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भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस सूर्यकांत के नाम की सिफारिश कर दी है। इसके साथ ही यह लगभग तय माना जा रहा है कि जस्टिस सूर्यकांत भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) होंगे। यह सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी जा चुकी है, और राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद उनकी नियुक्ति औपचारिक रूप से घोषित की जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की परंपरा के अनुसार, मौजूदा सीजेआई अपने उत्तराधिकारी का नाम ‘सीनियरिटी नियम’ के तहत राष्ट्रपति को सुझाते हैं। जस्टिस सूर्यकांत वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक हैं और उन्होंने अब तक कई ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभाई है।
जस्टिस सूर्यकांत: एक झलक उनके न्यायिक सफर की
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा में हुआ था। उन्होंने कानून की पढ़ाई पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से की। वर्ष 1984 में उन्होंने बतौर वकील हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। उनकी मेहनत और निष्ठा के चलते वर्ष 2001 में उन्हें हरियाणा के एडवोकेट जनरल के रूप में नियुक्त किया गया।
इसके बाद वर्ष 2004 में वे पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने। वहां अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई सामाजिक और संवैधानिक मामलों में उल्लेखनीय निर्णय दिए। न्यायिक क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2018 में उन्हें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। इसके कुछ ही समय बाद, 2019 में जस्टिस सूर्यकांत को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
न्यायिक दर्शन और प्रमुख फैसले
जस्टिस सूर्यकांत को हमेशा से ही संविधान के मूल्यों और न्याय के मानवीय पहलुओं पर जोर देने वाले न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कई बार यह कहा है कि न्याय केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन और मानवता की रक्षा का साधन है।
उनके फैसलों में सामाजिक न्याय, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति गहरी संवेदनशीलता झलकती है। हाल के वर्षों में उन्होंने कई ऐसे आदेश दिए जिनका दूरगामी प्रभाव भारतीय न्याय प्रणाली पर पड़ा।
सीजेआई बीआर गवई की सिफारिश का महत्व
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने औपचारिक रूप से जस्टिस सूर्यकांत के नाम की सिफारिश करते हुए कहा है कि यह नियुक्ति न्यायपालिका की निरंतरता और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण कदम है। परंपरा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है, ताकि संस्थागत संतुलन और पारदर्शिता बनी रहे।
जस्टिस बीआर गवई का कार्यकाल नवंबर 2025 में समाप्त हो रहा है, और संभावना है कि जस्टिस सूर्यकांत दिसंबर 2025 में पदभार संभालेंगे। अगर सब कुछ निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार हुआ, तो वे देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे।
न्यायपालिका में सुधारों की दिशा में योगदान
जस्टिस सूर्यकांत को एक दूरदर्शी न्यायाधीश के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने अपने फैसलों और टिप्पणियों में न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल और सुलभ बनाने की वकालत की है। विशेष रूप से उन्होंने ई-कोर्ट सिस्टम, केस मैनेजमेंट और तेज न्याय वितरण की दिशा में नवाचारों को बढ़ावा देने की बात कही है।
उनकी न्यायिक दृष्टि में पारदर्शिता, जवाबदेही और संवैधानिक मूल्यों की सर्वोच्चता प्रमुख रही है। यही कारण है कि उन्हें एक ऐसे न्यायाधीश के रूप में देखा जाता है जो न केवल कानून की गहराई को समझते हैं बल्कि उसके सामाजिक प्रभाव को भी महत्व देते हैं।
राजनीतिक और न्यायिक हलकों की प्रतिक्रिया
जस्टिस सूर्यकांत के नाम की सिफारिश के बाद कानूनी जगत में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली है। वरिष्ठ वकीलों और पूर्व न्यायाधीशों ने उन्हें न्यायिक ईमानदारी और संवेदनशीलता का प्रतीक बताया है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट और अधिक पारदर्शी और जनसुलभ बनेगा।
राजनीतिक हलकों में भी इस सिफारिश को परंपरागत और संतुलित कदम माना जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार को इस नाम पर कोई आपत्ति नहीं है और जल्द ही औपचारिक नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
भारत की न्यायपालिका के इतिहास में हर मुख्य न्यायाधीश ने अपनी विशिष्ट दृष्टि और योगदान से संस्थान को नई दिशा दी है। अब सभी की निगाहें जस्टिस सूर्यकांत पर टिकी हैं, जो आने वाले समय में देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी संभाल सकते हैं।
उनकी नियुक्ति न केवल वरिष्ठता परंपरा की निरंतरता को बनाए रखेगी, बल्कि न्यायपालिका में एक ऐसे नेतृत्व का आगमन करेगी जो संवेदनशील, व्यावहारिक और समाजोन्मुखी दृष्टिकोण रखता है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जस्टिस सूर्यकांत किस तरह भारत की न्यायिक व्यवस्था को नई दिशा प्रदान करते हैं।







