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    पाकिस्तान ने कहा – अफगानिस्तान के साथ वार्ता विफल, काबुल पर प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने का आरोप

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    पाकिस्तान ने बुधवार को आधिकारिक रूप से घोषणा की कि अफगानिस्तान के साथ चार दिनों तक चली शांति वार्ता विफल रही है। दोनों देशों के बीच यह वार्ता तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में आयोजित की गई थी, जिसमें सीमा पार आतंकवाद, व्यापार और सुरक्षा सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।

    पाकिस्तान सरकार ने कहा कि अफगान तालिबान प्रशासन ने वार्ता के दौरान अपने पूर्व वचनों और प्रतिबद्धताओं से मुकरते हुए कोई ठोस समाधान नहीं दिया। पाकिस्तान के सूचना मंत्री अत्ता उल्लाह तरार ने कहा कि काबुल का रुख वार्ता की असफलता का मुख्य कारण बना।

    यह वार्ता 25 अक्टूबर को शुरू हुई थी और 29 अक्टूबर तक चली। तुर्की ने दोनों देशों को एक साझा मंच प्रदान किया ताकि सीमा पार आतंकवाद और सुरक्षा संकट पर समाधान निकाला जा सके।

    पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से मांग की थी कि वह अपनी भूमि का इस्तेमाल उन आतंकी संगठनों द्वारा न होने दे, जो पाकिस्तान के खिलाफ हमले करते हैं — विशेष रूप से तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

    हालांकि, पाकिस्तान के दावों के अनुसार, अफगान पक्ष ने वार्ता के दौरान पहले सहमति जताई, लेकिन बाद में अपने रुख से पीछे हट गया।

    सूचना मंत्री अत्ता उल्लाह तरार ने कहा,

    “अफगान पक्ष ने पहले वादे किए, लेकिन बाद में अपने ही शब्दों से मुकर गया। इस रवैये के कारण वार्ता किसी परिणाम पर नहीं पहुंच सकी।”

    अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान के आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपने आंतरिक सुरक्षा संकट को अफगानिस्तान पर थोपने की कोशिश कर रहा है।

    अफगान प्रवक्ता ने बयान जारी करते हुए कहा,

    “हमने पाकिस्तान से कहा कि आपसी सम्मान और सहयोग के बिना कोई स्थायी समाधान संभव नहीं है। लेकिन पाकिस्तान सीमा पार हमलों और हवाई कार्रवाई के जरिए तनाव बढ़ा रहा है।”

    अफगान पक्ष का दावा है कि पाकिस्तान की ओर से हाल में की गई हवाई कार्रवाई अफगान संप्रभुता का उल्लंघन है और यह वार्ता की भावना के खिलाफ है।

    पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा कि वार्ता में अफगान टीम ने पहले सहयोग के संकेत दिए थे, लेकिन काबुल से निर्देश मिलने के बाद वे पीछे हट गए।

    उन्होंने चेतावनी दी कि यदि काबुल ने आतंकवाद पर कार्रवाई नहीं की, तो पाकिस्तान को “कड़े कदम उठाने होंगे।
    उन्होंने कहा,

    “अगर अफगानिस्तान अपनी जमीन पर आतंकवाद को रोकने में विफल रहता है, तो पाकिस्तान को अपने लोगों की सुरक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाना पड़ेगा।”

    विश्लेषकों के अनुसार, यह वार्ता दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही अविश्वास की खाई को और गहरा करती है। 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते लगातार बिगड़ते रहे हैं।

    • पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान शासन TTP जैसे आतंकी संगठनों को संरक्षण दे रहा है।

    • वहीं, काबुल का कहना है कि पाकिस्तान बार-बार उसकी संप्रभुता का उल्लंघन कर रहा है और सीमा पार हमले कर रहा है।

    • दोनों देशों की साझा सीमा “डुरंड रेखा” पर हाल के महीनों में कई हिंसक झड़पें हुई हैं।

    पाकिस्तान ने हाल ही में अपनी सीमा को “आंशिक रूप से बंद” कर दिया है और हजारों अफगान शरणार्थियों को देश छोड़ने का आदेश दिया है।

    तुर्की, जिसने इस वार्ता की मेजबानी की, ने कहा है कि वह दोनों देशों को संवाद की प्रक्रिया में वापस लाने की कोशिश करेगा।
    तुर्की के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि,

    “हम क्षेत्रीय शांति के लिए दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की कोशिश जारी रखेंगे। संवाद ही एकमात्र रास्ता है।”

    कतर और ईरान जैसे देश भी मध्यस्थता में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि विश्वास और पारदर्शिता के बिना भविष्य की कोई भी वार्ता कठिन होगी।

    राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ता अविश्वास दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है।

    इस्लामाबाद विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर डॉ. हबीबुल्लाह खान ने कहा,

    “अगर यह टकराव बढ़ा तो इससे पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैल सकती है। आतंकवाद, शरणार्थी संकट और सीमा व्यापार पर गंभीर असर पड़ सकता है।”

    चार दिन चली पाकिस्तान-अफगानिस्तान वार्ता का विफल होना यह दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच भरोसे की भारी कमी बनी हुई है।
    जहाँ पाकिस्तान आतंकवाद पर अफगानिस्तान की भूमिका पर सवाल उठा रहा है, वहीं काबुल इस्लामाबाद की नीतियों को “हस्तक्षेपकारी” मान रहा है।

    अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उम्मीद अब तुर्की, कतर और अन्य मध्यस्थ देशों से है, जो इस विवाद को बातचीत के ज़रिए सुलझाने का प्रयास कर सकते हैं।

    हालांकि, अगर यह संवाद जल्द बहाल नहीं हुआ, तो आने वाले महीनों में पाकिस्तान-अफगान सीमा पर तनाव और बढ़ने की संभावना है।

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