIRs में कई कानूनी कमियां, प्रक्रियागत त्रुटियां और विश्वसनीय सामग्री का अभाव पाया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ये FIRs इस हद तक कमजोर हैं कि इन्हें न्यायालय के द्वारा रद्द किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा:
“आपराधिक कानून निर्दोष नागरिकों को परेशान करने का उपकरण नहीं हो सकता। ऐसी किसी भी कार्रवाई से व्यक्ति की आज़ादी और सम्मान को चोट पहुंचती है। इसलिए ऐसी FIRs को बिना उचित जांच और सबूत के खारिज किया जाना चाहिए।”
उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ समय पहले धार्मिक परिवर्तन के कथित अवैध मामलों को लेकर कड़ी कार्रवाई की थी। फतेहपुर जिले में कुछ स्थानों पर हिंदुओं के बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म में धर्मांतरण की खबरों के आधार पर कई FIRs दर्ज की गईं।
इन FIRs के तहत आरोप लगाए गए कि यह धर्मांतरण “जबरन” और “धोखे से” कराए जा रहे हैं, जो राज्य के धार्मिक परिवर्तन अधिनियम के तहत गैरकानूनी है। हालांकि, आरोपितों ने इन FIRs को राजनीतिक और सामाजिक विरोध का नतीजा बताया और कहा कि उन्हें निर्दोष ठहराया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति पारदिवाला ने FIRs का विश्लेषण करते हुए पाया कि:
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FIR दर्ज करने में आवश्यक कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन हुआ।
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आरोपों का समर्थन करने के लिए ठोस और विश्वसनीय सबूत मौजूद नहीं थे।
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प्रक्रिया में कई बार नियमों की अनदेखी की गई।
इन खामियों के कारण FIRs की वैधता पर सवाल उठे और सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें रद्द कर दिया।
यह फैसला इस बात का संकेत है कि भारतीय न्यायपालिका धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा में संवेदनशील है। भारत के संविधान की धारा 25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देती है, जिसे कानून द्वारा अनुचित तरीके से सीमित नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को संरक्षित रखना आवश्यक है, और यह भी सुनिश्चित करना है कि कानून का दुरुपयोग न हो।
धार्मिक परिवर्तन कानूनों का मकसद अवैध और जबरन धर्मांतरण रोकना है। लेकिन अक्सर इन्हें व्यक्तिगत या सामाजिक विरोध के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में न्यायालय का यह निर्णय कानून और मानवाधिकारों के बीच संतुलन कायम करने का उदाहरण है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा होगी और कानून के दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए कहा कि वह सभी आदेशों का पालन करेगी। साथ ही यह भी कहा गया कि सरकार का उद्देश्य केवल अवैध धर्मांतरण को रोकना है और कानून का सही इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश के धार्मिक परिवर्तन अधिनियम के तहत दर्ज FIRs को रद्द करना न्यायिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मजबूत संदेश है। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि कानून का प्रयोग कभी भी निर्दोषों को परेशान करने के लिए नहीं होना चाहिए।