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दुनिया भर में जारी भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक अस्थिरता के बीच सोने की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। सोना हमेशा से एक सुरक्षित निवेश के रूप में देखा जाता है, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है। युद्ध में फंसे रूस ने न केवल अपने सोने के भंडार को बचाए रखा है, बल्कि इस मामले में अमेरिका जैसे आर्थिक महाशक्ति देश को भी पीछे छोड़ दिया है। आंकड़ों के मुताबिक, रूस के पास अमेरिका से चार गुना बड़ा सोने का भंडार है और इस सूची में वह केवल ऑस्ट्रेलिया से मुकाबला कर रहा है।
गोल्डमैन सैश की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, अब तक दुनिया में करीब 2,16,265 टन सोना निकाला जा चुका है, जबकि खदानों में केवल 64,000 टन सोना ही बाकी है। यह अनुमान बताता है कि धरती के भीतर अब सोने का भंडार तेजी से घट रहा है। ऐसे में जिन देशों के पास बड़े ‘अनमाइंड गोल्ड रिजर्व’ हैं, वे आने वाले समय में आर्थिक रूप से और भी मजबूत स्थिति में होंगे।
इस सूची में रूस और ऑस्ट्रेलिया शीर्ष पर हैं। दोनों देशों के पास लगभग 12,000 टन-12,000 टन सोने का ज्ञात भंडार है, जिसे अभी तक खनन नहीं किया गया है। यह मात्रा अमेरिका के ज्ञात गोल्ड रिजर्व से लगभग चार गुना ज्यादा है। रूस, जो यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहा है, उसने इस चुनौती को आर्थिक हथियार में बदल दिया है। सोने के भंडार को बचाकर और स्थानीय मुद्रा को इससे मजबूत बनाकर रूस ने आर्थिक प्रतिबंधों के प्रभाव को काफी हद तक संतुलित किया है।
तीसरे नंबर पर दक्षिण अफ्रीका है, जिसके पास करीब 5,000 टन अनमाइंड गोल्ड रिजर्व है। चौथे और पांचवें स्थान पर क्रमशः इंडोनेशिया (3,800 टन) और कनाडा (3,200 टन) हैं। ये देश भले ही रूस और ऑस्ट्रेलिया से पीछे हैं, लेकिन भविष्य में सोने की बढ़ती कीमतों के चलते इन भंडारों की अहमियत और बढ़ने वाली है।
सोने की कीमतों में इस साल करीब 50% की तेजी दर्ज की गई है। दुनिया भर में जारी आर्थिक उथल-पुथल, भू-राजनीतिक तनाव और डॉलर की अस्थिरता के कारण निवेशक अब सोने को सबसे सुरक्षित विकल्प के रूप में देख रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने भी सोने की जमकर खरीदारी की है, जिससे इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है।
हाल में सोने की कीमत 4,300 डॉलर प्रति औंस के पार पहुंच चुकी है। गोल्डमैन सैश का अनुमान है कि दिसंबर 2026 तक यह कीमत 4,900 डॉलर प्रति औंस तक जा सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों के बीच तनाव जारी रहता है, तो सोने की कीमतें और बढ़ सकती हैं।
रूस की बात करें तो उसका गोल्ड रिजर्व न केवल आर्थिक मजबूती का प्रतीक है, बल्कि यह उसकी रणनीतिक तैयारी को भी दर्शाता है। पश्चिमी देशों के बैंकिंग सिस्टम से बाहर रहकर भी रूस अपने सोने के भंडार के सहारे विदेशी मुद्रा भंडार को संतुलित कर रहा है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया ने भी खनन तकनीक और निर्यात नीति के जरिए खुद को गोल्ड मार्केट में मजबूती से स्थापित किया है।
अमेरिका के पास जहां 3,000 टन से कम ‘अनमाइंड गोल्ड रिजर्व’ बचा है, वहीं रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के पास उसका लगभग चार गुना सोना अभी जमीन के नीचे सुरक्षित है। इसका मतलब यह है कि आने वाले दशक में सोने की खदानों के दो सबसे बड़े खिलाड़ी रूस और ऑस्ट्रेलिया ही होंगे।
दुनिया में अब सोने की मात्रा सीमित होती जा रही है, और निवेशकों की नजर इस ‘सुरक्षित धरोहर’ पर पहले से कहीं अधिक टिकी है। रूस की अर्थव्यवस्था पर भले ही युद्ध के बादल छाए हों, लेकिन उसका सोना अब उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गया है — एक ऐसा खजाना जो उसे आने वाले वर्षों में वैश्विक आर्थिक मंच पर फिर से मजबूत स्थिति में ला सकता है।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		





