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उत्तराखंड का मशहूर हिल स्टेशन मसूरी, जिसे लोग प्यार से ‘पहाड़ों की रानी’ कहते हैं, आज गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। अवैध खनन और अंधाधुंध निर्माण गतिविधियों ने मसूरी के प्राकृतिक संतुलन को पूरी तरह से हिला दिया है। स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और कई मामलों में मिलीभगत के कारण माल रोड, झड़ी पानी और आसपास के कई इलाकों में खतरे की घंटी बज रही है।
मसूरी की पहचान इसके हरियाले जंगलों, पर्वतीय वादियों और ठंडी हवा के लिए की जाती रही है। यह हिल स्टेशन पर्यटकों का पसंदीदा स्थल है और आर्थिक रूप से क्षेत्र की रीढ़ भी माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में अवैध खनन और अनियंत्रित निर्माण ने पहाड़ी इलाकों की मिट्टी को कमजोर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो क्षेत्र में बड़े भू-स्खलन की आशंका है।
अवैध खनन और निर्माण:
स्थानीय लोगों की मानें तो मसूरी में पिछले दशक में निर्माण गतिविधियों में तेजी आई है। नई होटलों, रेस्टोरेंट्स और निजी आवासीय परियोजनाओं के लिए पहाड़ों की जमीन काटी जा रही है। कुछ इलाकों में खनन गतिविधियां बिना किसी पर्यावरणीय मंजूरी के की जा रही हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि पहाड़ी मिट्टी को इस तरह काटने और हटाने से वर्षा के समय भूस्खलन का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
माल रोड और झड़ी पानी का संकट:
मसूरी की प्रमुख सड़कों में से एक माल रोड और पर्यटक स्थल झड़ी पानी सहित अन्य इलाके इस खतरे से सबसे अधिक प्रभावित हैं। वर्षा के मौसम में पहाड़ों से मिट्टी और पत्थर बहकर सड़क और आसपास के इलाकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। स्थानीय निवासियों ने बताया कि कई बार बारिश के बाद सड़कें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, जिससे ट्रैफिक बाधित होता है और पर्यटकों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
प्राकृतिक संतुलन पर असर:
विशेषज्ञों का कहना है कि मसूरी की पहाड़ी पारिस्थितिकी अब गंभीर खतरे में है। जंगल कटाई और मिट्टी हटा देने के कारण सिंचाई और जल संरक्षण की प्राकृतिक प्रणाली बाधित हो रही है। इसके अलावा, कई छोटे-छोटे जल स्रोत सूखने लगे हैं। पेड़ कटने के कारण पक्षियों और छोटे जीव-जंतुओं का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। इस स्थिति को देखते हुए पर्यावरणविद् डॉ. रेखा शर्मा ने कहा,
“अगर यह क्रम चलता रहा, तो मसूरी जैसे हिल स्टेशन का प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरणीय स्थिरता दोनों खतरे में पड़ जाएंगे। हमें तुरंत प्रभावी कदम उठाने होंगे।”
स्थानीय प्रशासन की भूमिका:
स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि कुछ मामलों में प्रशासन की मिलीभगत के चलते अवैध निर्माण और खनन को रोकने में विफलता रही है। अधिकारियों की अनदेखी और धीमी कार्रवाई ने पर्यावरणीय संकट को और गहरा कर दिया है।
समाधान और सुझाव:
विशेषज्ञों का मानना है कि मसूरी की सुरक्षा के लिए कई कदम जरूरी हैं। उनमें प्रमुख हैं —
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अवैध खनन पर तत्काल रोक लगाना,
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पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों के लिए सख्त नियम और पर्यावरणीय मंजूरी लागू करना,
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जल संरक्षण और जंगल संरक्षण के लिए स्थायी उपाय करना,
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वर्षा के मौसम में भू-स्खलन के खतरे के लिए चेतावनी प्रणाली बनाना।
स्थानीय और राज्य स्तर के पर्यावरण संगठन भी लगातार प्रशासन से अपील कर रहे हैं कि मसूरी को सुरक्षित और टिकाऊ पर्यटन स्थल बनाया जाए। उनका कहना है कि केवल पर्यटन और व्यवसाय को प्राथमिकता देने से लंबे समय में पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान होगा।
पर्यटक और स्थानीय समुदाय पर असर:
मसूरी पर पर्यटक आते हैं और यह स्थानीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन अगर प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा रहा और भूस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ीं, तो न केवल पर्यटन प्रभावित होगा बल्कि स्थानीय लोगों की सुरक्षा और आजीविका पर भी गंभीर असर पड़ेगा।
मसूरी की “पहाड़ों की रानी” की खूबसूरती और सांस्कृतिक महत्व को सुरक्षित रखना न केवल पर्यावरणविदों और स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है, बल्कि यह पूरे उत्तराखंड और भारत के लिए भी जरूरी है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह हिल स्टेशन अपने प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन के लिए खतरनाक स्थिति में आ सकता है।
मसूरी की समस्याएं केवल प्रशासनिक नहीं हैं, बल्कि यह सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना का भी सवाल हैं। स्थानीय प्रशासन, पर्यावरण संगठन और निवासियों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि मसूरी की नींव मजबूत बनी रहे और यह हिल स्टेशन आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और सुंदर स्थान बना रहे।







