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    मुंबई लोकल पर खर्च हुए 5110 करोड़, फिर भी हर साल 1000 लोग गवां रहे जान — अब बड़ा कदम उठाने जा रहा है मुंबई रेल विकास निगम

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    मुंबई लोकल को ‘मायानगरी की लाइफलाइन’ कहा जाता है। रोज़ाना लाखों यात्रियों को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचाने वाली यह रेल सेवा मुंबई की धड़कन है। लेकिन इस धड़कन के साथ एक डरावनी सच्चाई भी जुड़ी है — हर साल करीब 1000 लोग लोकल ट्रेनों की चपेट में आकर अपनी जान गंवा रहे हैं। यह आंकड़ा न सिर्फ भयावह है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सुरक्षा पर अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद हालात जस के तस बने हुए हैं।

    मुंबई रेल विकास निगम (MRVC) ने मुंबई अर्बन ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट-3 (MUTP-3) के तहत शहर में ट्रेसपासिंग रोकने और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अब तक 551 करोड़ रुपये सैंक्शन किए थे। इस रकम का उपयोग रेलवे ट्रैक के किनारे सुरक्षा दीवारें बनाने, फेंसिंग करने और यात्रियों के लिए वैकल्पिक मार्ग तैयार करने में किया जा रहा था। बताया गया है कि इस परियोजना का 98 प्रतिशत काम सितंबर 2025 तक पूरा हो चुका है।

    फिर भी, आंकड़े बताते हैं कि हर साल करीब 900 से 1000 लोग ट्रेसपासिंग यानी बिना अनुमति रेलवे ट्रैक पार करने के दौरान हादसों का शिकार हो रहे हैं। इनमें ज्यादातर वे लोग शामिल हैं जो स्टेशन से बाहर निकलने या समय बचाने के लिए सीधे ट्रैक पार कर जाते हैं। कुछ मामलों में भीड़भाड़ के कारण धक्का-मुक्की में भी लोग ट्रेन की चपेट में आ जाते हैं।

    रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, मुंबई लोकल नेटवर्क में 60 प्रतिशत से अधिक दुर्घटनाएं ट्रेसपासिंग से जुड़ी होती हैं। शहर के कई इलाकों में रेलवे ट्रैक के दोनों ओर झुग्गी-झोपड़ियां और अनौपचारिक बस्तियां हैं, जहां से रोज़ाना लोग ट्रैक पार करते हैं। एमआरवीसी का कहना है कि ट्रैक किनारे अवैध रास्तों और फेंसिंग की कमी इस समस्या को और बढ़ा रही है।

    अब इस स्थिति से निपटने के लिए मुंबई रेल विकास निगम ने एक नया एक्शन प्लान तैयार किया है। इस योजना के तहत रेलवे ट्रैक के आसपास ‘फुल-प्रूफ बाउंड्री वॉल’ बनाने, CCTV मॉनिटरिंग, और ऑटोमैटिक अलर्ट सिस्टम लगाने का निर्णय लिया गया है। निगम का कहना है कि सिर्फ भौतिक अवरोधों से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि जनता को जागरूक करना भी उतना ही जरूरी है।

    एमआरवीसी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जल्द ही ट्रेसपासिंग से जुड़े ब्लैक स्पॉट्स की पहचान की जाएगी। इसके लिए मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क के 35 से अधिक स्टेशनों के आसपास सर्वे शुरू कर दिया गया है। जहां हादसे ज्यादा होते हैं, वहां सुरक्षा कर्मियों की तैनाती और अंडरपास/ओवरब्रिज बनाने की योजना है।

    सुरक्षा सुधारों के तहत एमआरवीसी ने रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (RPF) और राज्य पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त कार्रवाई करने की भी योजना बनाई है। इन इलाकों में “नो क्रॉसिंग जोन” चिन्हित किए जाएंगे और नियम तोड़ने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

    रेलवे मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में हर साल ट्रेसपासिंग के कारण औसतन 950 लोगों की मौत होती है, जबकि करीब 400 लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं। ये आंकड़े दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता जैसे अन्य महानगरों की तुलना में सबसे अधिक हैं।

    विशेषज्ञों का मानना है कि मुंबई की रेल प्रणाली पर यात्रियों का बोझ बहुत ज्यादा है। पीक ऑवर्स में लोकल ट्रेनों में 4 गुना क्षमता तक भीड़ होती है, जिससे सुरक्षा मानकों का पालन करना लगभग असंभव हो जाता है। यही वजह है कि लोग जल्दबाजी में शॉर्टकट के रूप में ट्रैक पार करने लगते हैं।

    सामाजिक संगठनों का कहना है कि ट्रेसपासिंग को रोकने के लिए सिर्फ दीवारें या जुर्माने नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा। कई झुग्गी बस्तियों के लोगों के लिए रेलवे ट्रैक ही उनका रास्ता है। ऐसे में उनके लिए सुरक्षित विकल्प तैयार करना बेहद जरूरी है।

    एमआरवीसी के एक अधिकारी ने बताया कि परियोजना के तीसरे चरण में कुल 5110 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, जिसमें ट्रेन आधुनिकीकरण, स्टेशन अपग्रेडेशन, और सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना शामिल है। लेकिन आंकड़ों के मुताबिक, हादसों में कोई बड़ा अंतर नहीं आया है।

    अब निगम ने इस दिशा में ‘Zero Trespassing Mission’ शुरू करने की घोषणा की है। इस मिशन का लक्ष्य 2026 तक मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क में ट्रेसपासिंग से होने वाली मौतों को 50 प्रतिशत तक कम करना है। इसके लिए आधुनिक तकनीक, भीड़ प्रबंधन और सामाजिक भागीदारी पर जोर दिया जाएगा।

    रेलवे सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि मुंबई लोकल की सुरक्षा समस्या “सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर का नहीं, बल्कि व्यवहारिक परिवर्तन” का मुद्दा है। जब तक लोग ट्रैक पार करने को जोखिम नहीं मानेंगे, तब तक कोई भी योजना पूरी तरह सफल नहीं हो सकती।

    हालांकि, एमआरवीसी के अधिकारियों का कहना है कि नए कदमों से उम्मीद है कि स्थिति में सुधार आएगा। “हम सिर्फ दीवारें नहीं बना रहे, बल्कि लोगों की सोच बदलने का प्रयास भी कर रहे हैं,” एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा।

    मायानगरी में जहां लोकल ट्रेनें रोज़ाना 80 लाख यात्रियों को ढोती हैं, वहां हर जान की कीमत अनमोल है। सरकार और जनता, दोनों को मिलकर ही इस ट्रेसपासिंग नामक ‘अदृश्य खतरे’ को खत्म करना होगा — ताकि मुंबई की यह जीवनरेखा सच में सुरक्षित बन सके।

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