




हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई किस्से हैं, जो समय के साथ भूले जा चुके हैं, लेकिन जब उन पर से परदा उठता है तो लोग चौंक जाते हैं। मोहम्मद रफ़ी, जिन्हें सुरों का देवता कहा जाता है, ने अपने जीवनकाल में कई युवा गायकों को मौका दिया और उन्हें अपने आशीर्वाद से बुलंदियों तक पहुँचाया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने एक गायक को अपना “बेटा” कहा था? यह वही गायक है जिसकी कहानी सफलता से असफलता तक के सफर की है और जिसका एक अप्रत्याशित रिश्ता बॉलीवुड अभिनेता अरशद वारसी से भी जुड़ता है।
यह गायक थे अनवर (Anwar Hussain)। 1970 और 1980 के दशक में उन्हें अक्सर “नए मोहम्मद रफ़ी” के रूप में पेश किया जाता था। उनकी आवाज़ की क्वालिटी और रेंज इतनी मिलती-जुलती थी कि कई लोग उन्हें रफ़ी साहब का उत्तराधिकारी मानते थे।
कहा जाता है कि जब रफ़ी साहब ने पहली बार अनवर को गाते सुना, तो उन्होंने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा –
“ये लड़का मेरा बेटा है, इसे आगे बहुत कामयाबी मिलेगी।”
अनवर ने 1973 में अपनी गायकी की शुरुआत की। उनके गाए गाने ‘मोहब्बत रंग लाती है’ और ‘हमसे का भूला क्या हुआ’ जैसे गीतों ने श्रोताओं का ध्यान खींचा।
धीरे-धीरे वे म्यूज़िक डायरेक्टर्स के पसंदीदा बन गए और उनकी तुलना सीधे मोहम्मद रफ़ी से होने लगी।
उनका सबसे बड़ा हिट नंबर था – “तेरी आँखों का काजल” और “हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने”। यह गाने आज भी सुनने वालों को मोह लेते हैं।
लेकिन समय ने करवट ली। 1980 के दशक में जब किशोर कुमार और बाद में उदित नारायण, कुमार सानू और सोनू निगम जैसे नए गायकों का दौर शुरू हुआ, तो अनवर को मौके मिलने बंद हो गए।
उनकी आवाज़ को “रफ़ी की कॉपी” कहा जाने लगा और म्यूज़िक डायरेक्टर्स ने धीरे-धीरे उनसे किनारा कर लिया।
कभी बॉलीवुड की बड़ी फिल्मों में हिट गाने देने वाले अनवर को गुमनामी का स्वाद चखना पड़ा। बाद में उन्होंने सऊदी अरब और खाड़ी देशों में स्टेज शोज़ में गाना शुरू किया, लेकिन हिंदी सिनेमा में उनकी पहचान धीरे-धीरे धुंधली हो गई।
अनवर की कहानी का सबसे दिलचस्प हिस्सा उनका रिश्ता बॉलीवुड अभिनेता अरशद वारसी से है।
दरअसल, अनवर अरशद वारसी के मामू (मातुल) हैं। यानी, अरशद का बचपन उनके संगीत के माहौल में गुज़रा। अरशद ने कई बार इंटरव्यू में बताया है कि उनके मामू अनवर बेहद टैलेंटेड गायक थे, लेकिन किस्मत ने उनके साथ न्याय नहीं किया।
अरशद कहते हैं कि अगर अनवर को लगातार मौके मिलते तो वे आज के दौर में भी टॉप प्लेबैक सिंगर होते।
अनवर की असफलता के पीछे कई कारण गिनाए जाते हैं:
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तुलना का बोझ: उन्हें हमेशा मोहम्मद रफ़ी का ‘कॉपी’ कहा गया।
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म्यूज़िक ट्रेंड का बदलना: 80s में डिस्को और पॉप स्टाइल गानों ने इंडस्ट्री में जगह बनाई, जो अनवर की आवाज़ से मेल नहीं खाते थे।
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राजनीति और लॉबी सिस्टम: कई बड़े म्यूज़िक डायरेक्टर्स ने नए गायकों को तरजीह दी।
भले ही मोहम्मद रफ़ी ने अनवर को अपना “बेटा” कहा था और उन्हें आशीर्वाद दिया था, लेकिन इंडस्ट्री की सच्चाई ने उनके सपनों को अधूरा छोड़ दिया। अनवर आज भी छोटे-मोटे म्यूज़िकल इवेंट्स में गाते हैं और अपने पुराने दिनों को याद करते हैं।
अनवर की कहानी हमें बताती है कि बॉलीवुड में सिर्फ टैलेंट ही नहीं, बल्कि समय, किस्मत और सही मौके भी मायने रखते हैं। एक तरफ मोहम्मद रफ़ी जैसा दिग्गज गायक उन्हें “अपना बेटा” कहकर दुआ देता है, लेकिन दूसरी तरफ बदलते रुझानों और इंडस्ट्री की राजनीति ने उनके करियर को खत्म कर दिया।
अरशद वारसी जैसे सितारे आज भी अपने मामू की तारीफ करते नहीं थकते और कहते हैं –
“वो गायक जिन्हें इंसान मोहम्मद रफ़ी ने आशीर्वाद दिया था, उन्हें इंडस्ट्री ने वह पहचान नहीं दी जिसके वे हकदार थे।”
यह कहानी हिंदी सिनेमा के उस पहलू को उजागर करती है, जहां कई टैलेंटेड कलाकार चमकते-चमकते गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं।