




भारत की आर्थिक यात्रा अब केवल घरेलू स्तर पर नहीं, बल्कि वैश्विक परिदृश्य पर भी अपनी मजबूत छाप छोड़ रही है। बीते कुछ वर्षों में भारत ने न केवल अपनी विकास दर को स्थिर बनाए रखा है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक निर्णायक खिलाड़ी के रूप में भी उभरा है। शीर्ष अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने हाल ही में कहा कि भारत की यह तेज रफ्तार अब कई देशों के लिए असहजता का कारण बन रही है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “दोस्त देश भी भारत को वह जगह नहीं देना चाहते, जिसकी वह हकदार स्थिति में पहुंच चुका है।”
संजीव सान्याल, जो कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य हैं, ने कहा कि आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और अगर यही रफ्तार जारी रही, तो दशक के अंत तक यह तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। उनके अनुसार, यह आर्थिक ताकत केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदमों का परिणाम है।
सान्याल ने एक चर्चा के दौरान कहा कि भारत के उभरने से कई पश्चिमी और एशियाई देश असहज महसूस कर रहे हैं। उन्हें इस बात का डर है कि भारत का प्रभाव सिर्फ अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक नीति निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि कई देशों की रणनीति इस समय भारत की बढ़ती शक्ति को ‘संतुलित’ करने की है। इसलिए भले ही वे कूटनीतिक रूप से भारत के साथ खड़े दिखते हों, लेकिन पर्दे के पीछे की राजनीति कुछ और ही कहानी कहती है।
सान्याल का मानना है कि भारत को इस असहजता से विचलित नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी आर्थिक गति और राजनीतिक आत्मविश्वास को बरकरार रखना चाहिए, लेकिन यह मुखरता मापी हुई और संयमित होनी चाहिए। उनके अनुसार, “भारत को अपनी बात रखने से डरना नहीं चाहिए, परंतु आक्रामकता की जगह दृढ़ता और संतुलन जरूरी है।”
भारत की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति इस बात को दर्शाती है कि देश अब केवल विकासशील नहीं, बल्कि निर्णायक आर्थिक शक्ति बन चुका है। इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग, टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप सेक्टर में भारत की प्रगति ने इसे वैश्विक निवेश का केंद्र बना दिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक दोनों ही 2025 को भारत के लिए “सुनहरा साल” बता रहे हैं, जहां विकास दर 7% से ऊपर बनी हुई है।
लेकिन इस उन्नति ने भारत के लिए नए चुनौतियों के द्वार भी खोले हैं। वैश्विक मंचों पर भारत की बढ़ती मांग — जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता या व्यापार समझौतों में अधिक प्रतिनिधित्व — कई शक्तिशाली देशों को असहज करती है। सान्याल ने कहा कि यही कारण है कि भारत को “दोस्त देशों” से भी वैसी खुली स्वीकृति नहीं मिल पा रही, जैसी उसकी आर्थिक स्थिति के अनुरूप मिलनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत अब वह देश नहीं रहा जिसे कोई अनदेखा कर सके। दुनिया के आर्थिक समीकरण बदल रहे हैं और भारत इस बदलाव के केंद्र में है। जहां एक ओर अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, वहीं भारत एक “संतुलित शक्ति” के रूप में अपनी जगह बना रहा है। इस स्थिति से दोनों ही पक्षों को चुनौती महसूस हो रही है।
सान्याल ने कहा कि आने वाले वर्षों में भारत को अपनी रणनीतिक सोच को और मजबूत करना होगा। भारत को अब “रिएक्टिव” नहीं बल्कि “प्रोएक्टिव” राष्ट्र के रूप में अपनी भूमिका निभानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक मजबूती के साथ-साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति ही भारत को अगले दशक में “ग्लोबल पावर सेंटर” बना सकती है।
भारत की उभरती ताकत का एक और पहलू यह है कि अब देश विकास के पारंपरिक रास्तों से आगे बढ़ रहा है। डिजिटलीकरण, मेक इन इंडिया, ग्रीन एनर्जी और रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ते कदम यह संकेत देते हैं कि भारत अब किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहता।
सान्याल ने अपने वक्तव्य का समापन करते हुए कहा कि भारत को अब यह समझना होगा कि उसका विकास केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दुनिया के लिए भी महत्व रखता है। भारत की सफलता एशिया और अफ्रीका के अन्य विकासशील देशों के लिए प्रेरणा बन सकती है। लेकिन इस राह में धैर्य, दृढ़ता और कूटनीतिक संतुलन बेहद जरूरी है।
भारत आज जिस मोड़ पर खड़ा है, वहां उसे “वैश्विक असहजता” से घबराने की जरूरत नहीं, बल्कि इसे अपनी मजबूती के प्रमाण के रूप में देखना चाहिए। आने वाले दशक में भारत का आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव तय करेगा कि दुनिया की शक्ति-संरचना किस दिशा में आगे बढ़ेगी।