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सुप्रीम कोर्ट ने देश में आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या को लेकर सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब किया है। यह आदेश उन राज्यों के लिए गंभीर चेतावनी के रूप में आया है, जिन्होंने अब तक पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियमों के क्रियान्वयन पर हलफनामा दाखिल नहीं किया। कोर्ट ने इस मामले में पश्चिम बंगाल और तेलंगाना को छोड़कर बाकी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जवाब तलब किया है।
आवारा कुत्तों की संख्या में बढ़ोतरी और उनसे जुड़ी घटनाओं के चलते सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उठाया है। कोर्ट के मुताबिक, किसी भी राज्य ने देश में लागू Animal Birth Control Rules 2001 के पालन में आवश्यक कदम नहीं उठाए हैं। इन नियमों का उद्देश्य आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करना और लोगों तथा जानवरों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से यह स्पष्ट करने को कहा है कि उन्होंने अपने क्षेत्रों में आवारा कुत्तों के लिए कौन-कौन से कार्यक्रम शुरू किए हैं, कितने कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी किया गया और किस हद तक Animal Birth Control (ABC) नियमों का पालन हो रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यों की निष्क्रियता लोगों और जानवरों दोनों के लिए जोखिम पैदा कर रही है।
हालांकि, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना ने नियमों के क्रियान्वयन पर हलफनामा दाखिल किया है और वहां की सरकारी एजेंसियों ने अपने प्रयासों की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की है। यह दोनों राज्य अपनी जवाबदेही साबित करने में सफल रहे हैं। दूसरी ओर, बाकी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की अनदेखी ने सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी बढ़ा दी है।
जानकारी के अनुसार, कोर्ट ने यह आदेश ऐसे समय में दिया है जब देश में आवारा कुत्तों के हमले और सड़क हादसों की संख्या बढ़ रही है। कई राज्यों में लोगों पर हमला करने वाले कुत्तों की घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी है। कोर्ट ने राज्यों से कहा कि अगर नियमों का पालन नहीं हुआ, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी और राज्य सरकारें इसके लिए जिम्मेदार होंगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब राज्यों को दो विकल्प मिल गए हैं। पहला, वे तुरंत हलफनामा दाखिल करके ABC नियमों के क्रियान्वयन की स्थिति स्पष्ट करें। दूसरा, कोर्ट द्वारा तय समय सीमा तक यदि कोई हलफनामा नहीं दिया गया तो कोर्ट कठोर कदम उठा सकता है, जिसमें वित्तीय दंड या उच्च स्तरीय निगरानी शामिल हो सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आवारा कुत्तों की समस्या केवल लोगों के लिए खतरा नहीं है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर समस्या है। अवैध रूप से बढ़ती इन जानवरों की संख्या रेबीज़ जैसी बीमारियों के फैलाव का कारण बन सकती है। इसके अलावा, सड़क दुर्घटनाओं और सड़क पर होने वाले हादसों में भी इन कुत्तों की संख्या एक बड़ा कारक बन गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से यह भी पूछा है कि उनके इलाके में कितने आवारा कुत्तों का टीकाकरण हुआ, कितने का Sterilization Program किया गया और कितने कुत्तों का ट्रैकिंग या निगरानी की गई। कोर्ट का कहना है कि केवल नियम बनाने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि उनकी प्रभावी क्रियान्वयन और निगरानी की आवश्यकता है।
इस आदेश का मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट अब राज्य सरकारों की निष्क्रियता को बर्दाश्त नहीं करेगा। अदालत ने साफ संकेत दिए हैं कि जनहित और जानवरों के अधिकारों की सुरक्षा सर्वोपरि है। इसके तहत राज्यों को जिम्मेदारी के साथ अपने कार्यों का विवरण देना अनिवार्य होगा।
इस पूरे मामले में पशु प्रेमियों और एनजीओ की भी बड़ी भूमिका रही है। कई एनजीओ और पशु कल्याण संगठनों ने अदालत में याचिकाएँ दाखिल की थीं, जिनमें आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने और उनके संरक्षण तथा नियंत्रण की मांग की गई थी। कोर्ट ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राज्यों ने तुरंत कदम नहीं उठाए, तो सुप्रीम कोर्ट सख्त आदेश जारी कर सकता है, जिसमें ABC नियमों का अनिवार्य पालन और निगरानी प्रणाली लागू करना शामिल हो सकता है। यह कदम आवारा कुत्तों की समस्या को नियंत्रित करने और जनता के स्वास्थ्य व सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक माना जा रहा है।
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मामले में राज्य सरकारों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। पश्चिम बंगाल और तेलंगाना ने हलफनामा दाखिल कर कदम उठाने की दिशा में पहल की है, लेकिन बाकी राज्यों को अब तत्काल अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। यह आदेश देशभर में आवारा कुत्तों की समस्या और सार्वजनिक सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने का अवसर है।








