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केरल स्टेट फिल्म अवॉर्ड्स 2025 इस बार अपने फैसलों को लेकर भारी विवादों में घिर गए हैं। वजह बनी है—चाइल्ड आर्टिस्ट्स और बच्चों की फिल्मों की पूरी तरह अनदेखी। जहां दर्शक और फिल्म समीक्षक उम्मीद कर रहे थे कि बाल कलाकारों के शानदार प्रदर्शन को सराहा जाएगा, वहीं इस बार किसी भी चाइल्ड एक्टर या चिल्ड्रेन फिल्म को कोई पुरस्कार नहीं दिया गया। इस फैसले ने न केवल फिल्म जगत में बहस छेड़ दी है, बल्कि बाल कलाकारों के बीच नाराजगी भी बढ़ा दी है।
इसी विवाद के बीच अब चाइल्ड एक्ट्रेस देवा नंदा का बयान सामने आया है, जिन्होंने केरल अवॉर्ड्स की जूरी के अध्यक्ष प्रकाश राज पर निशाना साधते हुए खुलकर नाराजगी जताई है। देवा नंदा, जिन्होंने पिछले साल मलयालम सिनेमा में अपने शानदार अभिनय से पहचान बनाई थी, ने कहा कि “हम बच्चे भी फिल्मों में उतनी ही मेहनत करते हैं जितनी बड़े कलाकार करते हैं। अगर हमारी कला को मान्यता नहीं दी जाएगी, तो हम हतोत्साहित महसूस करेंगे।”
देवा नंदा ने सोशल मीडिया पर लिखा, “मैंने और मेरे जैसे सैकड़ों बच्चों ने इस साल कठिन परिस्थितियों में काम किया, लंबे-लंबे शेड्यूल झेले, पढ़ाई और शूटिंग को एक साथ संभाला। लेकिन जब हमारी मेहनत को नजरअंदाज किया जाता है, तो दिल टूट जाता है। क्या बच्चों की प्रतिभा को कला नहीं माना जाता?”
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर कलाकारों और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। कई वरिष्ठ अभिनेताओं और फिल्म समीक्षकों ने भी देवा नंदा का समर्थन किया। एक फिल्म समीक्षक ने लिखा, “केरल स्टेट फिल्म अवॉर्ड्स अपनी पारदर्शिता और संवेदनशीलता के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार बच्चों की कैटेगरी को हटाना कला के उस कोमल पक्ष की अनदेखी है जो सिनेमा को मानवीय बनाता है।”
वहीं, जूरी प्रमुख प्रकाश राज ने अपने बचाव में कहा कि इस बार जूरी ने गुणवत्ता और विषयवस्तु को ध्यान में रखते हुए चयन किया है। उनका कहना है कि बच्चों की फिल्मों में इस बार “कंटेंट क्वालिटी” उस स्तर की नहीं थी जो राज्य पुरस्कार के मानदंडों पर खरी उतर सके। उन्होंने कहा, “यह किसी बच्चे के खिलाफ फैसला नहीं है, बल्कि एक सख्त पेशेवर मानदंड का पालन है।”
लेकिन प्रकाश राज के इस बयान ने विवाद को और बढ़ा दिया। कई लोगों का कहना है कि बच्चों के प्रदर्शन को केवल ‘कंटेंट क्वालिटी’ के आधार पर आंकना उचित नहीं है, क्योंकि उनके अंदर की मासूम भावनाएं और स्वाभाविक अभिनय सिनेमा को नया आयाम देते हैं।
फिल्म उद्योग से जुड़े कुछ लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि जब अन्य श्रेणियों में औसत प्रदर्शन करने वाले कलाकारों को भी सम्मानित किया गया, तो बच्चों की मेहनत को नज़रअंदाज़ करना कहीं न कहीं अन्याय है। सोशल मीडिया पर “#JusticeForChildArtists” ट्रेंड करने लगा, जिसमें कई यूजर्स ने देवा नंदा के समर्थन में पोस्ट किए।
देवा नंदा, जिन्होंने हाल ही में फिल्म ‘निंगलूम नम्मालूम’ में अपने किरदार के लिए काफी सराहना पाई थी, का कहना है कि यह केवल उनका नहीं बल्कि हर उस बच्चे का सवाल है जो सिनेमा में अपने सपनों को साकार करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा, “हम छोटे हैं, पर हमारे सपने बड़े हैं। अगर हमें पहचान नहीं दी जाएगी, तो आने वाली पीढ़ियां सिनेमा से दूर हो जाएंगी।”
इस विवाद ने एक गंभीर बहस को जन्म दे दिया है—क्या बाल कलाकारों के लिए अलग पुरस्कार श्रेणी को समाप्त या नजरअंदाज किया जाना उचित है? कई फिल्म संगठनों ने राज्य सरकार और फिल्म अकादमी से अपील की है कि बच्चों की कैटेगरी को फिर से बहाल किया जाए और भविष्य में ऐसे निर्णयों पर पुनर्विचार किया जाए।
फिलहाल केरल स्टेट फिल्म अवॉर्ड्स समिति इस विवाद पर चुप्पी साधे हुए है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस बार का पुरस्कार समारोह जितनी चमक-दमक के लिए याद नहीं किया जाएगा, उतना ही याद रहेगा इसके फैसलों से उठे विवादों के लिए।
देवा नंदा की आवाज ने उन सैकड़ों बाल कलाकारों की भावनाओं को अभिव्यक्त किया है, जो कैमरे के सामने सपनों को आकार देने की कोशिश में हैं। शायद यही वक्त है जब फिल्म जगत को यह समझना होगा कि सिनेमा सिर्फ सितारों का नहीं, बल्कि उन मासूम मुस्कानों का भी है जो पर्दे पर जान डाल देती हैं।








