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भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement – FTA) को लेकर बातचीत अब अंतिम चरण में पहुंच गई है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपने हालिया बयान में संकेत दिया है कि दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से चल रही वार्ताएं अब निर्णायक मोड़ पर हैं और जल्द ही समझौते पर सहमति बन सकती है।
जयशंकर ने कहा कि यह समझौता भारत और यूरोपीय संघ के बीच आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाएगा और इससे न केवल द्विपक्षीय व्यापार को गति मिलेगी, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी स्थिरता मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह पहल दोनों ओर की लोकतांत्रिक शक्तियों को और मजबूत करने में सहायक साबित होगी।
विदेश मंत्री ने यूरोपीय यूनियन के 27 सदस्य देशों के साथ हो रही बातचीत के दौरान कहा, “भारत और यूरोपीय संघ के बीच संबंध केवल व्यापार तक सीमित नहीं हैं। यह साझेदारी समान मूल्यों, लोकतंत्र, स्थिरता और सतत विकास पर आधारित है। हमारा उद्देश्य ऐसा समझौता करना है जो दोनों पक्षों के लिए दीर्घकालिक रूप से फायदेमंद हो।”
ज्ञात हो कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच FTA पर चर्चा करीब 16 साल पहले 2007 में शुरू हुई थी, लेकिन कई मुद्दों पर मतभेदों के कारण यह प्रक्रिया धीमी रही। अब हालात में बदलाव के साथ दोनों पक्ष इस समझौते को प्राथमिकता दे रहे हैं। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और यूरोप की टेक्नोलॉजी एवं निवेश क्षमता इस समझौते को विशेष महत्व देती है।
जयशंकर ने यह भी कहा कि दुनिया आज बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, और ऐसे समय में भारत-ईयू समझौता वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर करने में मदद करेगा। उन्होंने जोड़ा कि दोनों पक्ष जलवायु परिवर्तन, डिजिटल ट्रांजिशन और ग्रीन एनर्जी जैसे मुद्दों पर भी एक साझा दृष्टिकोण रखते हैं।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच यह व्यापार समझौता वस्तुओं, सेवाओं और निवेश को लेकर एक व्यापक ढांचा तैयार करेगा। इस FTA के तहत दोनों पक्ष आयात-निर्यात पर लगने वाले टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने पर सहमत हो सकते हैं। इसका सीधा फायदा भारतीय निर्यातकों को मिलेगा, विशेष रूप से टेक्सटाइल, फार्मा, आईटी, ऑटो पार्ट्स, कृषि और इंजीनियरिंग सेक्टर को।
यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वित्त वर्ष 2023-24 में दोनों के बीच कुल व्यापार लगभग 135 अरब डॉलर का रहा। भारत ने यूरोपीय देशों को मुख्य रूप से रसायन, मशीनरी, परिधान, और इंजीनियरिंग सामान का निर्यात किया, जबकि यूरोप से भारत ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, उच्च तकनीकी मशीनें और फार्मास्यूटिकल उत्पादों का आयात किया।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस FTA के लागू होने के बाद भारत को निवेश प्रवाह (FDI) में बढ़ोतरी, निर्यात प्रतिस्पर्धा में सुधार, और रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं। यूरोपीय निवेशक भी भारत में विनिर्माण और डिजिटल सेक्टर में निवेश करने को लेकर उत्सुक हैं, खासकर “मेक इन इंडिया” और “प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव” योजनाओं के कारण।
जयशंकर ने अपने बयान में यह भी रेखांकित किया कि भारत अब केवल “मार्केट” नहीं बल्कि “मैन्युफैक्चरिंग पार्टनर” के रूप में उभर रहा है। उन्होंने कहा, “भारत आज एक भरोसेमंद आर्थिक और रणनीतिक साझेदार है। यूरोप के लिए भारत में निवेश का यह सही समय है, क्योंकि यहां आर्थिक सुधारों और डिजिटल ट्रांजिशन ने नए अवसर खोले हैं।”
इस समझौते को लेकर यूरोपीय संघ भी उत्साहित है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने हाल ही में कहा था कि भारत और यूरोप के बीच संबंध “21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारियों” में से एक हैं। उन्होंने कहा कि दोनों क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा, और डिजिटल नीति में मिलकर वैश्विक मानक स्थापित कर सकते हैं।
हालांकि, कुछ मुद्दे अभी भी चर्चा में हैं — जैसे डेटा प्रोटेक्शन, बौद्धिक संपदा अधिकार, पर्यावरण मानक और कृषि उत्पादों पर टैरिफ। इन पर दोनों पक्षों के बीच बातचीत जारी है। भारतीय अधिकारी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि समझौते में विकासशील देशों के हितों का ध्यान रखा जाए और व्यापारिक शर्तें “संतुलित और व्यावहारिक” हों।
इस बीच, यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा है कि भारत की ओर से तेज़ी से हो रही आर्थिक वृद्धि और स्थिर नीतिगत माहौल इस समझौते को और अधिक महत्वपूर्ण बना देता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह FTA अगले कुछ महीनों में अंतिम रूप ले सकता है।
जयशंकर ने अंत में कहा कि भारत और यूरोप की यह साझेदारी केवल व्यापार तक सीमित नहीं, बल्कि एक रणनीतिक साझेदारी है जो लोकतंत्र, तकनीकी नवाचार और सतत विकास के साझा लक्ष्यों पर आधारित है। उन्होंने कहा, “जब दुनिया में आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता है, तब भारत और यूरोप जैसी ताकतों का एक साथ आना वैश्विक स्थिरता का संकेत है।”
इस समझौते के लागू होने के बाद भारत के छोटे और मध्यम उद्योगों (MSME) को यूरोपीय बाजार में नई पहुंच मिलेगी, वहीं यूरोपीय कंपनियों को भारत की बड़ी उपभोक्ता आबादी तक सीधी पहुंच होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह साझेदारी आने वाले दशक में भारत को वैश्विक व्यापार शक्ति के रूप में स्थापित करने में मदद करेगी।
यदि सब कुछ तय समय पर चलता है, तो भारत-यूरोपीय यूनियन FTA अगले वर्ष तक औपचारिक रूप से लागू हो सकता है। यह न केवल दोनों पक्षों की अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि वैश्विक व्यापार संतुलन के लिए भी एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा।






