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दुनिया में वायु गुणवत्ता और प्रदूषण को लेकर हाल ही में जारी रिपोर्ट ने एक बार फिर भारत की स्थिति पर चिंता जताई है। रिपोर्ट के अनुसार, ओस्लो, नॉर्वे दुनिया के सबसे साफ हवा वाले शहरों में शीर्ष पर है। नॉर्वे की राजधानी में स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के सख्त नियमों के कारण हवा सालभर शुद्ध बनी रहती है। वहीं, भारत के किसी भी शहर को टॉप 10 में जगह नहीं मिली।
दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र इन दिनों धुंध और धुएं की चपेट में हैं। शीतलहर और औद्योगिक गतिविधियों के कारण AQI (Air Quality Index) अत्यंत खराब स्तर पर पहुंच गया है। दमघोंटू वातावरण से स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। सांस लेने में कठिनाई, आंखों में जलन और एलर्जी जैसी समस्याएं आम हो गई हैं।
इस गंभीर स्थिति को सुधारने के लिए क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding / Artificial Rain) की योजना बनाई गई है। इस तकनीक के तहत बादलों में विशेष रसायनों के माध्यम से वर्षा को प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वायु में मौजूद प्रदूषणकण धूल और धुएं के साथ बारिश के पानी में मिलकर जमीन पर गिर जाएं। यह तरीका हवा की गुणवत्ता सुधारने में सहायक होता है, हालांकि यह केवल अस्थायी उपाय है।
नॉर्वे जैसे छोटे देश हवा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कई पहल करते हैं। वहां पेट्रोल और डीज़ल कारों का कम इस्तेमाल, स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का प्रोत्साहन और औद्योगिक उत्सर्जन नियंत्रण के सख्त नियम लागू हैं। इसके परिणामस्वरूप वहां की हवा शुद्ध और प्रदूषण-मुक्त रहती है। इसके विपरीत, भारत में बढ़ती जनसंख्या, वाहनों की संख्या, औद्योगिक धुएं और ठोस अपशिष्ट के जलाने से हवा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली और एनसीआर में सर्दियों के मौसम में धुंध और स्मॉग की समस्या बढ़ जाती है। इसका मुख्य कारण वाहन उत्सर्जन, निर्माण कार्यों की धूल और औद्योगिक प्रदूषण है। AQI जब खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है, तब लोगों के लिए घर के अंदर रहना, मास्क पहनना और एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करना जरूरी हो जाता है।
क्लाउड सीडिंग अभियान के तहत मौसम विभाग और संबंधित राज्य सरकारें मिलकर कार्य करेंगी। इसका उद्देश्य हवा में प्रदूषण को कम करना और वायु गुणवत्ता सुधारना है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल अस्थायी राहत देगा। स्थायी सुधार के लिए आवश्यक है कि औद्योगिक नियमों का पालन, स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग और शहरों में वाहनों की संख्या नियंत्रण किया जाए।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जनसंख्या और शहरों का विस्तार प्रदूषण की समस्या को चुनौतीपूर्ण बना देता है। इसलिए, नागरिकों को भी जिम्मेदारी निभानी होगी। इसमें शामिल हैं: निजी वाहनों का कम इस्तेमाल, प्लास्टिक का सीमित उपयोग, कचरे का सही निपटान और पौधारोपण।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में साफ हवा वाले देशों में छोटे, तकनीकी और नियम-केंद्रित देश शामिल हैं। भारत के बड़े शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और लखनऊ प्रदूषण के मामले में लगातार चिंताजनक स्थिति में हैं।
क्लाउड सीडिंग के प्रयास से दिल्ली और एनसीआर में कुछ हद तक सुधार की उम्मीद जताई जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम स्वास्थ्य संकट को अस्थायी रूप से कम करने में मदद करेगा, लेकिन स्थायी समाधान के लिए नीति, तकनीक और नागरिक भागीदारी अनिवार्य है।
इस अभियान के साथ-साथ पर्यावरण संगठनों ने सरकार से अपील की है कि स्वच्छ हवा के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनाएं। स्कूलों और कार्यस्थलों में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग की जाए और लोगों को प्रदूषण की वास्तविक स्थिति से अवगत कराया जाए।
अंततः, नॉर्वे जैसे देशों की हवा की गुणवत्ता यह दिखाती है कि प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, तकनीकी उपाय और नियमों का पालन मिलकर हवा को साफ और स्वस्थ बनाए रख सकते हैं। भारत में क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीक फिलहाल राहत दे सकती है, लेकिन स्थायी सुधार के लिए सभी स्तरों पर ठोस कदम उठाना आवश्यक है।








