इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं।
    
    
    
    
नागपुर के एम्स अस्पताल में भर्ती पांच साल के कुणाल यदुवंशी ने मुश्किलों और पीड़ा के बीच अद्भुत हिम्मत दिखाई है। जहरीली कफ सिरप के सेवन के कारण उनकी किडनी फेल हो गई थी और उन्हें दो महीने तक कोमा में रहना पड़ा। डॉक्टरों की लगातार निगरानी और आधुनिक चिकित्सा उपचार के बाद अब कुणाल वेंटिलेटर से बाहर आ चुके हैं और सामान्य वार्ड में उपचार जारी है।
कुणाल की हालत गंभीर होने के बावजूद, उनके परिवार और चिकित्सकों ने उनकी जिंदगी बचाने के लिए हर संभव कोशिश की। नागपुर एम्स के विशेषज्ञों ने बताया कि जहरीली कफ सिरप ने उनके शरीर पर गहरा असर डाला था। उनकी किडनी की कार्यक्षमता लगभग शून्य पर थी और कई अंगों को सहारा देने के लिए वेंटिलेटर और अन्य जीवनरक्षक उपकरणों का उपयोग किया गया।
डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह की जहरीली दवाओं का सेवन बच्चों के लिए अत्यंत खतरनाक होता है। बच्चों के लिए सुरक्षित दवा और सही मात्रा में औषधि देने की आवश्यकता होती है, वरना गंभीर स्वास्थ्य संकट पैदा हो सकता है। कुणाल का मामला इस दिशा में चेतावनी का प्रतीक बन गया है।
कुणाल की हिम्मत और जुझारूपन ने सभी को प्रेरित किया है। लंबे समय तक आईसीयू में रहने के बावजूद, उन्होंने साहस नहीं खोया और धीरे-धीरे सामान्य वार्ड में स्थानांतरित किए जाने तक अपनी स्थिति में सुधार किया। उनके माता-पिता ने कहा कि यह उनके लिए भी कठिन समय था, लेकिन कुणाल की मुस्कान और सकारात्मक दृष्टिकोण ने परिवार को उम्मीद दी।
एम्स अस्पताल के मुख्य चिकित्सक ने बताया कि कुणाल की रिकवरी अब काफी बेहतर है और उनका स्वास्थ्य लगातार सुधर रहा है। डॉक्टरों की टीम बच्चों के लिए विशेष देखभाल और पोषण का ध्यान रख रही है। उन्हें दवा की मात्रा और प्रभावों की लगातार निगरानी के साथ स्वस्थ होने में मदद की जा रही है।
कुणाल की कहानी केवल चिकित्सा क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक चेतावनी है। यह मामला उन सभी माता-पिता और परिवारों के लिए उदाहरण है, जो बच्चों को घरेलू या मेडिकल दवाओं का उपयोग कराते हैं। हमेशा प्रमाणित और सुरक्षित दवाओं का चयन करना चाहिए और डॉक्टर की सलाह के बिना बच्चों को किसी भी सिरप या दवा का सेवन नहीं कराना चाहिए।
इस घटना ने यह भी स्पष्ट किया है कि जहरीली दवाओं के खिलाफ कड़े नियम और जागरूकता आवश्यक है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस दिशा में और कड़े कदम उठाने की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
कुणाल की हिम्मत को देखकर डॉक्टर और अस्पताल का स्टाफ भी भावुक हैं। उन्होंने कहा कि यह बच्चे की इच्छाशक्ति और मानसिक शक्ति का उदाहरण है। दो महीने तक कोमा में रहने के बाद सामान्य जीवन की ओर लौटना उसके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है।
इस केस ने यह संदेश दिया है कि कठिन परिस्थितियों और गंभीर स्वास्थ्य संकट के बावजूद भी सही इलाज और हिम्मत से जीवन को बचाया जा सकता है। कुणाल की कहानी न केवल स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र में, बल्कि समाज और परिवारों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गई है।

		
		
		
		
		
		
		
		
		






