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नोएडा में स्थित ओखला बर्ड सैंक्चुरी, जिसे हमेशा प्रवासी पक्षियों का प्रमुख ठिकाना माना जाता रहा है, इस बार चिंताजनक स्थिति से जूझ रहा है। जानकारी के अनुसार, इस वर्ष प्रवासी पक्षियों ने सैंक्चुरी में आना बंद कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे मुख्य कारण पानी की कमी और भोजन की उपलब्धता में गिरावट है।
सैंक्चुरी के रेंजर और स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने बताया कि ओखला झील और उसके आसपास के जलस्तर में लगातार गिरावट आई है। पानी की कमी ने न केवल पक्षियों के रहने की जगह पर असर डाला है, बल्कि उनके भोजन के स्रोत को भी प्रभावित किया है। सैंक्चुरी के किनारे उगने वाले जलीय पौधे और मछलियां, जो पक्षियों के मुख्य आहार का हिस्सा हैं, अब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रवासी पक्षियों का रुख मोड़ना इस क्षेत्र के इकोसिस्टम पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। ओखला बर्ड सैंक्चुरी दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र का एकमात्र ऐसा स्थल है, जो शहरी क्षेत्रों में भी पक्षियों के लिए अनुकूल आवास प्रदान करता है। अगर पक्षी लगातार नहीं आएंगे, तो न केवल उनकी संख्या प्रभावित होगी, बल्कि यहां पर्यावरणीय संतुलन पर भी असर पड़ेगा।
स्थानीय निवासी और पक्षी प्रेमी बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जल प्रदूषण, निर्माण कार्य और झील के आसपास अतिक्रमण ने भी पक्षियों की संख्या में गिरावट लाने में योगदान दिया है। जलाशय में पानी की कमी ने मछलियों और कीटों की संख्या को कम कर दिया है, जिससे पक्षियों का प्राकृतिक भोजन संकट में पड़ गया है।
ओखला बर्ड सैंक्चुरी में आए प्रवासी पक्षी मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम में नेपाल, सिक्किम और उत्तर भारत से आते हैं। इन पक्षियों के आने का समय अक्टूबर से मार्च तक होता है। लेकिन इस साल पर्यावरणविदों ने देखा कि सैंक्चुरी में पक्षियों की संख्या अपेक्षाकृत कम रही है। इस वजह से पर्यावरण और पक्षी संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन चिंता में हैं।
वन्यजीव विशेषज्ञ और बर्ड कंज़र्वेशनिस्ट का कहना है कि सैंक्चुरी में पानी की मात्रा बढ़ाने के लिए स्थानीय प्रशासन को जल प्रबंधन और झील पुनर्जीवन जैसी योजनाओं को लागू करना चाहिए। साथ ही, पक्षियों के लिए कृत्रिम भोजन और सुरक्षित ठिकाने बनाए जाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि अगर यह समस्या लंबे समय तक बनी रही, तो प्रवासी पक्षियों का सैंक्चुरी से पलायन स्थायी हो सकता है।
ओखला बर्ड सैंक्चुरी में पक्षियों के न आने का असर पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। हर साल हजारों पर्यटक और फोटोग्राफर इस सैंक्चुरी में पक्षियों को देखने आते हैं। प्रवासी पक्षियों की अनुपस्थिति से पर्यटन घटने के साथ ही स्थानीय व्यापारियों और गाइड्स को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
स्थानीय प्रशासन ने कुछ उपायों की घोषणा की है। उन्होंने झील के पानी की आपूर्ति बढ़ाने, आसपास के जलस्तर को नियंत्रित करने और पक्षियों के लिए भोजन की व्यवस्था करने का भरोसा दिया है। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि इन उपायों को तत्काल और प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए, नहीं तो पक्षियों की वापसी मुश्किल हो सकती है।
ओखला बर्ड सैंक्चुरी की यह समस्या पूरे देश में पर्यावरणीय जागरूकता और संरक्षण के महत्व को उजागर करती है। यह बताती है कि शहरीकरण और जल संकट ने प्राकृतिक आवासों को कितना प्रभावित किया है। यदि सही समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में प्रवासी पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा सकती है।
कुल मिलाकर, ओखला बर्ड सैंक्चुरी में प्रवासी पक्षियों का मोड़ना और भोजन पर संकट ने क्षेत्र के इकोसिस्टम और पर्यावरण संरक्षण की स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रशासन, वन विभाग और नागरिकों को मिलकर इस संकट का स्थायी समाधान निकालने की आवश्यकता है, ताकि आने वाले वर्षों में यह सैंक्चुरी फिर से प्रवासी पक्षियों का सुरक्षित और समृद्ध ठिकाना बन सके।








