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भारत और अमेरिका के बीच चल रही बहुप्रतीक्षित द्विपक्षीय व्यापार डील (Bilateral Trade Deal) अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है। दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच हालिया दौर की बातचीत बेहद सकारात्मक रही है, जिसमें अधिकतर मुद्दों पर सहमति बन चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि इस समझौते पर जल्द ही हस्ताक्षर हो सकते हैं। इस ऐतिहासिक डील के तहत भारत और अमेरिका ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है।
सूत्रों के मुताबिक, नई व्यापार नीति में न केवल वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार को बढ़ावा देने की रूपरेखा तैयार की गई है, बल्कि निवेश, तकनीकी सहयोग, डिजिटल व्यापार और कृषि क्षेत्र में साझेदारी को भी नई दिशा देने की योजना है। वर्तमान में दोनों देशों के बीच वार्षिक व्यापार लगभग 190 अरब डॉलर के आसपास है, जो पिछले कुछ वर्षों में लगातार वृद्धि दर्शाता है। यदि यह समझौता तय समय में लागू हो गया, तो यह भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाएगा।
व्यापार डील का मुख्य फोकस
इस समझौते का प्रमुख उद्देश्य व्यापार में आने वाली बाधाओं को कम करना और निवेश प्रवाह को बढ़ाना है। भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ वर्षों में टैरिफ, डेटा संरक्षण, बौद्धिक संपदा अधिकार, फार्मा उत्पादों के निर्यात और कृषि क्षेत्र में नियमों को लेकर कई बार मतभेद देखने को मिले हैं। लेकिन इस बार दोनों देशों ने समझदारी दिखाते हुए अधिकतर विवादित मुद्दों पर आम सहमति बना ली है।
भारत ने अमेरिकी कंपनियों के लिए निवेश की प्रक्रिया को सरल बनाने और डिजिटल व्यापार के लिए नियामकीय ढांचा स्पष्ट करने की दिशा में कदम उठाए हैं। वहीं, अमेरिका ने भारत से आने वाले स्टील, एल्युमिनियम, फार्मा और आईटी सेवाओं पर लगाई गई कई व्यापारिक सीमाओं को नरम करने का संकेत दिया है।
अमेरिकी डेयरी उद्योग पर भारत की चिंता
हालांकि डील लगभग अंतिम रूप में है, लेकिन अमेरिका द्वारा भारत के डेयरी सेक्टर को अपने बाजार के लिए खोलने की मांग को लेकर नई दिल्ली में कुछ चिंताएं बनी हुई हैं। भारत ने साफ किया है कि वह अपने डेयरी उद्योग की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा। भारत का डेयरी उद्योग दुनिया में सबसे बड़ा है और इसमें करोड़ों छोटे किसान जुड़े हुए हैं। अगर अमेरिकी उत्पादों को बिना प्रतिबंध के भारतीय बाजार में प्रवेश की अनुमति दी जाती है, तो यह देशी उत्पादकों के लिए चुनौती बन सकता है।
भारत ने इस मुद्दे पर संतुलन साधने की कोशिश की है। सूत्रों का कहना है कि भारत फूड क्वालिटी और ऑर्गेनिक स्टैंडर्ड्स के तहत सख्त नियामक शर्तें लागू करने की योजना बना रहा है, जिससे केवल वे अमेरिकी उत्पाद ही आयात हो सकेंगे जो भारतीय मानकों पर खरे उतरें।
टेक्नोलॉजी और डिजिटल ट्रेड पर भी बड़ा फोकस
डिजिटल ट्रेड और टेक्नोलॉजी सहयोग इस डील का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दोनों देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग, साइबर सिक्योरिटी और डेटा लोकलाइजेशन के क्षेत्र में मिलकर काम करेंगे। इसके तहत अमेरिकी टेक कंपनियों को भारत में निवेश के नए अवसर मिलेंगे, वहीं भारत को उन्नत तकनीक और रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।
इसके अलावा, भारत ने अमेरिका से क्लीन एनर्जी, रक्षा उत्पादन और हेल्थकेयर इनोवेशन के क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ाने की इच्छा जताई है। यह सहयोग न केवल व्यापार को मजबूती देगा, बल्कि दोनों देशों के सामरिक संबंधों को भी सुदृढ़ करेगा।
आर्थिक विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह व्यापार समझौता भारत के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है। अगर यह डील तय समय पर अमल में आती है, तो इससे भारत के निर्यात को नई गति मिलेगी और अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। विशेष रूप से आईटी सेवाएं, फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग गुड्स और टेक्सटाइल सेक्टर को इसका बड़ा लाभ होगा।
इंडस्ट्री चैंबर FICCI और CII ने इस डील का स्वागत करते हुए कहा है कि यह समझौता भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) में और अधिक प्रभावशाली भूमिका निभाने का अवसर देगा। भारत पहले से ही अमेरिका के लिए एशिया का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है, और यह समझौता दोनों देशों के बीच व्यापारिक विश्वास को और मजबूत करेगा।
2030 का महत्वाकांक्षी लक्ष्य
दोनों देशों ने 2030 तक व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, जो वर्तमान स्तर से लगभग ढाई गुना अधिक है। इसके लिए भारत विनिर्माण, निर्यात और निवेश माहौल को सुधारने पर जोर दे रहा है। अमेरिका भी भारत में अपने उद्योगों के विस्तार की संभावनाओं को लेकर उत्साहित है, विशेषकर रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील न केवल दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच आर्थिक सहयोग का प्रतीक है, बल्कि यह आने वाले वर्षों में वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भी प्रभावित कर सकती है। यह समझौता दोनों देशों के लिए रोजगार, निवेश और नवाचार के नए द्वार खोलेगा।
हालांकि डेयरी और कृषि क्षेत्र से जुड़ी चिंताएँ अभी बाकी हैं, लेकिन सकारात्मक संकेत यह बताते हैं कि आने वाले महीनों में यह डील वास्तविकता बन सकती है। अगर ऐसा होता है, तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित होगी और दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते एक नई ऊँचाई पर पहुँचेंगे।








