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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां तेज हो गई हैं और इस बार सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बन गया है — महिला वोट। बिहार की राजनीति में महिलाएं अब सिर्फ दर्शक नहीं रहीं, बल्कि परिणाम तय करने वाली सबसे बड़ी शक्ति बन चुकी हैं। पिछले कुछ चुनावों में महिला वोटरों ने जिस तरह से मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है, उसने हर राजनीतिक दल को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि महिलाओं को साधे बिना सत्ता की राह आसान नहीं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा में महिला मतदाताओं का योगदान किसी से छिपा नहीं है। उनके शासनकाल में शुरू की गई योजनाओं — जैसे कि साइकिल योजना, कन्या उत्थान योजना, जल-जीवन-हरियाली मिशन और शराबबंदी — ने महिलाओं के बीच एक मजबूत भावनात्मक जुड़ाव पैदा किया है। यही कारण है कि उन्हें “महिलाओं के पसंदीदा नेता” के रूप में देखा जाने लगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भी महिला वोटरों ने जेडीयू-नीतीश कुमार को अप्रत्याशित मजबूती दी थी।
पिछले एक दशक में बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या न केवल बढ़ी है बल्कि मतदान प्रतिशत के मामले में उन्होंने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2020 दोनों ही चुनावों में महिला वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से 3 से 5 प्रतिशत अधिक रहा। इसका सीधा मतलब यह है कि अब हर राजनीतिक दल के लिए महिला मतदाताओं को आकर्षित करना प्राथमिक रणनीति बन गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की महिलाएं केवल जाति या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि विकास, सुरक्षा और परिवारिक स्थिरता को ध्यान में रखकर मतदान करती हैं। नीतीश कुमार ने अपने लंबे शासनकाल में महिलाओं के बीच एक ऐसी छवि बनाई है जो उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए की गई योजनाएं अब भी उनके पक्ष में जाती हैं।
हालांकि इस बार का चुनाव नीतीश कुमार के लिए आसान नहीं होगा। उनकी सरकार के खिलाफ एंटी-इंकंबेंसी फैक्टर और युवाओं में नाराजगी के बीच महिला वोट का रुख बड़ा फर्क डाल सकता है। यदि महिलाएं फिर से नीतीश के पक्ष में एकजुट होती हैं, तो यह विपक्षी गठबंधन के लिए चिंता की बात होगी।
वहीं दूसरी ओर, आरजेडी और बीजेपी जैसे दल भी महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। तेजस्वी यादव ने युवाओं और महिलाओं के लिए नई योजनाओं का वादा किया है, जबकि बीजेपी महिला सुरक्षा और रोजगार सृजन पर जोर दे रही है। लेकिन नीतीश कुमार का महिला मतदाताओं से जुड़ा भरोसा अब भी उनके लिए सबसे बड़ी ताकत बना हुआ है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बिहार में महिला वोट अब किसी भी चुनाव का “किंगमेकर” बन चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत शहरों की तुलना में अधिक है, जिससे गांवों की राजनीति पर इसका गहरा असर पड़ता है। इसके अलावा, शराबबंदी जैसी नीतियों ने घर-परिवार में महिलाओं की सामाजिक स्थिति को मजबूत किया है। कई महिलाएं आज खुले तौर पर यह स्वीकार करती हैं कि नीतीश कुमार के फैसलों से उनके घर की स्थिति में सुधार हुआ है।
फिर भी, इस बार महिला वोट पूरी तरह से एकतरफा जाएगा या नहीं, यह कहना जल्दबाजी होगी। युवतियों में बेरोजगारी, शिक्षा व्यवस्था की स्थिति और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर असंतोष भी देखा जा रहा है। अगर विपक्ष इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा सका, तो महिला वोटों में बिखराव संभव है।
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू पहले ही महिला वोटरों पर केंद्रित प्रचार अभियान शुरू कर चुकी है। “हर घर नल का जल”, “मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना” और “जीविका समूह” जैसी योजनाओं के लाभार्थियों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है। वहीं आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन “महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा” को मुख्य चुनावी मुद्दा बना रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार कहते हैं, “बिहार में अब राजनीति सिर्फ पुरुष मतदाताओं के इर्द-गिर्द नहीं घूमती। महिला वोटर अब सबसे निर्णायक वर्ग बन चुकी हैं। नीतीश कुमार की छवि ‘महिला हितैषी नेता’ के रूप में स्थापित हो चुकी है, लेकिन विपक्ष भी अब उनकी इस ताकत को चुनौती देने के लिए पूरी रणनीति बना रहा है।”
चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 8.5 करोड़ है, जिनमें से 4.3 करोड़ महिलाएं हैं। यह आंकड़ा साफ संकेत देता है कि यदि महिला वोट किसी एक पार्टी के पक्ष में झुकते हैं, तो वह पार्टी आसानी से बहुमत हासिल कर सकती है।
जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, बिहार की सियासी फिज़ा में महिला वोटरों को लेकर होड़ बढ़ती जा रही है। हर दल अपने घोषणा पत्र में महिलाओं के लिए विशेष योजनाओं और सुरक्षा के वादे शामिल करने में जुटा है।








