




रविवार की रात का आसमान भारतवासियों के लिए यादगार बन गया। इस रात लोगों ने उस दुर्लभ खगोलीय घटना का दीदार किया, जिसे पूर्ण चंद्रग्रहण कहा जाता है। जैसे ही धरती की छाया ने चंद्रमा को ढकना शुरू किया, रात 9:57 बजे से ग्रहण का अद्भुत नज़ारा शुरू हो गया। धीरे-धीरे चांद का रंग बदलकर लाल, नारंगी और तांबे जैसी आभा में तब्दील हो गया, जिसे ब्लड मून कहा जाता है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लोग शाम से ही आसमान की ओर नज़रें टिकाए हुए थे। हालांकि बीच-बीच में बादलों की वजह से चांद छिपता-निकलता रहा, लेकिन जैसे ही ग्रहण अपने चरम पर पहुँचा, आसमान में लालिमा लिए चांद ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के खगोल विज्ञान विभागों ने विशेष दूरबीनों के माध्यम से विद्यार्थियों और आम नागरिकों को इस नज़ारे का सीधा अनुभव कराया।
सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि लखनऊ, जयपुर, भोपाल, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बेंगलुरु समेत देश के लगभग हर हिस्से से चंद्रग्रहण के शानदार दृश्य दिखाई दिए।
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उत्तर भारत में लोगों ने अपने घरों की छतों और पार्कों से नज़ारा देखा।
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राजस्थान और गुजरात में साफ आसमान की वजह से ब्लड मून का दृश्य बेहद स्पष्ट रहा।
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दक्षिण भारत के कई हिस्सों में बादलों की लुका-छिपी के बावजूद ग्रहण की झलक देखने को मिली।
लोगों ने इस खगोलीय घटना की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए, जो देखते ही देखते वायरल हो गए।
पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं, तो पृथ्वी सूर्य की किरणों को चंद्रमा तक पहुँचने से रोक देती है। इस दौरान सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वातावरण से होकर गुजरता है और लाल-नारंगी तरंगदैर्घ्य (wavelength) चंद्रमा तक पहुँचती है। इसी कारण चांद लाल या नारंगी रंग का दिखाई देता है, जिसे आम भाषा में ब्लड मून कहा जाता है।
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) और नेहरू तारामंडल जैसे संस्थानों ने इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए। वैज्ञानिकों ने जनता को बताया कि चंद्रग्रहण एक प्राकृतिक और सुरक्षित खगोलीय घटना है, जिसे नंगी आंखों से देखना पूरी तरह सुरक्षित है।
दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के तारामंडलों में बड़ी संख्या में लोग दूरबीनों से ग्रहण देखने पहुँचे। बच्चों और युवाओं में इसे लेकर खासा उत्साह देखा गया।
भारत जैसे परंपराओं वाले देश में चंद्रग्रहण का धार्मिक महत्व भी होता है। कई मंदिरों के द्वार ग्रहण के दौरान बंद रखे गए। लोगों ने स्नान, दान और मंत्र जाप जैसे पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन किया। हालांकि आधुनिक वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार यह केवल एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है, लेकिन लोगों की आस्था और जिज्ञासा का संगम इस अवसर पर साफ़ दिखाई दिया।
ग्रहण की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर खूब वायरल हुए। #BloodMoon और #ChandraGrahan2025 जैसे हैशटैग ट्विटर (X), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर ट्रेंड करते रहे। कई सेलिब्रिटीज़ और खगोल प्रेमियों ने भी अपने अनुभव साझा किए।
वैज्ञानिकों के अनुसार, अगला आंशिक चंद्रग्रहण इसी वर्ष नवंबर में दिखाई देगा। जबकि अगला पूर्ण चंद्रग्रहण भारत में 2027 में देखा जा सकेगा। ऐसे दुर्लभ अवसर आमतौर पर कुछ वर्षों में ही आते हैं, इसलिए यह रात लोगों की स्मृतियों में लंबे समय तक रहेगी।
रविवार की रात का पूर्ण चंद्रग्रहण और ब्लड मून सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं था, बल्कि यह प्रकृति की उस अद्भुत शक्ति का प्रदर्शन था, जो मानव जीवन को विस्मय से भर देती है।
दिल्ली से लेकर दक्षिण भारत तक, करोड़ों लोगों ने इस दुर्लभ नज़ारे का दीदार किया और इसे अपनी यादों और कैमरों में कैद कर लिया। यह घटना न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि लोगों के सांस्कृतिक और भावनात्मक जीवन में भी अपनी गहरी छाप छोड़ गई है।