




हरिद्वार भूमि घोटाला: उत्तराखंड में पहली बार बड़े अधिकारियों पर गिरी गाज, भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति लागू।
उत्तराखंड: उत्तराखंड की राजनीति और प्रशासन में बड़ा उलटफेर तब हुआ जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरिद्वार भूमि घोटाले में 54 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार की जांच के बाद डीएम समेत तीन वरिष्ठ अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।
यह पहली बार है जब प्रदेश की सत्ता में बैठी सरकार ने अपने ही सिस्टम में बैठे शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ इतना सख्त कदम उठाया है। यह निर्णय सिर्फ एक घोटाले पर कार्रवाई नहीं, बल्कि राज्य की प्रशासनिक संस्कृति में एक ठोस और निर्णायक बदलाव का संकेत है।
कौन हैं निलंबित अधिकारी और उन पर क्या आरोप हैं?
1. कर्मेन्द्र सिंह (DM, हरिद्वार)
भूमि क्रय की अनुमति देने और प्रशासनिक मंजूरी में संदेहास्पद भूमिका पाई गई।
2. वरुण चौधरी (पूर्व नगर आयुक्त, हरिद्वार)
बिना पारदर्शिता के भूमि क्रय प्रस्ताव पारित किया, वित्तीय अनियमितताओं में शामिल पाए गए।
3. अजयवीर सिंह (SDM)
भूमि निरीक्षण और सत्यापन प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही की गई।
इन तीनों अधिकारियों के खिलाफ अब विभागीय जांच और अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है।
अब तक हुई कार्रवाइयाँ:
इससे पहले भी इस मामले में 5 अन्य अधिकारियों को निलंबित किया गया था:
१. रविंद्र कुमार दयाल (प्रभारी सहायक नगर आयुक्त)
२. आनंद सिंह मिश्रवाण (प्रभारी अधिशासी अभियंता)
३. लक्ष्मीकांत भट्ट (कर एवं राजस्व अधीक्षक)
४. दिनेश चंद्र कांडपाल (अवर अभियंता)
५. वेदवाल (संपत्ति लिपिक, सेवा विस्तार समाप्त)
इन सभी पर प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर कार्यवाही की गई थी।
अब पूरे घोटाले की जांच विजिलेंस विभाग को सौंपी गई है, और मुख्यमंत्री ने साफ संदेश दिया है — “उत्तराखंड में अब पद नहीं, जवाबदेही मायने रखती है।”
निलंबित अधिकारियों से संपर्क का प्रयास विफल
जब इस मुद्दे पर संबंधित अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई, तो सभी के फोन नंबर स्विच ऑफ मिले। ऐसे में उनका पक्ष नहीं रखा जा सका।
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