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भारतीय शेयर बाजार में गुरुवार को जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखने को मिला। अमेरिका के फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) द्वारा ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती की घोषणा के बावजूद घरेलू बाजारों में निवेशकों की धारणा कमजोर रही। शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स 500 अंकों से अधिक गिर गया जबकि निफ्टी 22,000 के स्तर के आसपास फिसल गया। बाजार की इस गिरावट ने निवेशकों को हैरान कर दिया, क्योंकि फेड की ब्याज दरों में कमी को आमतौर पर सकारात्मक खबर माना जाता है।
बुधवार देर रात आई अमेरिकी फेड की घोषणा में कहा गया कि उसने ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की कटौती की है, जिससे रेपो रेट अब 5.00% से घटकर 4.75% हो गई है। हालांकि, फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने यह भी स्पष्ट किया कि निकट भविष्य में और कटौती की संभावना नहीं है, क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी भी मजबूत है और महंगाई पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया गया है।
यही बयान निवेशकों के मनोबल पर भारी पड़ा। बाजार को उम्मीद थी कि फेड अब एक ढीली मौद्रिक नीति (Dovish Policy) की ओर बढ़ेगा, लेकिन पॉवेल के संकेतों ने यह स्पष्ट कर दिया कि आगे दरों में स्थिरता बनी रह सकती है। इस कारण एशियाई बाजारों में भी दबाव दिखा और उसका असर भारतीय बाजार पर साफ नजर आया।
सेंसेक्स सुबह के कारोबार में 500 अंकों से ज्यादा गिरकर 73,250 के आसपास आ गया। वहीं निफ्टी 50 भी लगभग 160 अंक फिसलकर 22,050 पर ट्रेड कर रहा था। बैंकिंग, आईटी और मेटल शेयरों में भारी बिकवाली देखी गई। एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, टीसीएस, रिलायंस इंडस्ट्रीज और इन्फोसिस जैसी दिग्गज कंपनियों के शेयरों में कमजोरी ने सूचकांकों पर दबाव बढ़ाया।
हालांकि, इस गिरावट के बीच कुछ शेयरों में तेजी भी देखने को मिली। पीबी फिनटेक (Policybazaar) का शेयर करीब 5% उछला, जबकि अदाणी एंटरप्राइजेज, टाटा मोटर्स और बजाज फिनसर्व जैसे शेयरों में सीमित खरीदारी देखने को मिली। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि यह तेजी सेक्टर-विशेष खबरों और तिमाही परिणामों की उम्मीदों के चलते सीमित रही।
विदेशी निवेशक (FII) एक बार फिर बिकवाल के रूप में लौटे हैं। बुधवार को एफआईआई ने भारतीय बाजारों से लगभग ₹1,200 करोड़ की निकासी की। इसके विपरीत घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) ने ₹950 करोड़ की खरीदारी की, जिससे बाजार में कुछ स्थिरता बनी रही।
फेड की दर कटौती का असर:
फेड की ओर से ब्याज दरों में कमी को सामान्य रूप से इक्विटी बाजारों के लिए राहत भरा कदम माना जाता है, क्योंकि इससे ग्लोबल लिक्विडिटी बढ़ती है और उभरते बाजारों में पूंजी का प्रवाह तेज होता है। लेकिन इस बार फेड ने आगे की दर नीति पर अनिश्चितता जताई, जिससे निवेशक असमंजस में हैं। पॉवेल ने कहा कि “हम अभी महंगाई लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हैं, इसलिए आगे की नीति डेटा-आधारित होगी।”
इस बयान का सीधा असर डॉलर इंडेक्स और ट्रेजरी यील्ड्स पर पड़ा। डॉलर मजबूत हुआ और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स में बढ़ोतरी देखने को मिली, जिससे विदेशी निवेशकों ने उभरते बाजारों से पैसा निकालना शुरू कर दिया। इसी के चलते भारतीय रुपये पर भी दबाव बढ़ा और वह ₹83.25 प्रति डॉलर के स्तर पर कमजोर हुआ।
घरेलू मोर्चे पर:
भारतीय बाजार अब कई घरेलू संकेतों पर ध्यान लगाए हुए है। अक्टूबर-नवंबर का महीना तिमाही परिणामों और त्योहारी बिक्री आंकड़ों के लिहाज से महत्वपूर्ण रहेगा। बाजार को उम्मीद है कि ऑटो, एफएमसीजी और कंज्यूमर गुड्स सेक्टर में अच्छे नतीजे देखने को मिल सकते हैं, जो आगे जाकर बाजार को सपोर्ट देंगे।
बाजार विशेषज्ञों की राय:
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के सीनियर एनालिस्ट ने कहा, “फेड की दर कटौती को बाजार ने इसलिए नकारात्मक लिया क्योंकि इसके साथ आगे की राहत का संकेत नहीं मिला। अब निवेशकों की निगाहें आरबीआई की दिसंबर बैठक पर होंगी, जहां से ब्याज दरों में स्थिरता की उम्मीद है।”
वहीं, कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के अनुसार, “भारतीय अर्थव्यवस्था में अभी भी मजबूत ग्रोथ मोमेंटम है। इसलिए मौजूदा गिरावट को एक अल्पकालिक करेक्शन (short-term correction) के रूप में देखा जाना चाहिए। लंबी अवधि में बाजार की नींव मजबूत बनी हुई है।”
पीबी फिनटेक में तेजी का कारण:
जहां एक ओर बाजार गिरा, वहीं पीबी फिनटेक (Policybazaar) के शेयर में 5% की तेज उछाल देखी गई। कंपनी ने हाल ही में अपने डिजिटल इंश्योरेंस प्लेटफॉर्म पर रिकॉर्ड ग्राहक वृद्धि दर्ज की है। इसके अलावा, कंपनी के तीसरी तिमाही के नतीजे उम्मीद से बेहतर रहे हैं, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ा है।
विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले दिनों में बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। वैश्विक संकेतों, डॉलर की स्थिति, कच्चे तेल की कीमत और एफआईआई के मूवमेंट पर नजर रखना जरूरी होगा। अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता आती है, तो भारतीय बाजार एक बार फिर उछाल पकड़ सकता है।
फिलहाल निवेशकों को सलाह दी जा रही है कि वे जल्दबाजी में निर्णय न लें और मजबूत मूलभूत वाली कंपनियों में निवेश बनाए रखें।
फेड की दर कटौती भले ही राहत का संकेत हो, लेकिन बाजार ने यह साफ कर दिया है कि सिर्फ “गुड न्यूज” काफी नहीं होती, जब तक निवेशकों को भविष्य की नीतियों पर भरोसा न हो।







