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बिहार में आज सुबह चार दिवसीय छठ पूजा पर्व का समापन आस्था, श्रद्धा और भक्ति के माहौल में हुआ। राज्य के सभी जिलों में लाखों श्रद्धालु तड़के से ही गंगा, सोन, कोसी और अन्य नदियों के तटों पर एकत्र हुए और उगते सूर्य को ‘उषा अर्घ्य’ अर्पित किया। इस अवसर पर पटना, भागलपुर, आरा, सासाराम, दरभंगा, मुजफ्फरपुर और गया के घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
घाटों पर महिलाओं ने पारंपरिक साड़ियों में सुसज्जित होकर पूजा की थालियों में ठेकुआ, केले, नारियल, गन्ना, दीप और अन्य पूजा सामग्री रखी। जैसे ही सूरज की पहली किरण जल में पड़ी, श्रद्धालु महिलाओं ने दोनों हाथ जोड़कर सूर्य देव और छठी मइया का आह्वान किया।
छठ पूजा का यह चौथा और अंतिम दिन सबसे पवित्र माना जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और पूरी रात जलाशय के किनारे बैठकर सूर्योदय की प्रतीक्षा करती हैं। ‘उषा अर्घ्य’ का अर्थ है उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना, जिससे जीवन में नई ऊर्जा और समृद्धि का संचार होता है।
छठ पर्व को सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित माना जाता है। यह त्योहार कृतज्ञता का प्रतीक है—प्रकृति, सूर्य और जल के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने का अनोखा माध्यम। यह पर्व लोकसंस्कृति में परिवार, स्वास्थ्य और सामुदायिक एकता का प्रतीक बन चुका है।
पटना के गांधी घाट, कलेक्टरेट घाट, कुर्ती घाट और नासरगंज घाट पर हजारों महिलाएं और पुरुष परिवार के साथ पहुंची थीं। घाटों को केले के पत्तों, फूलों, दीपकों और तोरणों से सजाया गया था।
व्रतियों के साथ उनके परिवारजन और रिश्तेदार भी शामिल हुए, जिन्होंने गीतों और भजनों से वातावरण को श्रद्धामय बना दिया। “उग हो सूरज देव भईल भिनसरवा…” जैसे पारंपरिक छठ गीत घाटों पर गूंजते रहे।
भोर की पहली किरण के साथ ही पूरा वातावरण एक दिव्य आभा में नहाया हुआ प्रतीत हुआ। जल में खड़ी महिलाओं ने सूर्य को जल अर्पित किया और परिवार की खुशहाली, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की।
राज्य सरकार ने छठ पर्व के अवसर पर सुरक्षा की सख्त व्यवस्था की थी।
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पटना प्रशासन ने 200 से अधिक घाटों पर पुलिस बल, होमगार्ड और गोताखोर तैनात किए।
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NDRF और SDRF की टीमें नदी किनारों पर चौकसी में लगी रहीं।
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मेडिकल कैंप, एंबुलेंस, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और मोबाइल पुलिस यूनिट हर घाट पर मौजूद रहे।
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बिजली और जलापूर्ति विभाग ने घाटों पर रोशनी और स्वच्छता सुनिश्चित की।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने राज्यवासियों को छठ पर्व की शुभकामनाएं दीं और प्रशासनिक तैयारियों का निरीक्षण किया।
छठ पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि लोकसंगीत और पारंपरिक संस्कृति का उत्सव भी है।
हर घाट पर महिलाएं लोकगीत गा रही थीं, बच्चे फूल और दीप जलाते दिखे, जबकि बुजुर्ग शांत भाव से पूजा में लीन थे।
लोक कलाकारों और स्वयंसेवी संगठनों ने “स्वच्छ छठ, सुरक्षित छठ” अभियान चलाया, जिसमें घाटों की सफाई और प्लास्टिक-मुक्त वातावरण पर जोर दिया गया।
अर्घ्य के बाद व्रती महिलाओं ने घर लौटकर प्रसाद वितरित किया। ठेकुआ, चावल का लड्डू, सूजी का पुआ और नारियल प्रसाद के रूप में सभी में बांटा गया। परिवार के लोग व्रती के पैर छूकर आशीर्वाद लेते देखे गए।
छठ पूजा को “सामूहिक परिवार और सामाजिक एकता” का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व बिहार की सामाजिक संरचना को मजबूत करता है, जिसमें आस्था के साथ अनुशासन और संयम झलकता है।
इस वर्ष कई जिलों में “ग्रीन छठ” अभियान चलाया गया। प्रशासन ने श्रद्धालुओं से प्लास्टिक सामग्री का उपयोग न करने और घाटों की स्वच्छता बनाए रखने की अपील की।
पटना नगर निगम और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने घाटों पर कचरा प्रबंधन की विशेष व्यवस्था की।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा —
“छठ पूजा प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है। यदि इसे पर्यावरण-सुरक्षा के साथ मनाया जाए, तो यह भावी पीढ़ियों के लिए उदाहरण बनेगा।”
चार दिनों तक चले इस पर्व ने फिर यह साबित किया कि आधुनिकता की तेज़ रफ्तार के बावजूद बिहार में परंपरा की जड़ें आज भी उतनी ही मजबूत हैं।
उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते समय जब लाखों श्रद्धालु एक स्वर में “जय छठी मइया” का जयघोष करते हैं, तो वह केवल धार्मिक भावना नहीं, बल्कि एकता, संस्कार और संस्कृति का सजीव प्रमाण होता है।








