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    “मुसलमान नहीं गाएगा वंदे मातरम” बयान से मचा बवाल, BJP ने कहा– ‘पाकिस्तान चले जाओ’, महाराष्ट्र के स्कूलों में राष्ट्रगीत को लेकर घमासान

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    महाराष्ट्र में राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ को लेकर सियासी जंग छिड़ गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता अबू आजमी और भिवंडी पूर्व से सपा विधायक रईस शेख के बयानों ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। अबू आजमी ने कहा कि “मुसलमान वंदे मातरम नहीं गाएगा”, जबकि रईस शेख ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह आरएसएस के सांस्कृतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रही है।
    इस बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने सपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन्हें भारत माता या वंदे मातरम से समस्या है, वे पाकिस्तान चले जाएं।

    दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में आदेश जारी किया था कि 31 अक्टूबर से 7 नवंबर तक राज्यभर के सभी स्कूलों में ‘वंदे मातरम’ का गायन अनिवार्य किया जाए।
    यह पहल वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में की गई थी। राज्य के शिक्षा विभाग ने इसे “देशभक्ति और एकता के प्रतीक” के रूप में मनाने की बात कही थी।

    लेकिन इस आदेश पर समाजवादी पार्टी ने आपत्ति जताते हुए इसे धार्मिक भावना से जोड़ दिया। सपा विधायक रईस शेख ने कहा कि “सरकार को वंदे मातरम गाने के लिए किसी को मजबूर नहीं करना चाहिए। यह आदेश आरएसएस के एजेंडे को बढ़ावा देने वाला है। हर नागरिक को संविधान के अनुसार अपनी धार्मिक भावनाओं के अनुसार आचरण करने का अधिकार है।”

    सपा नेता अबू आजमी ने भी रईस शेख का समर्थन करते हुए कहा,

    “हम भारत से प्यार करते हैं, लेकिन मुसलमान वंदे मातरम नहीं गाएगा। हम देशभक्त हैं, पर हमारे धर्म में मातृभूमि की पूजा की इजाजत नहीं है।”

    आजमी के इस बयान ने विपक्षी दलों को हमला करने का मौका दे दिया। बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) ने आजमी के बयान को राष्ट्रविरोधी करार देते हुए सख्त प्रतिक्रिया दी।

    बीजेपी के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि,

    “वंदे मातरम हमारे देश की आत्मा है। यह गीत देशभक्ति और एकता का प्रतीक है। अगर किसी को इससे दिक्कत है, तो उसे भारत में रहने का अधिकार नहीं है। उन्हें पाकिस्तान जाकर रहना चाहिए।”

    वहीं, बीजेपी प्रवक्ता शिवराय कुलकर्णी ने कहा कि समाजवादी पार्टी जानबूझकर धार्मिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा,

    “वंदे मातरम का विरोध करना केवल भारत माता का नहीं, बल्कि देश के संविधान का भी अपमान है। ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।”

    शिवसेना के मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि, “वंदे मातरम गाना किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह देश के प्रति प्रेम का प्रतीक है।”
    वहीं, एनसीपी (अजीत पवार गुट) के नेताओं ने कहा कि यह मामला अनावश्यक रूप से धार्मिक रूप दिया जा रहा है। “सरकार का उद्देश्य बच्चों में देशभक्ति की भावना बढ़ाना है, न कि किसी समुदाय को आहत करना।”

    कांग्रेस ने इस विवाद से दूरी बनाते हुए कहा कि वंदे मातरम का सम्मान हर भारतीय करता है, लेकिन किसी को मजबूर करना भी सही नहीं।
    पार्टी प्रवक्ता अतुल लोंढे ने कहा, “देशभक्ति की भावना दिल से आती है, उसे आदेश से नहीं थोपा जा सकता।”

    यह विवाद सोशल मीडिया पर भी तेजी से फैल गया।
    #VandeMataram और #AbuAzmi ट्विटर (X) पर ट्रेंड करने लगे। कई यूजर्स ने अबू आजमी को “देशद्रोही” करार दिया, जबकि कुछ ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए। वहीं, कुछ शिक्षकों और अभिभावकों ने कहा कि बच्चों को वंदे मातरम गाने के लिए प्रेरित करना चाहिए, लेकिन किसी पर दबाव नहीं बनाना चाहिए।

    यह पहली बार नहीं है जब वंदे मातरम को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो। पहले भी कई बार इसे लेकर धर्म बनाम राष्ट्रभक्ति की बहस उठ चुकी है।
    ‘वंदे मातरम’ गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में लिखा था और यह आज़ादी की लड़ाई का प्रतीक बना। मगर कुछ मुस्लिम संगठनों ने हमेशा इस पर आपत्ति जताई कि यह गीत “मां की पूजा” की भावना से जुड़ा है, जो इस्लामिक विचारधारा से मेल नहीं खाती।

    महाराष्ट्र में वंदे मातरम विवाद ने एक बार फिर दिखा दिया है कि कैसे राष्ट्रवाद और धर्म की बहस भारतीय राजनीति में बार-बार लौट आती है।
    अबू आजमी और रईस शेख के बयानों ने जहां एक ओर राजनीतिक ध्रुवीकरण को हवा दी है, वहीं बीजेपी इसे “देशभक्ति बनाम वोटबैंक राजनीति” के रूप में पेश कर रही है।

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