




दिवाली 2025 के अवसर पर देशभर में दीपों की रौशनी और उत्साह का माहौल रहा, लेकिन इस उत्सव के बाद दिल्ली-एनसीआर सहित कई हिस्सों में वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ गया। जहां एक ओर लोग रोशनी के इस पर्व का जश्न मना रहे थे, वहीं दूसरी ओर प्रदूषण का बढ़ता स्तर चिंताजनक रहा। इसी बीच पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह का एक बयान सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा का विषय बन गया। उन्होंने दिवाली पर हुई आतिशबाजी को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि भगवान राम के अयोध्या लौटने पर दीप जलाए गए थे, बारूद नहीं।
सूर्य प्रताप सिंह, जो अक्सर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने बेबाक विचारों के लिए जाने जाते हैं, ने कहा कि हमें अपने त्योहारों को धार्मिक द्वेष या हिंदू-मुस्लिम एंगल से नहीं देखना चाहिए। उन्होंने पोस्ट में लिखा कि दिवाली मूल रूप से प्रकाश का त्योहार है, जिसका उद्देश्य अंधकार को दूर करना और सद्भावना का संदेश देना है। लेकिन आज यह पर्व कुछ हद तक अपनी मूल भावना से भटक गया है, जहाँ प्रतिस्पर्धा, दिखावा और शोरगुल ने परंपरा की जगह ले ली है।
पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा कि जब भगवान श्रीराम चौदह वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब लोगों ने स्वागत में दीप जलाए थे। यह उस युग का प्रतीक था जब लोग सादगी, आस्था और श्रद्धा के साथ पर्व मनाते थे। आज की दिवाली में दीपों से ज्यादा बारूद जलाया जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि दिवाली का असली अर्थ आत्मा के भीतर प्रकाश जगाना है, न कि वायु को प्रदूषित करना।
दिल्ली-एनसीआर में दिवाली के बाद प्रदूषण का स्तर खतरनाक श्रेणी तक पहुँच गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 450 से ऊपर दर्ज किया गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पटाखों से निकला धुआँ, वाहनों का उत्सर्जन और मौसम की स्थिति प्रदूषण को और बढ़ा रही है। ऐसे में, पूर्व आईएएस अधिकारी का यह बयान समाज को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आधुनिकता के नाम पर हम अपनी परंपराओं को गलत दिशा में नहीं ले जा रहे?
सूर्य प्रताप सिंह ने आगे लिखा कि हर धर्म और हर पर्व का उद्देश्य इंसानियत और भाईचारे को बढ़ावा देना है। लेकिन जब किसी त्योहार को धार्मिक तुलना या विवाद से जोड़ा जाता है, तो उसका पवित्र स्वरूप धूमिल हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग त्योहारों को राजनीतिक या धार्मिक बहस का विषय बनाकर समाज में विभाजन की भावना पैदा करते हैं, जबकि असली जरूरत है कि हम इन अवसरों को सामाजिक एकता के रूप में देखें।
उन्होंने कहा कि “दीपावली पर दीप जलाना हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन बारूद जलाना हमारी विरासत नहीं है। अगर हम अपने त्योहारों को उसी सादगी और प्रेम के साथ मनाएं जैसे हमारे पूर्वज मनाते थे, तो समाज में सद्भावना अपने आप बढ़ेगी।” उनका कहना था कि आज जरूरत इस बात की है कि लोग अपनी जिम्मेदारी समझें और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर उत्सव मनाएं।
उनकी इस टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ आईं। कुछ लोगों ने सूर्य प्रताप सिंह की बात का समर्थन करते हुए कहा कि यह समय है जब समाज को पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए और त्योहारों को प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। वहीं, कुछ लोगों ने उनके बयान को धार्मिक दृष्टि से देखने की कोशिश की और तर्क दिया कि हर व्यक्ति को अपनी परंपरा के अनुसार उत्सव मनाने का अधिकार है।
इस बीच, पर्यावरणविदों ने भी आगाह किया है कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर लगातार खतरनाक स्थिति में बना हुआ है और यदि पटाखों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले समय में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और गंभीर हो सकती हैं। उन्होंने नागरिकों से अपील की है कि वे पर्यावरण के अनुकूल दिवाली मनाएँ और पारंपरिक तेल के दीये जलाकर इस पावन पर्व की भावना को साकार करें।
दिवाली का पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है। यह हमें सिखाता है कि प्रकाश का अर्थ सिर्फ बाहरी नहीं बल्कि आंतरिक उजाला भी है। जब हम नकारात्मकता, क्रोध और वैमनस्य को छोड़कर प्रेम, सहयोग और सद्भावना का दीप जलाते हैं, तभी दिवाली का सच्चा अर्थ पूरा होता है।
पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह का यह बयान शायद इसी ओर संकेत करता है कि अगर हम अपने त्योहारों की आत्मा को समझ लें, तो समाज में न केवल प्रदूषण कम होगा बल्कि मानसिक शांति और एकता भी बढ़ेगी। यह आवश्यक है कि हम दिवाली को “दीपों का पर्व” बनाए रखें, “बारूद का त्योहार” नहीं।