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    जिस बिजनेस में टाटा हो गया फेल, वहीं एक युवा इंजीनियर ने रच दी सफलता की कहानी! जानिए लेंसकार्ट की क्रांति का पूरा किस्सा

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    भारत के स्टार्टअप इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने न केवल अपने बिजनेस मॉडल से बल्कि आम लोगों की सोच को भी बदल दिया। इन्हीं में से एक है लेंसकार्ट (Lenskart), जिसके संस्थापक पियूष बंसल (Peyush Bansal) आज भारतीय उद्यमिता की पहचान बन चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिस बिजनेस मॉडल में टाटा जैसी दिग्गज कंपनी असफल रही, उसी क्षेत्र में एक युवा इंजीनियर ने ऐसी सफलता पाई कि आज उसकी कंपनी अरबों डॉलर की वैल्यूएशन पर खड़ी है।

    लेंसकार्ट का आईपीओ 31 अक्टूबर को खुलने जा रहा है और इसको लेकर निवेशकों में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। कंपनी ने भारत में चश्मे बेचने के पारंपरिक तरीके को पूरी तरह बदल दिया। पहले जहां लोग किसी ऑप्टिकल स्टोर में जाकर घंटों फ्रेम चुनते थे, वहीं लेंसकार्ट ने उन्हें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए घर बैठे ही यह सुविधा दे दी।

    लेंसकार्ट की शुरुआत साल 2010 में पियूष बंसल ने दिल्ली में एक छोटे ऑफिस से की थी। उन्होंने अमेरिका की माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में अपनी नौकरी छोड़कर भारत लौटने का फैसला किया था। पियूष का मानना था कि भारत जैसे देश में आंखों की देखभाल और विजन के लिए आधुनिक सेवाओं की भारी कमी है। उन्होंने इस कमी को अपनी ताकत बना लिया और “टेक्नोलॉजी + अफोर्डेबिलिटी” का ऐसा मिश्रण तैयार किया जिसने लेंसकार्ट को भीड़ से अलग कर दिया।

    कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसी तरह के बिजनेस में टाटा ने भी सालों पहले “Titan Eye+” के जरिए कदम रखा था। ब्रांड मजबूत था, लेकिन मॉडल पारंपरिक रहा। वहीं, लेंसकार्ट ने पूरी तरह डिजिटल और डेटा-ड्रिवन मॉडल अपनाया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 3D फेस स्कैनिंग और ट्रायल-एट-होम जैसी सुविधाओं ने इसे युवा पीढ़ी के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया।

    आज लेंसकार्ट के पास न केवल ऑनलाइन ग्राहक हैं बल्कि देशभर में 2000 से ज्यादा रिटेल आउटलेट्स भी हैं। कंपनी अब सिंगापुर, दुबई और लंदन जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। बताया जा रहा है कि लेंसकार्ट का IPO करीब 10,000 करोड़ रुपये का हो सकता है और इसमें निवेशकों की भारी दिलचस्पी देखने को मिलेगी।

    कई मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि लेंसकार्ट का आईपीओ भारत के स्टार्टअप्स के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। खासकर इसलिए क्योंकि यह दिखाता है कि सही आइडिया, टेक्नोलॉजी और ग्राहक की जरूरत को समझकर कोई भी पारंपरिक दिग्गज कंपनियों को पछाड़ सकता है।

    लेंसकार्ट की सफलता के पीछे सिर्फ बिजनेस नहीं, बल्कि सामाजिक सोच भी है। पियूष बंसल ने हमेशा कहा कि “हम सिर्फ चश्मे नहीं बेचते, बल्कि लोगों को उनकी आंखों के जरिए दुनिया दिखाते हैं।” यही वजह है कि लेंसकार्ट ने भारत में लाखों लोगों को किफायती दामों पर विजन केयर उपलब्ध कराई।

    आज जब कंपनी शेयर बाजार में उतरने जा रही है, तब यह सिर्फ एक IPO नहीं बल्कि एक भारतीय उद्यमी के सपनों की उड़ान है। यह उस सोच की जीत है जिसने दिखाया कि सफलता के लिए बड़े संसाधन नहीं, बल्कि बड़ा विजन चाहिए। टाटा जैसी दिग्गज कंपनी जहां इस बिजनेस को स्केल नहीं कर पाई, वहीं एक युवा इंजीनियर ने टेक्नोलॉजी और ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण से कमाल कर दिखाया।

    लेंसकार्ट की कहानी आज हर उस भारतीय युवा के लिए प्रेरणा है जो यह सोचता है कि दुनिया बदलने के लिए बड़ी कंपनी की जरूरत नहीं, बस एक बड़ा सपना और उसे सच करने का जुनून होना चाहिए।

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