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महाराष्ट्र की बेटी सुजाता मडके इन दिनों चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। एक साधारण किसान परिवार से आने वाली इस युवा महिला ने अपनी लगन और अथक परिश्रम से वह मुकाम हासिल किया है, जिसकी कल्पना बहुत कम लोग कर पाते हैं। कभी परिवहन विभाग में आरटीओ इंस्पेक्टर के रूप में काम करने वाली सुजाता आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में बतौर साइंटिस्ट कार्यरत हैं। उनकी कहानी प्रेरणा, संघर्ष और संकल्प का ऐसा संगम है जो हर उस व्यक्ति को हिम्मत देता है जो अपनी परिस्थितियों से हार मानने के बजाय सपनों को साकार करने की ठान लेता है।
सुगंधा मडके महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के एक छोटे से गांव में पैदा हुईं। उनका परिवार खेती-किसानी से जुड़ा था, और आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत नहीं थी। बचपन से ही सुजाता पढ़ाई में तेज थीं। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई सरकारी स्कूल में की, जहां अक्सर बिजली, किताबों और संसाधनों की कमी रहती थी। बावजूद इसके, उन्होंने कभी अपनी मेहनत में कमी नहीं आने दी। उनका सपना हमेशा से था कि वे कुछ ऐसा करें जिससे उनका परिवार और उनका राज्य गर्व महसूस करे।
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने महाराष्ट्र परिवहन विभाग में आरटीओ इंस्पेक्टर के रूप में नौकरी हासिल की। यह उनके परिवार के लिए बड़ी उपलब्धि थी। लेकिन सुजाता यहीं रुकने वाली नहीं थीं। नौकरी के दौरान भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। इसी दौरान उन्होंने ISRO की परीक्षा की तैयारी शुरू की। सीमित समय, व्यस्त नौकरी और घरेलू जिम्मेदारियों के बावजूद उन्होंने अनुशासन के साथ अपनी तैयारी जारी रखी।
साल 2024 में जब ISRO ने नई भर्तियों के लिए परीक्षा आयोजित की, तो सुजाता ने आवेदन किया और शानदार प्रदर्शन करते हुए परीक्षा पास कर ली। आज वे इसरो में बतौर वैज्ञानिक कार्यरत हैं और भारत के अंतरिक्ष मिशनों में योगदान दे रही हैं। उनकी सफलता ने न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश को प्रेरित किया है।
सुझाता मडके की सफलता इस बात का प्रमाण है कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। उन्होंने बताया कि आरटीओ विभाग में नौकरी करते हुए वे अकसर सोचती थीं कि विज्ञान के क्षेत्र में कुछ ऐसा करना है जिससे देश का नाम रोशन हो। उन्होंने कहा कि “मेरे गांव में आज भी बहुत सी लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं, लेकिन मैं चाहती हूं कि मेरी कहानी उन्हें यह विश्वास दे कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अगर मेहनत सच्ची हो तो सफलता ज़रूर मिलती है।”
ISRO में चयन के बाद सुजाता के परिवार और गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। गांव के लोगों ने उन्हें सम्मानित किया और उनके पिता ने कहा कि “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारी बेटी अंतरिक्ष जैसी ऊंचाइयों तक पहुंचेगी। वह अब हमारे लिए ही नहीं, बल्कि पूरे महाराष्ट्र के लिए गर्व की बात है।”
सुझाता मडके अब युवा पीढ़ी, विशेषकर ग्रामीण और महिला विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं। उनकी कहानी न केवल करियर की सफलता की कहानी है, बल्कि यह इस बात का उदाहरण भी है कि मेहनत, लगन और आत्मविश्वास से कोई भी व्यक्ति अपनी मंजिल पा सकता है।
आज सुजाता ISRO की एक महत्वपूर्ण परियोजना से जुड़ी हैं और आने वाले समय में भारत के स्पेस मिशनों में उनका योगदान अहम माना जा रहा है। वे बताती हैं कि यह तो बस शुरुआत है, अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है।
सुझाता मडके की कहानी यह साबित करती है कि सफलता किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती। कठिन परिस्थितियों में जन्मी एक साधारण लड़की ने अपनी मेहनत और हौसले के दम पर वह मुकाम हासिल किया, जिसकी कामना करोड़ों लोग करते हैं। वह नई पीढ़ी के लिए एक जीवंत उदाहरण हैं कि अगर सपने बड़े हैं, तो राहें खुद बन जाती हैं।








