




हिमाचल प्रदेश एक बार फिर प्रकृति के प्रकोप का शिकार हुआ है। बीते कुछ दिनों में हुई मूसलाधार बारिश, बादल फटना और भूस्खलन ने पूरे प्रदेश को अस्त-व्यस्त कर दिया है। इस आपदा से अब तक ₹4079 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान दर्ज किया गया है। राज्य के कई जिलों — शिमला, कुल्लू, चंबा, किन्नौर और मंडी — में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। 300 से अधिक सड़कें और 100 से अधिक पुल क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। बिजली और जल आपूर्ति व्यवस्था कई जगहों पर ठप पड़ी है। गाँवों में लोग बाहरी दुनिया से कट चुके हैं और प्रशासन को राहत सामग्री पहुँचाने में कठिनाइयाँ हो रही हैं।
हिमाचल में इस सीजन में कई बार बादल फटने की घटनाएँ सामने आई हैं। कुल्लू और चंबा जिलों में अचानक आई बाढ़ से घरों और खेतों को भारी नुकसान पहुँचा है। भूस्खलन की वजह से राष्ट्रीय राजमार्ग-5 और एनएच-21 कई जगहों पर बंद पड़े हैं। यात्रियों को घंटों सड़क पर फँसना पड़ा। कई गाड़ियाँ मलबे में दब गईं।
भारी बारिश और बाढ़ के चलते हजारों लोग बेघर हो गए हैं। सैकड़ों मकान पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं। किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं। सेब और अन्य बागवानी उत्पादों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ा है।
राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने राहत कार्यों को तेज कर दिया है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं, सेना को भी प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किया गया है, हेलीकॉप्टर के जरिए दुर्गम इलाकों में फँसे लोगों को निकाला जा रहा है, प्रभावित परिवारों को अस्थायी शिविरों में आश्रय दिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा:
“हम हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि प्रभावित लोगों तक शीघ्र मदद पहुँचे। केंद्र सरकार से अतिरिक्त आर्थिक सहायता की मांग की गई है।”
सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार, इस प्राकृतिक आपदा में 4079 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान दर्ज किया गया है। सिर्फ सड़क और पुलों की मरम्मत पर ही अरबों रुपये खर्च होने की संभावना है। कृषि और पर्यटन उद्योग को गहरी चोट पहुँची है। हिमाचल की अर्थव्यवस्था पहले से ही पर्यटन और कृषि पर निर्भर है। ऐसे में इस नुकसान की भरपाई आसान नहीं होगी।
पर्यावरणविदों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और अत्यधिक निर्माण कार्य हिमाचल में आपदाओं को और भयावह बना रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार:
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अनियंत्रित खनन और पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क चौड़ीकरण ने भूगर्भीय असंतुलन बढ़ा दिया है।
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लगातार बदलते मौसम पैटर्न और ग्लेशियरों के पिघलने से पहाड़ी इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।
इस आपदा में सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण इलाकों के लोगों को हो रही है। बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है क्योंकि स्कूल बंद पड़े हैं, रोज़गार के साधन ठप हो गए हैं, पर्यटन स्थलों के बंद होने से होटल और टैक्सी व्यवसाय पर असर पड़ा है।
हिमाचल प्रदेश की यह आपदा सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप का मिला-जुला परिणाम है। राज्य सरकार और प्रशासन के सामने अब बड़ी चुनौती है कि कैसे राहत कार्यों को तेजी से आगे बढ़ाया जाए और भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ।