




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly – UNGA) की उच्च स्तरीय वार्षिक बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। उनकी जगह भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर देश का प्रतिनिधित्व करेंगे और विश्व मंच पर भारत की नीतियों एवं दृष्टिकोण को रखेंगे। यह निर्णय भारत-अमेरिका संबंधों के मौजूदा परिदृश्य और कूटनीतिक समीकरणों के बीच अहम माना जा रहा है।
पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री मोदी ने UNGA में भारत की वैश्विक स्थिति और दृष्टिकोण को मजबूती से प्रस्तुत किया। जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, डिजिटल अर्थव्यवस्था, विकासशील देशों के हित और बहुपक्षीय सहयोग जैसे मुद्दों पर उनकी मौजूदगी को अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने हमेशा प्रमुखता से कवर किया है।
ऐसे में इस बार उनका न्यूयॉर्क दौरा रद्द होना अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में चर्चा का विषय बन गया है। कई विशेषज्ञ इसे भारत और अमेरिका के बीच हाल के टैरिफ विवाद और व्यापारिक तनाव से जोड़कर देख रहे हैं।
हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक टकराव बढ़ा है। अमेरिकी प्रशासन ने भारत से आयातित कुछ उत्पादों पर नए टैरिफ लगाए हैं, जबकि भारत ने भी जवाबी कदम उठाए हैं।
इसी बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मोदी के बीच “दोस्ती” वाले बयान ने सुर्खियाँ बटोरीं। मोदी ने भी उस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे भारत-अमेरिका संबंधों को ‘सकारात्मक और दूरगामी साझेदारी’ मानते हैं।
हालांकि, मौजूदा विवाद ने दोनों देशों के रिश्तों में असहजता ला दी है। कूटनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि पीएम मोदी का UNGA में शामिल न होना इसी असंतोष का संकेत हो सकता है।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर को एक अनुभवी कूटनीतिज्ञ माना जाता है। वे संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका, चीन और रूस तक कई बड़े मंचों पर भारत का दृष्टिकोण बेबाकी से प्रस्तुत कर चुके हैं।
जयशंकर UNGA के दौरान भारत का पक्ष रखेंगे और उम्मीद की जा रही है कि वे वैश्विक दक्षिण (Global South) के मुद्दों पर भारत की आवाज बुलंद करेंगे।
उनके भाषण में निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया जा सकता है:
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जलवायु परिवर्तन और सतत विकास
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वैश्विक आतंकवाद और सुरक्षा
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साइबर स्पेस एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चुनौतियाँ
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बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार (जैसे UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग)
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भारत की अर्थव्यवस्था और निवेश के अवसर
विशेषज्ञों का मानना है कि पीएम मोदी का UNGA से दूर रहना भारत की नई कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
एक तरफ भारत G20 और SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों पर अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है, वहीं अमेरिका के साथ संबंधों में सावधानी बरत रहा है।
इस कदम को कई विश्लेषक “संतुलन साधने” की रणनीति बता रहे हैं। भारत एक तरफ वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में उभरना चाहता है, दूसरी तरफ अमेरिका के साथ सीधे टकराव से बचना भी चाहता है।
विपक्षी दलों ने पीएम मोदी के UNGA में शामिल न होने को “कूटनीतिक विफलता” करार दिया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों का कहना है कि विश्व मंच पर भारत की आवाज़ को कमजोर किया जा रहा है।
वहीं भाजपा का तर्क है कि मोदी की प्राथमिकता भारत के भीतर विकास कार्यों और घरेलू राजनीति पर है, और विदेश मंत्री जयशंकर विश्व मंच पर भारत का पक्ष मजबूती से रखेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी की अनुपस्थिति से UNGA में भारत की मौजूदगी को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सवाल उठेंगे। हालांकि, डॉ. जयशंकर जैसे अनुभवी राजनयिक के नेतृत्व में भारत का संदेश फिर भी स्पष्ट और प्रभावी तरीके से सामने आने की संभावना है।
वैश्विक समुदाय यह भी देख रहा है कि भारत किस तरह अमेरिका, चीन और रूस जैसे महाशक्तियों के बीच संतुलन साधता है और विकासशील देशों की आवाज को आगे बढ़ाता है।
प्रधानमंत्री मोदी का UNGA में शामिल न होना सिर्फ एक यात्रा का रद्द होना नहीं है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक प्राथमिकताओं और वैश्विक रणनीति का संकेत भी है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के नेतृत्व में भारत अपनी विदेश नीति और वैश्विक दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से रखेगा।
यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी की अनुपस्थिति के बीच जयशंकर किस तरह भारत की भूमिका को मजबूत करते हैं और अमेरिका के साथ मौजूदा तनावों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मंच पर संतुलन बनाए रखते हैं।