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महाराष्ट्र के नाशिक शहर में पुलिस ने एक नया कदम उठाया है, जिससे अल्पवयीन बच्चों द्वारा हो रहे सड़क-गुंहों (स्ट्रीट क्राइम) के मामलों में उनका पर्यवेक्षण और भी सख्त हो गया है। शहर की क्राइम ब्रांच और वरिष्ठ अधिकारी अब स्पष्ट कर चुके हैं कि यदि कोई बच्चा सार्वजनिक स्थान पर किसी प्रकार की हिंसा, गतिरोध या दगड़फेंक जैसी कृत्यों में लिप्त पाया गया, तो सिर्फ वह नहीं बल्कि उसके माता-पिता को भी सह-आरोपी बनाया जाएगा। इस नीति-घोषणा ने सामाजिक सरोकार और कानून-व्यवस्था की दृष्टि से हलचल मचा दी है।
पुलिस अधिकारी एस. मितके (सहायक आयुक्त, क्राइम) ने बताया कि “अगर अल्पवयीन बच्चों की गतिविधियों से शहर की छवि धब्बा खाती है, तो पुलिस उस बच्चे के खिलाफ कार्रवाई करेगी और साथ ही उसके माता-पिता को भी कानूनी प्रक्रिया के तहत बुलाया जाएगा।” वे आगे कहते हैं कि यह निर्णय उन तीन 15 वर्ष के बच्चों के कृत्यों के बाद लिया गया है, जिन्होंने मुंबई नाका इलाके में सार्वजनिक दगड़फेंक की थी। उन बच्चों को सरकारी ऑब्ज़र्वेशन होम भेजा गया और उनके माता-पिता को स्टेशन पर तलब किया गया।
इस कदम के पीछे पुलिस का तर्क है कि बच्चों के अपराध सिर्फ उनकी जिम्मेदारी नहीं बल्कि परिवार और सामाजिक पर्यावरण का परिणाम भी होते हैं। उन्होंने कहा है कि गत तीन-चार हफ्तों में शहर में सड़क अपराध कम हुए हैं, लेकिन अल्पवयीन अपराधों में अचानक वृद्धि देखी गई है। इसलिए इस नई नीति से निवारक कार्रवाई पर जोर दिया गया है—यानी अपराध होने के बाद केवल सजा नहीं बल्कि अपराध तक पहुंचने वाले कारणों पर नियंत्रण।
विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला अलग-अलग दृष्टियों से देखा जाना चाहिए। एक ओर यह बच्चे सुरक्षा और शिक्षा के प्रति चेतना बढ़ाने का संकेत देता है, वहीं दूसरी ओर यह चिंता भी जगाता है कि क्या इस तरह के कदम किशोर न्याय प्रणाली और संवैधानिक अधिकारों के प्रसंग में उचित हैं? महाराष्ट्र में बाल न्याय अधिनियम के अंतर्गत बच्चों को विशेष प्रक्रिया के तहत देखा जाता है, इसलिए माता-पिता को सह-आरोपी बनाए जाने का निर्णय संविधात्मक समीक्षा का विषय बन सकता है।
पुलिस ने यह स्पष्ट किया है कि इस प्रक्रिया में सिर्फ आंशिक त्रुटि नहीं बल्कि सक्रिय लापरवाही या उकसावा व्यवहार पाया जाना अनिवार्य होगा। यदि बच्चे ने लूट-मार या दगड़फेंक जैसी कृतियाँ की हैं और माता-पिता ने उसे नहीं रोका या सही शिक्षा-पर्यावरण नहीं दिया है, तब ही सह-आरोपी ठहराया जाएगा। नाशिक क्राइम ब्रांच ने स्थानीय परमाणु-स्ट्रीट अपराधों की श्रेणी घोषित की है, जिसमें अल्पवयीन भागीदारी बढ़ी है।
समाज कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस निर्णय से संघर्षशील परिवारों को सहायता और मार्गदर्शन मिलना चाहिए, न कि सिर्फ दंड। बच्चों को भटकने से रोकने के लिए विकल्प, स्कूल-योजनाएं, काउंसलिंग तथा क्लब-अवसर बढ़ाने की आवश्यकता है। केवल कानूनी कार्रवाई से समस्या पूरी तरह हल नहीं होगी।







