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केरल के गुरुवायुर शहर में स्थित एक बायो पार्क में हाल ही में स्थापित की गई महात्मा गांधी की प्रतिमा ने विवाद खड़ा कर दिया है। इस प्रतिमा को लेकर स्थानीय लोगों और सोशल मीडिया पर भारी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। लोगों का कहना है कि प्रतिमा का चेहरा महात्मा गांधी से मेल नहीं खाता और यह उनकी असल छवि का अपमान है।
विवाद तब और बढ़ गया जब यह पता चला कि प्रतिमा में गांधीजी का प्रतीक माने जाने वाले चश्मे और हाथ की लाठी को शुरू में शामिल ही नहीं किया गया था। जब इस बात पर लोगों ने आपत्ति जताई, तो बाद में अधिकारियों ने जल्दबाजी में चश्मा और लाठी जोड़ दिए। लेकिन तब तक विवाद की चिंगारी फैल चुकी थी।
गुरुवायुर बायो पार्क में हुआ अनावरण, लेकिन पहचान पर उठे सवाल
गुरुवायुर का यह बायो पार्क एक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। कुछ दिन पहले यहां स्थानीय नगर प्रशासन की ओर से महात्मा गांधी की एक नई प्रतिमा स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा का अनावरण स्थानीय नेताओं और अधिकारियों की मौजूदगी में किया गया।
लेकिन अनावरण के कुछ ही घंटे बाद लोग सोशल मीडिया पर प्रतिमा की तस्वीरें साझा करने लगे और तुलना करने लगे कि इसका चेहरा गांधीजी से बिल्कुल नहीं मिलता। कई लोगों ने लिखा कि “अगर लाठी और चश्मा नहीं होते, तो कोई यह पहचान भी नहीं पाता कि यह गांधीजी की प्रतिमा है।”
एक स्थानीय नागरिक ने कहा, “यह प्रतिमा महात्मा गांधी के विचारों का प्रतीक होनी चाहिए थी, लेकिन इसके निर्माण में न तो शिल्पकला का ध्यान रखा गया और न ही ऐतिहासिक सटीकता का। यह गांधीजी का नहीं, किसी और व्यक्ति का चेहरा लगता है।”
अधिकारियों ने की सफाई: ‘कलात्मक स्वतंत्रता का हिस्सा’
विवाद बढ़ने के बाद नगर प्रशासन और बायो पार्क प्रबंधन ने इस पर सफाई दी है। अधिकारियों ने कहा कि प्रतिमा को स्थानीय कलाकारों ने “आधुनिक कलात्मक शैली” में तैयार किया है और यह जरूरी नहीं कि वह गांधीजी के चेहरे की हूबहू नकल हो।
एक अधिकारी ने कहा, “यह प्रतिमा गांधीजी के विचारों और जीवन दर्शन का प्रतीक है, न कि केवल उनके चेहरे का प्रतिरूप। लाठी और चश्मा जोड़ने की प्रक्रिया तकनीकी कारणों से देरी से हुई थी, लेकिन अब प्रतिमा पूर्ण रूप में है।”
हालांकि, यह तर्क लोगों को ज्यादा समझ नहीं आ रहा। सोशल मीडिया पर लोग लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि गांधीजी जैसी ऐतिहासिक और भावनात्मक शख्सियत की प्रतिमा में ऐसी लापरवाही कैसे की जा सकती है।
सोशल मीडिया पर बढ़ा आक्रोश
फेसबुक, एक्स (ट्विटर) और इंस्टाग्राम पर लोगों ने प्रतिमा की तस्वीरें साझा करते हुए सरकार और प्रशासन पर निशाना साधा है। कुछ यूजर्स ने लिखा, “अगर यह गांधीजी हैं, तो फिर असली गांधीजी कौन थे?” वहीं कई लोगों ने व्यंग्य करते हुए लिखा कि “यह शायद गांधीजी का कोई AI वर्जन है।”
