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    पर्थ से आई चेतावनी: रोहित, कोहली और अय्यर की कमजोरियां उजागर, क्या भारत की 2027 ODI योजना पर संकट मंडरा रहा है?

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    ऑस्ट्रेलिया के पर्थ मैदान से भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी आई है। भारतीय बल्लेबाजी, जो कभी दुनिया की सबसे मजबूत मानी जाती थी, अब दरकती हुई दिख रही है। कप्तान रोहित शर्मा, पूर्व कप्तान विराट कोहली, और मध्यक्रम के भरोसेमंद बल्लेबाज श्रेयस अय्यर तीनों ही हालिया वनडे मुकाबले में फ्लॉप साबित हुए। यह सिर्फ एक मैच की हार नहीं थी, बल्कि आने वाले वर्षों में भारत की 2027 वनडे विश्व कप योजना के लिए एक संकेत थी कि अब बदलाव की जरूरत है।

    भारत ने पिछले दशक में अपनी बल्लेबाजी के बल पर कई बड़े मुकाबले जीते हैं, लेकिन पर्थ की पिच पर भारतीय दिग्गजों की कमजोरियां उजागर हो गईं। तेज गति और उछाल भरी पिच पर ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों ने भारतीय बल्लेबाजों को लगातार परेशान किया। रोहित शर्मा, जो आमतौर पर नए गेंदबाजों के खिलाफ आक्रामक बल्लेबाजी के लिए जाने जाते हैं, अपने पुराने अंदाज में नहीं दिखे। उन्होंने कुछ शानदार स्ट्रोक जरूर लगाए, लेकिन जल्द ही एक तेज बाउंसर पर गलती कर बैठे।

    विराट कोहली, जिनकी बल्लेबाजी में तकनीकी ठहराव और मानसिक मजबूती का हमेशा उदाहरण दिया जाता है, इस बार असहज नज़र आए। शुरुआती ओवरों में उन्होंने संभलकर शुरुआत की, लेकिन जब ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों ने लेंथ में बदलाव किया, तो कोहली का फुटवर्क धीमा पड़ गया। वह 14 रन बनाकर पैट कमिंस की गेंद पर कैच आउट हुए। यह उनके अनुभव के हिसाब से एक कमजोर शॉट था और यह दिखाता है कि शायद तेज और उछाल वाली पिचों पर उनका आत्मविश्वास कुछ हद तक डगमगाने लगा है।

    मध्यक्रम की बात करें तो श्रेयस अय्यर को एक बार फिर स्पिन के बजाय पेस पर परेशानी होती दिखाई दी। उन्होंने ऑफ-स्टंप से बाहर जाती गेंदों को छोड़ने के बजाय उन पर खेलने का जोखिम लिया और स्लिप में कैच थमा बैठे। यह वही कमजोरी है जो उन्हें 2023 विश्व कप के दौरान भी सताती रही थी। क्रिकेट विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को 2027 तक एक स्थिर और भरोसेमंद बल्लेबाजी क्रम बनाना है, तो अय्यर को तकनीकी रूप से मजबूत होना होगा या फिर नए खिलाड़ियों को मौका देना पड़ेगा।

    पर्थ की पिचें हमेशा चुनौतीपूर्ण रही हैं, लेकिन इस बार भारत की समस्या तकनीकी कम और मानसिक अधिक लगी। टीम का रवैया रक्षात्मक दिखा। शुरुआती विकेट गिरने के बाद कोई भी बल्लेबाज आक्रामक मानसिकता से नहीं खेल पाया। अनुभवी बल्लेबाजों के पास स्थिति को स्थिर करने का मौका था, लेकिन हर खिलाड़ी अपने शॉट चयन में हिचकिचाता नज़र आया। यह झिझक बताती है कि टीम का आत्मविश्वास विदेशी परिस्थितियों में अब पहले जैसा नहीं रहा।

    क्रिकेट विश्लेषक संजय मांजरेकर ने मैच के बाद कहा, “यह सिर्फ हार नहीं है, बल्कि एक संकेत है कि भारतीय टीम को अब भविष्य की योजना पर गंभीरता से काम करना होगा। रोहित और कोहली महान बल्लेबाज हैं, लेकिन वे अपने करियर के उत्तरार्ध में हैं। अगर 2027 वर्ल्ड कप का लक्ष्य है, तो अब से नए खिलाड़ियों को तैयार करना होगा।”

    बीसीसीआई की चयन समिति पर भी दबाव बढ़ गया है। भारतीय टीम में शुभमन गिल, रुतुराज गायकवाड़, और रजत पाटीदार जैसे युवा बल्लेबाज मौजूद हैं, लेकिन उन्हें बड़े मैचों में लगातार अवसर नहीं मिल पा रहे। कप्तान रोहित शर्मा खुद भी स्वीकार कर चुके हैं कि “अब हमें भविष्य की सोच के साथ टीम तैयार करनी होगी।” हालांकि सवाल यह भी है कि क्या यह भविष्य की योजना समय रहते लागू की जा सकेगी या नहीं।

    भारतीय क्रिकेट की यह स्थिति कुछ हद तक 2015 और 2019 के बीच की याद दिलाती है, जब भारत के पास विश्व स्तरीय बल्लेबाज तो थे, लेकिन मध्यक्रम कमजोर कड़ी साबित हुआ। इस बार भी वही स्थिति दोहराने का डर है। कोहली और रोहित भले ही अभी भी फिट और अनुभवी हैं, लेकिन 2027 तक उनका प्रदर्शन और ऊर्जा स्तर कितना कायम रहेगा, यह कहना मुश्किल है।

    दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया की रणनीति भारत के लिए सबक बन सकती है। ऑस्ट्रेलिया ने डेविड वॉर्नर और स्टीव स्मिथ जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के साथ-साथ युवा सितारों को भी बराबर मौका दिया है। यही संतुलन उन्हें मजबूत बनाता है। भारत को भी यह संतुलन तलाशना होगा — अनुभव और नई ऊर्जा का मेल।

    पर्थ की यह हार तकनीकी से ज्यादा रणनीतिक चेतावनी थी। अगर भारत अब भी अपनी बल्लेबाजी संरचना में बदलाव नहीं करता, तो आने वाले वर्षों में टीम को और झटके लग सकते हैं। विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे दिग्गजों का अनुभव अमूल्य है, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि क्रिकेट किसी के लिए नहीं रुकता।

    2027 का वनडे विश्व कप दक्षिण अफ्रीका में खेला जाना है — वहां की पिचें तेज और उछाल भरी होंगी, ठीक वैसे ही जैसे पर्थ की। इस लिहाज से यह मैच भारतीय टीम के लिए भविष्य की झलक था। अगर आज सुधार नहीं किए गए, तो कल फिर वही कहानी दोहराई जा सकती है।

    भारत के क्रिकेट प्रेमियों के लिए यह समय आत्ममंथन का है — क्या टीम को अनुभव पर भरोसा बनाए रखना चाहिए या अब नए युग की शुरुआत करनी चाहिए? पर्थ ने यह सवाल सबके सामने रख दिया है, और इसका जवाब आने वाले महीनों में भारतीय चयनकर्ताओं को देना होगा।

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