कुछ स्थानीय संगठनों ने इस प्रतिमा को हटाकर नई प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी सिर्फ भारत के नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए शांति और सत्य का प्रतीक हैं, इसलिए उनकी छवि से जुड़ी किसी भी चीज़ में गलती अस्वीकार्य है।
इतिहासकारों की राय: “सिर्फ मूर्ति नहीं, विचारों का प्रतीक है गांधी”
इतिहासकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस विवाद पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह विवाद अनावश्यक रूप से बढ़ाया जा रहा है, क्योंकि किसी प्रतिमा का मकसद केवल चेहरे की समानता नहीं, बल्कि व्यक्ति के विचारों को दर्शाना होता है।
हालांकि, कई इतिहासकारों ने यह भी स्वीकार किया कि जब बात महात्मा गांधी की हो, तो ऐतिहासिक सटीकता अनिवार्य हो जाती है। इतिहासकार एस. रघु ने कहा, “गांधीजी का चेहरा और उनकी प्रतीकात्मक पहचान — जैसे चश्मा, लाठी और सादा वस्त्र — भारतीय जनमानस में गहराई से बसे हैं। यदि किसी प्रतिमा में यह सब नहीं होगा, तो जनता स्वाभाविक रूप से असहज महसूस करेगी।”
स्थानीय प्रशासन ने कहा: सुधार किया जाएगा
बढ़ते विवाद को देखते हुए गुरुवायुर नगर प्रशासन ने कहा है कि वे प्रतिमा के डिजाइनर कलाकार से बात करेंगे और यदि जनता की मांग उचित लगी तो प्रतिमा में सुधार किया जाएगा।
नगर पार्षद ने मीडिया से कहा, “हम जनता की भावनाओं का सम्मान करते हैं। अगर ज़रूरत पड़ी तो प्रतिमा को संशोधित या बदलने पर विचार किया जाएगा। हमारा उद्देश्य विवाद पैदा करना नहीं था।”
गांधीजी की प्रतिमाओं पर पहले भी उठे सवाल
यह पहला मौका नहीं है जब महात्मा गांधी की प्रतिमा को लेकर विवाद हुआ हो। देश के अलग-अलग हिस्सों में पहले भी प्रतिमाओं की सटीकता और प्रतीकात्मकता को लेकर बहस छिड़ चुकी है। कुछ साल पहले मध्य प्रदेश और ओडिशा में भी ऐसी ही घटनाएं सामने आई थीं, जहां प्रतिमाओं में गांधीजी की आकृति को लेकर सवाल उठाए गए थे।
लेकिन इस बार की घटना ने खासा ध्यान खींचा है क्योंकि यह मामला केरल जैसे राज्य से जुड़ा है, जहां शिक्षा, कला और सामाजिक जागरूकता का स्तर काफी ऊंचा माना जाता है।
गुरुवायुर में लगी यह प्रतिमा अब केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि “संवेदनशील कलात्मक गलती” की मिसाल बन गई है। सवाल यह नहीं कि मूर्ति किसने बनाई या चश्मा कब लगाया गया, बल्कि यह है कि क्या कला की स्वतंत्रता इतिहास की सटीकता से ऊपर हो सकती है?
जहां कुछ लोग इसे कलाकार की दृष्टि मान रहे हैं, वहीं अधिकांश नागरिकों के लिए यह “राष्ट्रपिता की छवि” के प्रति असम्मान का प्रतीक बन चुकी है।
केरल प्रशासन अब जनता की भावनाओं और कला की स्वतंत्रता — दोनों के बीच संतुलन साधने की कोशिश में है। लेकिन एक बात साफ है — महात्मा गांधी आज भी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि जनता की आस्था हैं, और उनकी प्रतिमा से जुड़ी किसी भी गलती को लोग इतनी आसानी से माफ नहीं करेंगे।







